गुलबानो (पंजाबी कहानी)
खुशदिल ख़ान गार्ड की बीवी गुलबानो बेहद सुंदर थी। आस-पास के बीसियों गांवों में एक! स़िर्फ एक! दूसरी बनाई ही नहीं थी, बनाने वाले ने। लंबी ऊंची पठानी। मुंह जैसे कच्चे दूध का कटोरा हो! अंग जैसे साग के कोमल डंठल! और सुंदर, मानो परियों की रानी! चांद की कतरन! पर हर परी को जैसे कोई देव अपने पत्थर के किले में कैद करके रखता है, वैसे ही खुशदिल ख़ान गार्ड ने गुलबानो को छिपा रखा था। यूं भी सभी पठान अपनी बीवियों को ऐसे छिपाकर रखते हैं मानो ब्याहकर न लाए हों, उन्हें लूटकर लाए हों कहीं से।
खुशदिल ख़ान गार्ड की बीवी की तो छाया भी कभी किसी मर्द ने नहीं देखी थी। खुले मौसम में सभी गांव की औरतें मिलकर शहर में सौदा खरीदने जातीं। हर औरत उस घड़ी की प्रतीक्षा ऐसे करती, जैसे किसी मेले की। सज-धजकर, बुर्पे पहनकर घर से निकल पड़तीं। सबसे आगे ढोल बज रहा होता। दूर से ढोल की आवाज़ सुनकर पठान रास्ता छोड़ देते। गांव के बाहर जब किसी के देख लेने का भय न रहता तो वे सभी बुर्कों के नकाबों को ऊपर उठा लेतीं और उनके मेहंदी रंगे चांदी की पाजेबों वाले पांव ढोल की ताल पर नाचते-नाचते बावरे हो जाते। क़ाफी समय से ज़बरदस्ती रोककर रखा हुआ नफत्य और उल्लास उनकी एड़ियों से फूट पड़ता।
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जैसे-जैसे वे आगे बढ़तीं, राह में जो-जो गांव आता, उन सबकी औरतें उनके साथ हो लेतीं। लेकिन जब वे खुशदिल ख़ान गार्ड के गांव गढ़ी महाज़ ख़ां पहुंचतीं, तो सभी के दिल में एक टीस-सी उठने लगती। यह दर्द गुलबानो के कलेजे में एक असहय पीड़ा बनकर रह जाता। गांव की सब औरतें उनके साथ हो लेतीं, पर बेचारी गुलबानो घर की दीवारों में घिरी रह जाती। खुशदिल ख़ान गार्ड ने कभी जाने की इजाज़त ही नहीं दी। सारी औरतें खुशदिल ख़ान गार्ड के घर जातीं, पिंजरे में बंद गुलबानो के घर। फिर सब उसके आंगन में नाचना शुरू कर देतीं। ढोल बजता रहता और सेब, अमरूद, भुट्टे, खुरमानियां, चिलगोजे, किशमिश, काजू, गुड़ और मिसरी आदि बांटे जाते। सब मिलकर खातीं और गातीं।
गुलबानो: सौंदर्य नहीं, स्वतंत्रता चाहिए
गुलबानो को देखकर सबके दिल पर बादल की घटाएं बनकर बरसने को हो आतीं। नीचे झुक आते और नीम अंधेरा-सा घिर आता। न बरसते, न रोशनी को और हवा को भीतर आने देते। ढोल की ढम्म-ढम्म के साथ पीड़ा के बोल साकार हो उठते। पठानी औरतें नफत्य करतीं तो उनकी एड़ियों से मानो कोई दर्द विलाप कर उठता। और गुलबानो? उसकी पीड़ा तो उन रातों की तरह थी जिन्हें अंधेरी राहों पर ठोकर लग जाती है और लाखों सितारे जिनके दर्द में कोयले से सुलग उठते। औरतें अपनी राह लेतीं। गुलबानो को लगता, उसके घर की दीवारों की तपती हुई भट्टी में उसका जीवन जलकर राख़ हो जाएगा।
