सोने की गिन्नी
(प्रभा पारीक)
बचपन से लेकर आज तक न जाने क्यों, अनेक बार खोलकर देख लेने के बावजूद हमारे लिए अम्मा की अलमारी एक रहस्य ही रही। जब भी माँ अलमारी खोलकर साफ करने के लिए बैठतीं तो हम सबसे पहले आ धमकते, जबकि हमें कुछ चीजों का निश्चित रूप से पता ही था कि अलमारी के किस खाने में क्या रखा हुआ है। एक खाना था जिसमें छोटी बहन की दूध पीने की कांच की बोतल थी। उस बोतल से दोनों तरफ से दूध पिया जा सकता था। जिसे न जाने क्यों अम्मा ने संभालकर रखा था। बड़े होने पर समझ आया था कि अम्मा अपनी दूसरे नंबर की बेटी को खो चुकी थीं, ये उसकी यादें थीं, जिसे सहेजने का औचित्य बहुत देर से समझ आया था।
अम्मा ने अपने विवाह के कुछ कपड़े सहेजकर रखे थे और कुछ हमारे बचपन के सामान और कपड़े भी थे। जब हम बड़े हुए और थोड़ी समझ आने पर हमें भी उन वस्तुओं से प्यार-सा हो गया था। अम्मा की अलमारी के एक खाने में पुरानी वायल की साड़ी के टुकड़े में लपेट मां का विवाह का लहंगा रखा था। अम्मा जब शादी के बाद मात्र 13 वर्ष की उम्र में आई थीं। सो छोटी-सी बहू का छोटा-सा लहंगा। हमारे समझ आने तक तो वह हमारे लिए भी छोटा पड़ने लगा था। जब भी वो अलमारी से बाहर निकलता हम पुलकित होते और सोचते अम्मा इसे पहनकर कैसी लगती होगीं।
वह सोने की छोटी-छोटी चूड़ियां और पायल माँ ने आज तक किसी को न तो दी और नहीं बदलाई थीं। एकाध मर्दाना साफे और टोपियां, जो अम्मा की अलमारी में सहेज कर रखे थे। उनके समय पुरुषों के लिए भी सिर पर कुछ पहनना अनिवार्य था। कुछ चीजें हमारे लिए अजूबा थीं जैसे –महिलाओं को कान में पहनने वाले गहनों का भार न सहन करना पड़े, इसके लिए सोने की बनी तरह-तरह की गूंथी हुई डोरियां, हाथ फूल आदि परंपरागत गहने। जिन्हें हम रोमांच से हाथ में लेकर देखते। थोड़े बड़े हुए तो पहनकर भी देखे थे।
आज अम्मा को गए तीन वर्ष हो गए। उनकी अलमारी आज वर्षों बाद खुली। कुछ समय से अम्मा घर के बाहर ही थीं। उनके कहने पर जरूरत का सामान भाई ही निकाल कर ले जाते रहे। इसलिए आज अलमारी उतने सलीके से जमी हुई नहीं थी। उसमें दूसरों के हाथ जो लग चुके थे। बेटों की बहुओं के लिए मँ ने जो कुछ अलमारी में रख रखा था, वह उन्हे समय पर दे दिया था फिर भी अम्मा की नजर में ऐसा बहुत कुछ था, जो उनके लिए बहुत कीमती था।
अम्मा की सगाई में नानाजी ने पिताजी को एक सोने की गिन्नी तिलक करके दी थी। अम्मा ने उसे अभी तक संभालकर रखा था। बीमार होने से पहले एक दीपावली पर अम्मा ने मुझसे लक्ष्मी पूजा का सारा सामान बाहर निकलवाया था, जिसमें पुराने दो और पांच रुपये की गड्डियां भी थीं। जिनकी आगे चलने की संभावना नहीं थी, मां ने वो भाभी को सौंप दी थी। साथ ही अम्मा भाभी को यह बताना नहीं भूली थीं कि यह सौ और दौ रुपये उन्होंने कैसे जोड़कर यह गड्डियां मंगवाई थीं। आज मां के लाल लाखों कमा रहे हैं। जानती भी थीं अम्मा, कि उनके अलावा किसी को उनकी कदर नहीं होगी।
अम्मा ने कितनी ही बार अलमारी को लेकर उनका मजाक बनाए जाने को सहा। लेकिन उनका किसी बात को दिल पर लेने का स्वभाव ही नहीं था। उनको अपनी अलमारी को लेकर लगाव वैसे ही बना रहा। आज अम्मा अपनी प्रिय अलमारी यहीं छोड़कर जा चुकी हैं, जैसे सब छोड़ जाते हैं और हम भी जाने वाले हैं।
उस दिन मुझे अम्मा की अलमारी खाली करने का काम सौंपा गया था। भारी मन से एक-एक चीज को बाहर निकाल रही थी। जिन्हें मैं विवाह से पहले भी कई बार निकालकर निहार चुकी थी।
