ममता बनर्जी बनाम राहुल गांधी
इंडिया ब्लॉक में ममता बनर्जी और राहुल गांधी के योगदान और भूमिका पर हाल ही में चर्चा तेज़ हुई है। खासकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राय को लेकर। यह न अस्वाभाविक है, न अप्रत्याशित। ममता बनर्जी का यह मानना भी स्वाभाविक है कि वे दोनों समान नहीं हैं। इसके मूल में निहित ममता बनर्जी की ताजा सफलता और राहुल गांधी की ताजा विफलता के संदर्भ में इंडिया के भीतर नेतृत्व परिवर्तन की कुलबुलाहट को पहचानना कतई मुश्किल नहीं।
इंडिया ब्लॉक के एकीकृत नेतृत्व और समन्वय के मुद्दे पर बहस एक न एक दिन तो उतनी ही थी। इस संदर्भ में इन दो अहम व्यक्तित्वों के बीच अंतर को समझना विपक्षी गठबंधन के लिए आज ज़रूरी हो गया है। सयाने याद दिला रहे हैं कि ममता बनर्जी, एक ऐसी नेता हैं जिनका बंगाल में गहरा राजनीतिक प्रभाव है और जिनकी राजनीति पर क्षेत्रीयता का स्पष्ट प्रभाव देखा जाता है। वहीं राहुल गांधी की राजनीति का दायरा राष्ट्रीय स्तर पर है और वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सर्वमान्य नेता हैं। इंडिया के नेतृत्व के मुद्दे पर ममता बनर्जी की इधर की मुखरता इस बात को दर्शाती है कि उनका लक्ष्य गठबंधन में अपनी प्रासंगिकता को केंद्रीय बनाए रखना है, जबकि राहुल गांधी सामूहिक नेतृत्व को स्थापित करने पर ज़ोर देते रहे हैं।
वैसे इंडिया में एकजुटता और नेतृत्व का सवाल हमेशा से विवाद का विषय रहा है। एक ओर जहाँ ममता बनर्जी अपनी क्षेत्रीय पार्टी तृणमूल कांग्रेस को केंद्र में रखते हुए अपनी राजनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखना चाहती हैं, वहीं राहुल गांधी कांग्रेस को राष्ट्रीय स्तर पर पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। ये दोनों दृष्टिकोण भारतीय राजनीति की जटिलताओं को और बढ़ाते हैं, क्योंकि भारत की विविधता और क्षेत्रीय ताकतें राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करती हैं।
राहुल गांधी और ममता बनर्जी के बीच अंतर को समझने के लिए भारतीय राजनीति के इतिहास को देखना उचित होगा। कांग्रेस पार्टी, जो लंबे समय तक देश की प्रमुख राजनीतिक शक्ति रही है, आज राष्ट्रीय स्तर पर अपनी खोई हुई स्थिति को पुन प्राप्त करने के लिए संघर्ष कर रही है। दूसरी ओर, ममता बनर्जी ने बंगाल में अपने नेतृत्व से भाजपा को चुनौती दी है और अपनी पार्टी को राज्य स्तर पर मजबूत किया है। ऐसे में दोनों नेताओं के बीच राजनीति की प्रकृति और क्षेत्रीयता का स्पष्ट भेद नजर आता है।
वर्तमान में इंडिया ब्लॉक विपक्षी एकता के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहा है। गठबंधन में विभिन्न दलों की अलग-अलग प्राथमिकताएँ और नेतृत्व को लेकर अलग-अलग विचारधाराएँ हैं, जिनके समन्वय के बिना इसका अस्तित्व कोई अर्थ नहीं रखता। ममता बनर्जी और राहुल गांधी दोनों के बीच इस तरह के मतभेदों का होना भी कोई अजूबा नहीं है। ज़रूरत इस बात की है कि दोनों नेताओं के बीच किसी प्रकार के सामूहिक नेतृत्व की दिशा में सहमति बने। इसके लिए संवाद ज़रूरी है, जबकि ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ही नहीं, अन्य घटक दलों के नेताओं के बयान भी इसे विवाद की दिशा में ले जाते दिखाई दे रहे हैं।
इस प्रकार, ममता बनर्जी की मुखरता इस ओर इशारा करती है कि इंडिया ब्लॉक में प्रत्येक दल को अपनी पहचान और स्वायत्तता बनाए रखते हुए एकजुट होना होगा। ये दल अपने-अपने क्षेत्र में प्रभावी बने रहेंगे, तो ही गठबंधन का उद्देश्य सफल हो सकता है। लेकिन यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि इस एकता के नाम पर किसी एक दल का वर्चस्व न बढ़े और एक समान दृष्टिकोण से कार्य किया जाए। आखिर, गठबंधन का उद्देश्य केवल भाजपा के खिलाफ एक विकल्प तैयार करना नहीं, बल्कि लोकतंत्र और समावेशी राजनीति के सिद्धांतों को पुन स्थापित करना भी होना चाहिए।