पूजा-पाठ : दैनिक जीवन में करें धर्म-भावना का समावेश

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पूजा का अर्थ सिर्फ मंदिर में जाना ही नहीं है। अगर सच्ची श्रद्धा-भक्ति से अपने ईष्ट का स्मरण कर हाथ भी जोड़ लें, तो उसका भी फल मिलता है। व्यस्तताओं के बीच अगर आप पूजा के लिए ज्यादा समय नहीं निकाल पा रहे हैं, तो भी आप प्रार्थना के माध्यम से अपने इष्ट को याद कर पुण्य कमा सकते हैं। कुछ विशेष सूत्रों पर ध्यान दिया जाए, तो दैनिक जीवन में धर्म-भावना का समावेश आसानी से किया जा सकता है।
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नित करें गायत्री मंत्र का जप
जहां तक हो सके, सूर्योदय से पहले उठें और उठते समय दोनों पैरों को जमीन पर एक साथ रखें। उसी समय अपने ईष्ट देव का स्मरण करें। उसके बाद हाथों को मुख पर फेरें। उगते सूर्य के दर्शन करें।
स्नानादि के बाद सूर्य को जल, पुष्प, रोली और अक्षत से अर्घ्य दें। इस समय गायत्री मंत्र का पढ़ें। इससे घर के वास्तु-दोष नष्ट हो जाते हैं। यदि घर में स्नान करें, तो पूर्वाभिमुख हो पात्र से जल लेकर वरुण और गंगा आदि तीर्थों का आवाहन कर पांव तथा मुख धोकर स्नान करें। असमर्थ अवस्था में निम्न क्रिया करने से भी स्नान का फल मिलता है। मणिबंध, हाथ तथा घुटनों तक पैर धो कर एवं पवित्र होकर दोनों घुटनों के भीतर हाथ करके आचमन करने से स्नान के समान फल होता है।
गीता का पाठ करें
पूजा-पाठ के समय भगवद्गीता के एक अध्याय और रामचरित मानस की कम-से-कम सात चौपाइयों का अर्थ सहित अवश्य पाठ करें। इससे मानसिक शांति मिलती है। घर में सुख-शांति का वास होता है।
सुबह की पूजा शुभ
यूं तो प्रभु को स्मरण करने का कोई समय निर्धारित नहीं है। जब चाहे उनको याद करें। मगर सुबह की पूजा स्वयं के लिए भी अच्छी होती है, इसलिए स्नान और पूजन सुबह सात से आठ बजे के बीच कर लें।
तुलसी-पूजा का लाभ
दैनिक पूजा में तुलसी का पूजन करना काफी फलदायी होता है, इसलिए घर में तुलसी और आक का पौधा अवश्य लगाएं। शाम के वक्त जब घर के सभी सदस्य मौजूद हों, तो तुलसी के समक्ष खड़े होकर सामूहिक आरती गाएं या पूजा में शामिल हों। परिवार के सभी सदस्यों में भोजन से पहले भगवान के स्मरण की आदत डालें। तुलसी हमारे स्वास्थ्य के लिहाज से भी लाभप्रद होती है।
ऐसा भी करें
वर्ष में एक या दो बार घर में कोई पाठ या मंत्रोक्त पूजन बरह्मण से जरूर करवाएं। साथ ही साथ हवन भी करवाएं। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। घर के सभी सदस्यों को अपने ईष्ट का जाप और पूजन अवश्य करना चाहिए। स्फटिक का श्रीयंत्र, पारद शिवलिंग, श्वेतार्क गणपति और दक्षिणावर्त शंख को पूजा-स्थान में स्थापित करें। अपनी क्षमता के अनुसार समय-समय पर कुछ दान आदि करें या गरीबों को क्षमतानुसार भोजन कराएं। अन्न, वस्त्र, तेल, कंबल, अध्ययन-सामग्री आदि का दान अच्छा माना गया है। दान का लाभ पाना चाहते हैं, तो दान करने के बाद उसका उल्लेख किसी से न करें। जितना हो सके भांजी-भतीजी को कोई-न-कोई उपहार दें। पक्षियों को दाना डालें। घर में भोजन बनाते समय गाय और कुत्ते का हिस्सा अवश्य निकालें।
सूर्योदय से प्रायः दो घंटे पूर्व ब्रह्म-मुहूर्त्त होता है। इस समय सोना सर्वथा निषिद्ध है। इस कारण ब्रह्म-मुहूर्त्त में उठ कर-
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
 करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते कर दर्शनम्।
 मंत्र कहते हुए अपने हाथ देखने चाहिए।

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