अपना दीया स्वयं जगाओ

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संसार सागर के भंवर में फंसे हुए मनुष्यों को समय-समय पर महापुरुष गुरु-ज्ञानियों के रूप में जागने का संदेश देते रहे हैं। कर्त्तव्य पालन की परम प्रेरणा प्रदान करते रहे हैं। वेद, गीता, उपनिषद् आदि समस्त ग्रंथों में जागने का संदेश दिया है। जहां जिस स्थान में हों, जिन परिस्थितियों में हों, वहीं से अपने को व्यवस्थित करने की ज़रूरत है। विचार कभी-कभी ऐसी परिस्थितियों में खड़ा कर देते हैं कि व्यक्ति मोहग्रस्त होकर अपने कर्त्तव्य से भागने लग जाता है और ..
एक बार राह में क़दम भटका,
ज़िंदगी भर मंज़िल को तरसते रहे।
दूध कितना भी शुद्ध हो नींबू की एक बूंद ही उसे खराब करने के लिए काफी है। ऐसे ही निराशा का विचार नींबू का काम करता है, निराशा से आप अपनी शक्ति खो बैठते हैं। आपका विचार रूपी लावण्य, माधुर्य को छीन सकता है। विचार जीने के ढंग को बदल सकते हैं। संसार सब जगह है, स्थान बदलने से बात नहीं बनेगी, अंदर बदलाव आना चाहिए। अपने आपको नहीं बदला तो घर, स्थान आदि बदलने से कुछ होने वाला नहीं है। अपने को बदलने के लिए दिशा बदलनी होगी, दिशा को बदलने से दिशा बदलेगी।
स्वयं को स्वयं जागृत करना पड़ेगा, आपका उद्धार करने कोई अवतार आने वाला नहीं है। अवतारी महापुरुष आपको रास्ता दिखा सकते हैं, चलना तो आपको स्वयं ही पड़ेगा। हर व्यक्ति एक पत्थर की तरह है, वह जैसी शक्ल उसमें तराशना चाहता है, खुद ही तराश कर बना लेगा, कोई दूसरा आकर नहीं बनाएगा। इसलिए अंधेरों से पार जाने के लिए स्वयं ही प्रयास करना पड़ेगा। मैं कुछ हूँ, कुछ बन सकता हूँ और कुछ कीर्तिमान स्थापित कर सकता हूँ। यह खुद को ही संदेश है। हर जीव को अपने संघर्ष में स्वयं ही खड़े होना पड़ता है। इस जगत में कोई व्यक्ति तब तक महान नहीं बन सकता, जब तक वह अपने दिल को आइने में अपनी गलतियां नहीं देखता और अपने गुणों का विकास नहीं करता।
तुम्हारी महिमा को कोई नहीं समझ सकता, अपनी महानता को स्वयं ही समझो। आसमान में पगडण्डियां नहीं हैं। अपना रास्ता स्वयं ढूंढना पड़ता है। जूझने के लिए स्वयं प्रयास करना पड़ेगा। बहते हुए आंसुओं को अपने हाथों से पोंछना। अच्छे के लिए खुद ही अपनी पीठ थपथपाना। दूसरों से प्रेरणा ले सकते हैं, मगर इस ताक में मत रहें कि कोई दूसरा आकर आपका सुधार करेगा।
कोई आपको दिशा दे सकता है, जागृति दे सकता है, लेकिन अपने अंदर स्वयं जागरण का विचार उत्पन्न हो, तभी सही जागृति आएगी। जीवन की यात्रा चुनौतियों से शुरू होती है, खुद चलना होगा और चमत्कार होने वाला नहीं है। अपनी उदासियों को त्यागें, जीवन में उदासियां ओढते जाएंगे तो यात्रा कठिन हो जाएगी। स्वयं जागो, जागना किस रूप में है? पहले अपना रूप पहचानिए। आपका वास्तविक रूप है शांति। अशांति में दो पल भी बिताने बड़े कठिन होते हैं। हर पल शांति में बिताने की कोशिश करें। प्रसन्नता तपस्या है, आंखों से आंसू निकलने को हों, रोते-रोते हंस पड़े यह तप है। सदा खुश रहो, उस मालिक का धन्यवाद करते रहो।
एकांत में अपने लिए विचार कीजिए, कुछ  देर अपने साथ रहें। स्वयं को स्वयं से समझाने की कोशिश करें। आप स्वयं जागृत हैं तो कोई आपको ललकार नहीं सकता। ऊपर उठने की ललक Ëदय में रोज उठनी चाहिए, प्यार भरी थपकी और प्रेरक वचनों की समय पर दी गई शाबाशी का बहुत असर पड़ता है। कोई भी प्यार, समर्पण हमारी भावनाओं को बदलने में अद्भुत कार्य करते हैं। समय पर किसी को हितकारी शब्द कहे जाएं तो व्यक्ति गांठ बांधेगा कि यह वाक्य महत्वपूर्ण है।

-    डॉ. अर्चिका दीदी

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