खुशदिल ख़ान गार्ड के यार-दोस्त कहा करते कि उसे भी अपनी बीवी को दूसरी औरतों के संग जाने देना चाहिए, लेकिन वह किसी की न सुनता। लोग कहते, गाय-भैंसों को भी तो झुंड के साथ बाहर भेजते हैं कि नहीं? वह चुप ही रहता।
जब भी औरतों का झुंड खुशदिल ख़ान गार्ड के घर आता, वह क्रोध से लाल हो उठता और बारी-बारी से सबसे झगड़ने लग पड़ता। दफ्तर में मातहतों पर गरम और घर में नौकरों से नाराज़। बच्चों पर बात-बात पर बरसता। बीवी को अहसास कराता कि वो छोटी-सी चींटी से भी गई गुजरी है। हैसियत ही क्या है उसकी? अगर खुशदिल ख़ान से ब्याह न होता उसका, तो क्या करती वो? वह बर्तन फोड़ देता, चीज़ें तोड़ देता।
मानो कोई आंधी घर के दरवाजे तोड़कर अंदर आ गई हो। फिर जैसे-जैसे दिन व्यतीत होने लगते, आंधी खुद-ब-खुद शांत हो जाती। ज़िन्दगी अपनी राह हो लेती, ऐसी राह पर जहां नया कुछ न होता, न ही कुछ नया होने की संभावना होती। गुलबानो के प्राण घर की दीवारों को ऐसे अंगीकार कर लेते, मानो वो उसके जिस्म की ही दूसरी खाल हों। खुशदिल ख़ान गार्ड के घर में बरसों से चंदन नाम का एक व्यक्ति दूध देने आया करता था। उसकी निगाह सदा आंगन में कुछ खोजती-सी रहती, लेकिन उसे गुलबानो के दर्शन कभी नहीं हुए।
नज़रों से बंधा प्रेम, शब्दों से परे एक रिश्ता
फिर एक दिन..
चन्दन ने अभी गागर बरामदे में रखी ही थी कि अंदर आंगन में से गुलबानो गुजरी। उसने चंदन को नहीं देखा, लेकिन चंदन को उसकी एक झलकभर मिल गई। उसे लगा, गुलबानो की खूबसूरती सागर जल से धुली, दूध-सी सफेद, एक चमकदार सीपी के समान है। वह गुलबानो के रूप की एक ही झलक पाकर बादशाह हो गया। चंदन जहां कहीं उठता-बैठता तो गुलबानो की बातें करता। उसका चेहरा ऐसा था, उसकी चाल ऐसी, कपड़े फलां रंग के, गहने.. उसके हाथ.. चलते हुए उसके पांव..
चंदन के सामने से आंगन में गुजरी थी, साकार गुलबानो! और चंदन के मन के अंधेरे आकाश में बिजली-सी कौंध गई।
उनकी आपस में कभी कोई बात नहीं हुई।
गुलबानो ने चंदन की तरफ देखा तक नहीं। चंदन को लगा, जैसे यह सब सपना है, एक ऐसा सपना जो पंख फैलाकर उसके मन में, उसकी आत्मा में, उसकी सोच में, उसके ख़्यालों में, उसके समूचे वजूद को ढककर बैठ गया था। इन मुलायम और गर्म पंखों के नीचे कई चाहतें, कई सपने, कई कल्पनाएं, आशाएं अपनी छोटी, पतली और लंबी गर्दनें निकालकर निरीह और भयहीन आंखों से संसार को स्तंभित-सी देख रही थीं।
एक ओर चंदन था, जिसके दिल की दहलीज गुलबानो की एक ही झलक से खुल गई और धरती-आसमान दोनों उसमें समा गए। दूसरी तरफ खुशदिल ख़ान था, जो गुलबानो की बरसों की निकटता पाकर भी पत्थर बना रहा। एक ऐसा पत्थर जो लावे में जल-भुनकर कंकड़ बन जाता है। एक गुलबानो थी, जो खुशदिल ख़ान के पास रहते हुए भी उससे कोसों दूर थी। और उधर, एक गुलबानो थी, जो चंदन से कोसों दूर रहते हुए भी उसकी सांसों में समाई हुई थी।
