2024 : सबक और संदेश

वर्ष 2024 की विदा वेला। व्यतीत होता यह साल दुनिया, विशेषकर भारत, के लिए कई अहम संदेश दे रहा है। भू-राजनीतिक बदलावों से लेकर जलवायु संकट और सामाजिक उथल-पुथल तक, इस वर्ष ने मानव समाजों की भंगुरता और सहनशक्ति, दोनों को उजागर किया। इसने देशों को तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में अपनी प्राथमिकताओं को फिर से निर्धारित करने की चुनौती दी।
2024 को भू-राजनीति के एक निर्णायक वर्ष के रूप में याद किया जाएगा। पोन संघर्ष गहराया, रूस ने पश्चिमी हस्तक्षेप के खिलाफ कड़ी चेतावनी दी, और तीसरे विश्व युद्ध का डर पैदा हुआ। नाटो का पोन को समर्थन पश्चिमी एकता का प्रतीक था, लेकिन इसने वैश्विक उत्तर और दक्षिण के बीच बढ़ती खाई को भी उजागर किया। भारत के लिए, यह तटस्थ रुख अपनाने का अवसर था, जैसा कि जी-20 शिखर सम्मेलन में इसकी नेतृत्व क्षमता से स्पष्ट हुआ। भारत ने वैश्विक दक्षिण की आवाज को मजबूत करते हुए वैश्विक चुनौतियों के लिए न्यायपूर्ण समाधान की वकालत की।
उधर, अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता ने प्रौद्योगिकी, व्यापार और क्षेत्रीय विवादों में और अधिक तीव्रता पाई। पैंगोंग झील पर चीन के पुल के संचालन और उसकी बेल्ट एंड रोड पहल (जिसमें नेपाल की औपचारिक भागीदारी शामिल है) के विस्तार ने उसकी महत्वाकांक्षा को स्पष्ट किया। भारत ने सेमीकंडक्टर समझौतों और क्वाड देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी से इसका जवाब दिया।
2024 की जलवायु आपदाओं ने स्पष्ट संदेश दिया कि मानवता काल-कवलित होने की दिशा में दौड़ रही है। केरल के वायनाड में विनाशकारी भूस्खलन से लेकर यूरोप में अभूतपूर्व गर्मी तक, यह वर्ष प्रकृति के प्रकोप का साक्षी रहा। कॉप-29 ने प्रतिबद्धताओं को दोहराया, लेकिन वादों और कार्यों के बीच की खाई साफ दिखी। भारत के लिए, यह चेतावनी और भी गंभीर थी। वायनाड त्रासदी ने सतत विकास की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। नीति निर्माताओं ने आर्थिक विकास और इको-संतुलन के बीच सामंजस्य की ज़रूरत महसूस की।
सामाजिक अशांति 2024 की एक और व्यापक विशेषता रही। बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर छात्र आंदोलन और भारत में जाति आधारित हिंसा ने समाजों में व्याप्त असमानताओं को उजागर किया। भारत के सर्वोच्च न्यायालय का अनुसूचित जाति/जनजाति के वर्गीकरण पर निर्णय एक ऐतिहासिक क्षण था, जिसने आरक्षण नीतियों की समावेशिता पर बहस छेड़ दी। इन घटनाओं ने सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए संरचनात्मक असमानताओं को दूर करने की ज़रूरत का बोध कराया।
प्रौद्योगिकी ने वैश्विक परिदृश्य को बदलना जारी रखा, लेकिन इसके साथ चुनौतियाँ भी आईं। 19 जुलाई को हुए साइबर हमलों ने अहम बुनियादी ढाँचे की कमजोरियों को उजागर किया। इससे मजबूत डिजिटल सुरक्षा ढाँचे की ज़रूरत का पता चला। भारत, अपनी उभरती डिजिटल अर्थव्यवस्था के साथ, इन संदेशों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी प्रगति की रक्षा कर सकता है।
2024 में भारत का उदय एक प्रभावशाली वैश्विक शक्ति के रूप में हुआ। जी-20 के नेतृत्व से लेकर त्रिपुरा शांति समझौते जैसे क्षेत्रीय विवादों के समाधान तक, भारत ने मध्यस्थ और दूरदर्शी के रूप में अपनी क्षमता प्रदर्शित की। आईएनएस अरिघात के चालू होने जैसे मील के पत्थर ने भारत की रक्षा क्षमताओं को दिखाया, जो क्षेत्रीय स्थिरता को सुनिश्चित करने की इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। लेकिन, चुनौतियाँ भी बनी हुई हैं। मणिपुर में हिंसक घटनाओं और कोलकाता में महिला डॉक्टर के बलात्कार व हत्या ने समाज में गहरी जड़ें जमाए बैठी नस्ली और स्त्राद्वेषी मनोवृत्तियों को उजागर किया। ऐसी घटनाओं को केवल कानून-व्यवस्था के मुद्दे नहीं, बल्कि व्यापक प्रणालीगत विफलताओं के प्रतिबिंब मानकर तुरंत समाधान करने की ज़रूरत सामने आई।
2024 ने सामूहिक ज़िम्मेदारी की ज़रूरत को रेखांकित किया। इसने याद दिलाया कि जलवायु परिवर्तन, असमानता या भू-राजनीतिक तनाव जैसी वैश्विक चुनौतियों का समाधान सहयोग से ही संभव है। भारत के लिए, इस वर्ष ने व्यावहारिकता और नैतिक अधिकार के अनूठे मिश्रण के साथ नेतृत्व करने की उसकी क्षमता को पुन स्थापित किया।
कहना न होगा कि 2025 में प्रवेश करती दुनिया 2024 का यह सबक साथ लेकर चल रही है कि सहनशीलता, समानता, और एकता ही वह कुंजी है जिससे समकालीन जटिल वैश्विक व्यवस्था का दुर्गद्वार खुल सकता है। भारत के लिए, आगे का मार्ग स्पष्ट है – इन मूल्यों को अपनाए और विश्व-मित्र के रूप में अपनी आकांक्षाओं और ज़िम्मेदारियों को पूरा करे। अपनी आंतरिक चुनौतियों का तो ख़ैर मजबूती से समाधान करना है ही।
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