नई दिल्ली, 16 मई
एससी/एसटी एक्ट को लेकर वेंद्र सरकार की पुनार्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि कोर्ट का पुराना अादेश बना रहेगा। इस मामले में कोर्ट छुट्टियों के बाद सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर एकतरफा बयानों के अाधार पर किसी नागरिक के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी रहे, तो समझिए हम सभ्य समाज में नहीं रह रहे हैं।
जस्टिस अादर्श गोयल ने कहा कि यहाँ तक कि संसद भी ऐसा कानून नहीं बना सकती जो नागरिकों के जीने के अधिकार का हनन करता हो और बिना प्रक्रिया के पालन के सलाखों के पीछे डालता हो। कोर्ट ने ये अादेश अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार को सरंक्षण देने के लिए दिया है। कोर्ट ने कहा कि जीने के अधिकार के लिए किसी को इनकार नहीं किया जा सकता।
वहीं अटॉनाa जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि जीने का अधिकार बडा व्यापक है। इसमें रोजगार का अधिकार, शेल्टर भी मौलिक अधिकार हैं, लेकिन विकासशील देश के लिए सभी के मौलिक अधिकार पूरा करना संभव नहीं है। क्या सरकार सबको रोजगार दे सकती है? गौरतलब है कि जस्टिस अादर्श गोयल 6 जुलाई को रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में इस मामले में सुनवाई का क्या होगा, ये सवाल है। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मिली उन शिकायतों पर ही गिरफ्तारी से पहले जाँच की जरूरत है, जब शिकायत मनगढ़ंत या फजाa लगे।
अदालत ने कहा कि हर शिकायत पर प्रारंभिक जाँच की दरकार नहीं है। साथ ही शीर्ष अदालत ने एक बार फिर अपने अादेश पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है। अदालत ने 20 मार्च के अादेश को रक्षात्मक कदम बताया है। 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के तहत शिकायत मिलने पर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। अदालत ने कहा कि गिरफ्तारी से पहले प्रारंभिक जाँच होनी चाहिए। इसके अलावा अन्य और निर्देश दिए गए थे।
एससी/एसटी एक्ट को लेकर वेंद्र सरकार की पुनार्विचार याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि कोर्ट का पुराना अादेश बना रहेगा। इस मामले में कोर्ट छुट्टियों के बाद सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर एकतरफा बयानों के अाधार पर किसी नागरिक के सिर पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी रहे, तो समझिए हम सभ्य समाज में नहीं रह रहे हैं।
जस्टिस अादर्श गोयल ने कहा कि यहाँ तक कि संसद भी ऐसा कानून नहीं बना सकती जो नागरिकों के जीने के अधिकार का हनन करता हो और बिना प्रक्रिया के पालन के सलाखों के पीछे डालता हो। कोर्ट ने ये अादेश अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार को सरंक्षण देने के लिए दिया है। कोर्ट ने कहा कि जीने के अधिकार के लिए किसी को इनकार नहीं किया जा सकता।
वहीं अटॉनाa जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि जीने का अधिकार बडा व्यापक है। इसमें रोजगार का अधिकार, शेल्टर भी मौलिक अधिकार हैं, लेकिन विकासशील देश के लिए सभी के मौलिक अधिकार पूरा करना संभव नहीं है। क्या सरकार सबको रोजगार दे सकती है? गौरतलब है कि जस्टिस अादर्श गोयल 6 जुलाई को रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में इस मामले में सुनवाई का क्या होगा, ये सवाल है। पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत मिली उन शिकायतों पर ही गिरफ्तारी से पहले जाँच की जरूरत है, जब शिकायत मनगढ़ंत या फजाa लगे।
अदालत ने कहा कि हर शिकायत पर प्रारंभिक जाँच की दरकार नहीं है। साथ ही शीर्ष अदालत ने एक बार फिर अपने अादेश पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है। अदालत ने 20 मार्च के अादेश को रक्षात्मक कदम बताया है। 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट के तहत शिकायत मिलने पर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। अदालत ने कहा कि गिरफ्तारी से पहले प्रारंभिक जाँच होनी चाहिए। इसके अलावा अन्य और निर्देश दिए गए थे।