इश्क की एक बूंद और पुरुष अहंकार की पूरी आँधियाँ
गुलबानो को उसकी एक सहेली ने बताया कि उसके घर दूध देने वाला चंदन झूम-झूमकर उसके हाथों, पांवों, बालों और होंठों की ताऱीफ में सब तऱफ गाता घूमता है। अगले दिन चंदन की दूध की गागर से एक धार जब उसके घर की गागर में गिरी तो गुलबानो ने द्वार की फांक में से पलकभर देखा। उसे लगा, दूध की एक धार चंदन की गागर से निकलकर उसकी अपनी देह में समा गई है। अब गुलबानो घर के आंगन में चलती तो उसके पांव थिरक-थिरक जाते। उसका जीवन संगीतमय हो गया। गीतों की कड़ियां खुद-ब-खुद उसके होंठों पर आने लगीं। मस्ती के खुमार में आंखों को बंद किए वह देर तक अपने अंदर के गुनगुने पानियों में डूबी रहती।
उसके मानस के खाली पड़े आंगन में एक पौधा उगा, चन्दन के प्यार का पौधा। और उसके जीवन के सभी गंधहीन बरस सुवासित हो उठे, महक-महक उठे। उसकी आत्मा की सीपी में एक बूंद प्यार की टपकी और वह इश्क रूपी असली मोती बन गई। उस बार जब समीप के गांवों की औरतें ढोल की ताल पर नफत्य करतीं उसके घर के आंगन में आईं, तो ढोल भी खुश था और गुलबानो भी खुश! गुलबानो को खुश देखकर सभी औरतें खुश थीं। और गांव से दूर, नदी के किनारे भैंसों को नहलाता चंदन भी खुश। इस दिन यदि कोई खुश नहीं था तो वह था, खुशदिल ख़ान गार्ड।
प्यार की सज़ा मौत — गुलबानो की आखिरी उड़ान
आहिस्ता-आहिस्ता चंदन की कही हुई बातें लोगों की ज़ुबानी खुशदिल ख़ान तक पहुंचीं। उसका सिर घूम गया। आंखों में खून उतर आया। उसी हालत में वह घर पहुंचा। गुलबानो उस समय कपड़े धो रही थी और कपड़े धोने वाले सोटे की ठप्प-ठप्प के साथ कोई गीत गुनगुना रही थी। खुशदिल ख़ान ने वही सोटा उससे छीनकर उसके सिर में दे मारा और कहा, जानती नहीं, गाना क़ुफ्र है? फिर उसकी बांह पकड़कर घसीटते हुए उसे आंगन में ले आया, बता, चंदन वाली बात सच है?
गुलबानो चुप। अपने जीवन में एक अकेले सच को वह कैसे झूठ कह दे? खुशदिल ख़ान उसको घसीटते-घसीटते ऊपर छत पर ले गया, आ, तुझे चंदन से मिलवाऊं..।
फिर उसने छत से गुलबानो को नीचे धक्का दे दिया। वह धड़ाम से गली में आ गिरी। एक चीख़ गूंजी और बस..।
आवाज़ सुनते ही लोग चारों ओर से दौड़ पड़े। खुशदिल ख़ान ने ऊपर छत पर से देखा, उसकी बीवी नंगे मुंह गली में पड़ी है और सब लोग उसे देख रहे हैं। वह दौड़ा-दौड़ा नीचे उतरा। अंदर से एक मोटी चादर लेकर गली में पहुंचा और झटपट गुलबानो के मुंह पर डाल दी।
लेखक – अजीत कौर
अनुवादक – सुभाष नीरव
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