देव, गुरु और धर्म के प्रति श्रद्धा होनी चाहिए : भावरत्नाश्रीजी म.सा.


हैदराबाद, शाहअलीबंडा स्थित ऋषभ आराधना भवन में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन सभा में श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए साध्वी भावरत्नाश्रीजी म.सा. ने कहा कि अनंत उपकारी तीर्थंकर परमात्मा ने भव्य जीवों के बोध के लिए ज्ञान का प्रकाश हम सब के जीवन में लाए। तीर्थंकर परमात्मा फरमाते है कि धर्म में आस्था, श्रद्धा और विश्वास रखने से जीवन परिवर्तित होता है। 84 लाख योनियों में परिभ्रमण करने वाले जीव ने हमेशा ऊंच-नीच की भावना के साथ कार्य किया है और आज भी करता आ रहा है इसलिए उसे सद्गति नहीं मिली। पूर्वोपार्जित संस्कारों से उसने कुछ अच्छे कर्म किए होंगे, जिससे उसे मानव पर्याय मिली तथा देव शास्त्र और गुरुओं का सानिध्य मिला। धर्म के कारण यह जाना कि एकेंद्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीवों में आत्मा एक समान है।

अतः किसी के प्रति राग-द्वेष न रखो और अहिंसा का पालन करते हुए प्रेम, सद्भाव और शांति से जीयो और जीने दो की भावना से कार्य करो, यह मानव का प्रमुख कर्तव्य है। इन कर्तव्यों का सम्यक दिशा निर्देश धर्म ने दिया है और तीर्थंकरों ने बताया कि धर्म ही आत्मोन्नति तथा सच्चे सुख की प्राप्ति का साधन है। म.सा. कहते है कि जिसकी श्रद्धा मज़बूत नहीं होती, उसी के मन में परमात्मा और गुरु के वचनों के प्रति तर्क-कुतर्क उत्पन्न होते हैं। श्रद्धा अध्यात्मिक जगत की प्रथम सीढ़ी है। जब इस व्यवहार जगत में भी व्यक्ति का कार्य बिना श्रद्धा-विश्वास के चल नहीं सकता, तो फिर अध्यात्म जगत में विश्वास और श्रद्धा का होना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि जब सम्यक दर्शन की प्राप्ति अर्थात जड़ व चेतन की ज्ञाता-दृष्टा हम बन जाएंगे, तब सम्यक ज्ञान भी स्वतः सम्यक दर्शन के साथ ही आ जाएगा। किंतु शर्त केवल यही है कि देव, गुरु और धर्म पर हमारी श्रद्धा दृढ़ होनी चाहिए। यदि प्रभु परमात्मा और गुरु के वचनों में श्रद्धा मज़बूत नहीं है तो, सम्यक दर्शन की प्राप्ति कभी होने वाली नहीं है। इस संसार सागर से पार होना है तो देव, गुरु, धर्म के प्रति विश्वास और श्रद्धा चाहिए। विश्वास के बल पर ही व्यक्ति अपना जीवन समतामय व शांतिमय बना सकता है। इसीलिए परमात्मा ने सबसे पहले यही कहा कि सम्यक ज्ञान के साथ सम्यकपूर्वक की जाने वाली क्रिया ही फलीभूत होती है और वही सच्ची श्रद्धा है। देव, गुरु और धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा का होनी चाहिए। सम्यक दर्शन का अर्थ है, सत्य धर्म पर सच्ची श्रद्धा। सम्यक दर्शन की साधना करते हुए यह भलीभांति जान लेना है कि संसार असार है। संसार से अलिप्त होकर संयम जीवन को धारण करना ही इस मानव जीवन का सार है।

चारकमान संघ के मंत्री प्रवीण नाहटा ने संघ को जानकारी देते हुए कहा कि इस अवसरर्पिणी काल के 23वे तीर्थनकर एवं चरकमान मंदिर के मूलनायक परमात्मा पार्श्वनाथ भगवान का निर्वाण कल्याणनक 13 अगस्त प्रात: 6:30 बजे चारकमान मंदिर में मनाया जायेगा।

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