अम्मा का इस अलमारी से लगाव याद आ रहा था। आज अम्मा के बच्चों के घरों में इस अलमारी के लिए कोई जगह नहीं थी। इसलिए अम्मा की पुरानी कामवाली को अलमारी देने का सोचकर निर्णय किया था कि स्वर्गवासी अम्मा को बुरा नहीं लगेगा। भाभी से मैंने कई बार आग्रह भी किया था, `क्या हम अम्मा की यह अलमारी सामान सहित दे दें?’ भाभी का कहना था, नहीं दीदी, आप देख लो कहीं कुछ ऐसा रह न जाए कि बाद में अफसोस हो।’ इसलिए मैं सामान निकालती रही, कुछ भाभी के लिए रखा, कुछ अपनी संवेदनाओं पर विजय न पा सकी तो खुद के लिए रखा। मैं जानती थी कि मेरे बाद भी यह सामान ऐसे ही निकालकर किसी को दे दिया जाएगा।
मुझे याद है, जाने से पहले उस साल अम्मा ने दीपावली पूजा के बाद सारा सामान वापस रखवाया था। भाभी ने रखते समय लिस्ट बनाकर मां को पकड़ाई थी। अगली दिवाली तक मां का स्वास्थ्य काफी कमजोर हो गया था। उस दिवाली मैं भी वहीं थी। मैंने ही अम्मा के कहने पर सारा सामान निकालतक लक्ष्मी पूजा के लिए धोया-पोंछा था। भाभी ने पूजा करते समय मुझसे पूछा था। `गिन्नी क्यों नहीं निकाली दीदी?’ मैंने बताया, मैंने तो सब निकला है, जो सब वहां था।’
भैया अलमारी के लॉकर में देखने भी गए। भैया ने आकर इशारा किया कि वहां नहीं मिली। मां अस्वस्थ थीं। भाभी वहीं होगी, कहकर अलमारी का अखबार बदलने के बहाने ढूंढ़ने का प्रयास करती रही थी। सब चिंतित थे। सोचा या तो पिछले वर्ष भाभी से सामान रखते समय गिर गई होगी। दिवाली के दूसरे दिन हर व्यक्ति चुपके-चुपके गिन्नी ढूंढ़ रहा था। शाम तक भाभी के मना करने पर भी अम्मा को सच-सच बता दिया था। यह तो भला हो मां का कि उन्होंने हमें किसी को कुछ नहीं कहने दिया। भाभी का दिल अम्मा की प्रतिक्रिया के विचार से धड़क रहा था। अंत में न जाने क्या सोचकर अम्मा ने भाभी से कहा था,`कोई बात नहीं लक्ष्मी को लक्ष्मी चली गई। ‘अर्थात हमारी वृद्ध कामवाली लक्ष्मी को लक्ष्मी मिल गई। वर्षों बीत गए, हम सब इस बात को भी भूल गए। अब तो लक्ष्मी को स्वर्ग सिधारे भी वर्षों बीत गए थे। अलमारी से सामान निकालने के बाद भाभी की आवाज आई, दीदी अखबार भी बदल देना।’
मैं नए अखबार अलमारी में ठीक से बिछा रही थी। अचानक नीचे वाले खाने से अखबार निकालते समय कुछ आवाज़ सुनाई दी तो सोचा कोई सिक्का होगा। कुछ देर बाद अंतिम खाने का अखबार बदलते समय अलमारी में चमकती हुई वह गिन्नी नजर आई, क्या संजोग था? भाभी बार-बार नाश्ता करने के लिए बुला रही थी। भैया घूमने जाने की सोच रहे थे और मैं अम्मा की गिन्नी मुट्ठी में दबाये सोच रही थी कि इस खजाने की घोषणा कैसे की जाए? मैं भाभी के पास गई और मुट्ठी खोलकर दिखाई तो भाभी आश्चर्य चकित होकर गिन्नी देखती रह गईं। भाभी याद करके कहने लगी, `दीदी हमने इस गिन्नी को लेकर किस-किस पर शक नहीं किया? कितनों के बारे में हम गलत सोचते रहे। उन लोगों की खुशी का कारण हमें सदा हमारी गिन्नी ही लगी। यह तो भला हो अम्मा ने किसी को कुछ नहीं कहने दिया। ‘भाभी को बीते वर्षों की बातें याद आ रही थीं। नाश्ता ठंडा हो चुका था। कुछ देर बाद भाभी ने ऐलान करते हुए कहा, दीदी अम्मा नहीं है, पर ईश्वर ने इसे आपके लिए ही रखा था। अब आप ही इसे रखियेगा।’
मैं खड़ी अभी यह सोच रही थी कि अम्मा ने अथवा भगवान ने इसे मेरे लिए अभी तक छुपाकर रखा है। आज बेटी की शादी के समय वह गिन्नी भैया ने मेरे हाथ में थमाई। मन गग्दद रह गई। भैया ने अपने बच्चों की शादी के बजाय मेरे बच्चों की शादी के बारे में सोचा। ऐसा आशीर्वाद और भाई-भाभी भगवान सबको दे।