सभी निजी संपत्तियाँ भौतिक संसाधन नही : कोर्ट
नई दिल्ली, एक महत्वपूर्ण फैसले में उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को 7 अनुपात 2 के बहुमत से फैसला दिया कि सभी निजी संपत्तियाँ समुदाय के भौतिक संसाधन का हिस्सा नही हो सकती हैं, जिससे सरकारों को संविधान के तहत सार्वजनिक हित में वितरण के लिए उन्हें अपने अधिकार में लेने का अधिकार मिल जाता है। भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की संविधान पी के फैसले ने संविधान के अनुच्छेद 31 सी और 39 (बी) की व्याख्या पर स्पष्टता प्रदान की, जो सार्वजनिक हित के लिए संसाधनें को नियंत्रित करने के सरकारों के अधिकार के खिलाफ व्यक्तियें के अधिकारों से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधान है।
बहुमत का फैसला कानूनी लिहाज से अहम है जिसका संपत्ति और संसाधन के वितरण पर असर पड़ेगा, खासकर महाराष्ट्र में, जहाँ पुरानी इमारतें गंभीर सुरक्षा खतरे पैदा कर रही हैं और उनका जीर्णेद्धार एक प्रमुख मुद्दा है। शीर्ष अदालत द्वारा हल किया गया जटिल कानूनी प्रश्न यह था कि क्या निजी संपत्तियें को अनुच्छेद 39 (बी) के तहत समुदाय का भौतिक संसाधन माना जा सकता है और क्या सार्वजनिक हित में वितरण के लिए इन पर सरकार द्वारा अपने अधिकार में लिया जा सकता है।
सीजेआई ने दो मुद्दों पर निर्णय के लिए छह अन्य न्यायाधीशों – न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा, न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की ओर से बहुमत से 193 पृष् का फैसला दिया। नौ न्यायाधीशों की पी में न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना भी थी जो बहुमत के विचार से केवल आंशिक रूप से सहमत थी, जबकि न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने बहुमत की राय के प्रति असहमति जताई। बहुमत का फैसला 1978 के रंगनाथ रेड्डी मामले में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर द्वारा व्यक्त विचार से सहमत नही था, जिसमें यह माना गया था कि निजी संपत्तियें को सामुदायिक संसाधन माना जा सकता है। (भाषा)