नक्सल-उन्मूलन का आक्रामक अभियान


मार्च 2026 तक नक्सलियों को खत्म करने के लिए छत्तीसगढ़ में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) द्वारा हाल ही में किए गए अभियान वामपंथी उग्रवाद (लेफ्ट विंग एक्सट्रिमिज़्म : एलडब्ल्यूई) के खिलाफ भारत की लंबे समय से चली आ रही लड़ाई में एक महत्वपूर्ण चरण का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह प्रयास केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा पेश की गई व्यापक, गहन उग्रवाद विरोधी रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य उस समय सीमा तक देश को नक्सल हिंसा से पूरी तरह मुक्त करना है।

ग़ौरतलब है कि छत्तीसगढ़, विशेष रूप से बस्तर क्षेत्र, लंबे समय से नक्सल बलों का गढ़ रहा है, जिससे यह सीआरपीएफ अभियानों के लिए एक प्रमुख केंद्र बन गया है। इस अंतिम अभियान के तहत छत्तीसगढ़ में 4,000 से अधिक अतिरिक्त सैनिकों को तैनात किया गया है। नक्सल विरोधी अभियानों की रीढ़ रहे सीआरपीएफ से उग्रवाद के बचे हुए इलाकों को ख़त्म करने में निर्णायक भूमिका निभाने की उम्मीद है। सयाने बता रहे हैं कि 2024 में माओवादियों की मौतों में भारी उछाल आया है, जो 2009 के बाद से सबसे अधिक है। यह उछाल इन अभियानों की तीव्रता को दर्शाता है, जो सीआरपीएफ की सफलता और माओवादी प्रतिरोध द्वारा पेश की गई निरंतर चुनौती, दोनों को उजागर करता है।

जैसा कि गृहमंत्री ने कहा है, सरकार की रणनीति केवल सैन्य कार्रवाई तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें राजनीतिक पहल भी शामिल है। कौन नहीं जानता कि बंदूक के सामने बंदूक रख देने भर से कहीं भी उग्रवाद का उन्मूलन संभव नहीं! यही वजह है कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा एक नई आत्मसमर्पण नीति की योजना बनाई जा रही है, जिसका उद्देश्य उग्रवादियों को हिंसा का त्याग करने और समाज में फिर से शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना है। कठोर शक्ति और नरम उपायों के संयोजन का यह दोहरा दृष्टिकोण सैन्य और वैचारिक, दोनों रूप से नक्सल विद्रोह को कमजोर करने के लिए बनाया गया है।
यह नया आाढामक अभियान पिछले कुछ वर्षों में नक्सलवाद में आए बदलाव को भी दर्शाता है। उग्रवाद में उल्लेखनीय कमी आई है, 2014 से 2024 तक हिंसक घटनाओं में पिछले दशक की तुलना में 53 प्रतिशत की कमी आई है। हालाँकि, छत्तीसगढ़ और पड़ोसी राज्यों में अलग-अलग गढ़ों में प्रतिरोध जारी है, जो माओवादी गुटों की प्रतिरोध को सहने की क्षमता और संघर्षी तेवर को रेखांकित करता है।

यहाँ यह समझ रखना ज़रूरी है कि भले ही केंद्र सरकार ने मार्च 2026 की समयसीमा तय की हो, नक्सल-मुक्त भारत के स्वप्न को साकार करना बहुत सहज नहीं है। इस अभियान का रास्ता चुनौतियों से भरा हुआ है, कंटकाकीर्ण है। घोर जंगलों और पहाड़ों से भरे कठिन इलाकों में उग्रवादियों के ठिकानों की सटीक निशानदेही कर पाना उन्नत प्रौद्योगिकी के इस युग में भी बहुत दुष्कर कार्य है। इन चुनौतियों में, सटीक खुफिया जानकारी एकत्र करना और यह सुनिश्चित करना भी शामिल है कि सुरक्षा अभियान स्थानीय आबादी को अलग-थलग न करें। इसके अलावा, व्यापक सामाजिक-आर्थिक मुद्दे, जो उग्रवाद को बढ़ावा देते हैं – जैसे भूमि अधिकार, गरीबी और आदिवासी असंतोष – को अभी भी स्थायी शांति सुनिश्चित करने के लिए सैन्य प्रयासों के समानांतर सुलझाए जाने की ज़रूरत है।

संक्षेप में, सीआरपीएफ की बढ़ी हुई तैनाती और अभियान भारत की नक्सल विरोधी रणनीति में निर्णायक चरण का संकेत देते हैं, जिसमें उग्रवाद को खत्म करने के लिए सैन्य बल को राजनीतिक और सामाजिक उपायों के साथ जोड़ा गया है। हाल के वर्षों में हासिल की गई पर्याप्त उपलब्धियाँ बताती हैं कि नक्सल मुक्त भारत का लक्ष्य पहुँच के भीतर है, हालाँकि चुनौतियाँ बनी हुई हैं, ख़ासकर छत्तीसगढ़ में, जहाँ संघर्ष की जड़ें बहुत गहरी हैं।

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