बतुकम्माकुंटा भूमि पर अपील याचिका खारिज

हैदराबाद, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने स्पष्ट करते हुए कहा कि बाग अम्बरपेट स्थित विवादास्पद बतुकम्माकुंटा भूमि के मामले में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। भूमि की प्रकृति तथा भूमि पर अधिकार का निर्णय सिविल कोर्ट में ही किया जाना चाहिए। अदालत ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद-226 के तहत उच्च न्यायालय इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। इसके साथ ही कहा कि अदालत इस महीने की 7 तारीख को सिविल कोर्ट में निपटाए जाने वाले एकल न्यायाधीश के फैसले में हस्तक्षेप नहीं करेगी।

याचिकाकर्ता सुधाकर रेड्डी ने उच्च न्यायालय की शरण लेते हुए बताया कि उन्होंने सय्यद आजम से एक अपंजीकृत विक्रय पत्र के माध्यम से अंबरपेट मंडल के बाग अम्बरपेट के सर्वे नं. 563/1 में 7 एकड़ भूमि खरीदी गई थी। अम्बरपेट तहसीलदार, जीएचएमसी और हैड्रा को इस जमीन के मामले में हस्तक्षेप न करने का आदेश देने का आग्रह किया। याचिकाकर्ता ने कहा कि उनकी जमीन में कोई तालाब नहीं है और यह निर्माण के लिए उपयुक्त समतल जमीन है। लेकिन बिना किसी सबूत के इस जमीन को अधिकारी तालाब की जमीन बता रहे हैं। इस मामले पर इससे पूर्व एकल न्यायाधीश ने फैसला सुनाया था कि राजस्व रिकॉर्ड या भूमि अधिकार से संबंधित दस्तावेजों में नाम दिखाए बिना भूमि पर अधिकार का दावा करना अमानवीय है।

उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आलोक अरधे और जस्टिस जे. श्रीनिवास की खण्डपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की और अपील याचिका को खारिज करते हुए अपना फैसला सुनाया। खण्डपीठ ने कहा कि सिविल विवाद में संपत्ति के अधिकार के मुद्दे का फैसला सिविल कोर्ट को ही करना चाहिए न कि उच्च न्यायालय को। इसके साथ ही खण्डपीठ ने याचिकाकर्ता को सिविल कोर्ट में भूमि पर अधिकार का निपटारा करने की सलाह दी।

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