हत्या के बाद बलात्कार करने वाले की जमानत याचिका खारिज

हैदराबाद, अपने मालिक की पत्नी की हत्या करने के बाद उसके शव के साथ बलात्कार कर अपनी कामेच्छा पूरी करने वाले वहशी पश्चिम बंगाल निवासी नयन बिसवास की अग्रिम जमानत को आंध्र-प्रदेश उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। आंध्र-प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस तल्ला प्रगड़ा मल्लिकार्जुन राव ने नयन बिसवास द्वारा अग्रिम जमानत हेतु दायर याचिका पर हाल ही में सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुनाया। उन्होंने बताया कि जिस महिला ने उसे भोजन करवाया, आरोपी नयन ने उसी के साथ विश्वासघात किया।

अपने मालिक की पत्नी की हत्या कर उसके शव के साथ बलात्कार कर नयन बिसवास ने घृणित कार्य किया, जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। इस मामले को लेकर पुलिस ने अदालत में आरोप-पत्र दायर किया है, जिस कारण आरोपी की अग्रिम जमानत मंजूर करना संभव नहीं है। न्यायाधीश ने कहा कि आरोपी की अग्रिम जमानत मंजूर कर उसे छोड़ा जाता है, तो वह समाज के लिए घातक साबित होगा।

इस प्रकार के मामलों में आरोपी की अग्रिम जमानत मंजूर नहीं की जा सकती है। सुनवाई के दौरान बताया गया कि पोट्टि श्रीरामुलू नेल्लूर ज़िला, कावली निवासी व्यक्ति पिछले 15 साल से अस्पताल का संचालन कर रहा है। उसी अस्पताल में पश्चिम बंगाल निवासी नयन बिसवास कम्पाउंडर के रूप में कार्य करते हुए अस्पताल के संचालक के घर पर ही रह रहा था।

नयन बिसवास की लम्बे समय से अपनी मालकिन पर बुरी नजर थी

संचालक की पत्नी नयन बिसवास को भोजन देने के अलावा उसे अपने घर में पनाह भी दे रखी थी, लेकिन नयन बिसवास की लम्बे समय से अपनी मालकिन पर बुरी नजर थी। 31 दिसंबर, 2024 की देर रात और 1 जनवरी, 2025 के तड़के अपने कमरे में गहरी नींद में सो रही मालकिन के साथ नयन बिसवास ने बलात्कार का प्रयास किया और मालकिन के नींद से जागकर विरोध करने पर उसके सिर पर किसी वस्तु से जोरदार प्रहार कर उसकी हत्या कर दी।

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इसके बाद उसके शव को घर के बाहर सूनसान इलाके में ले जाकर उसके साथ बलात्कार किया। मृतका के पति की शिकायत पर कावली वन टाउन पुलिस ने मामला दर्ज कर नयन बिसवास को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने कहा कि इस प्रकार के मामलों में अग्रिम जमानत देना संभव नहीं है।

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मालिक के घर रहते हुए नयन ने उन्हीं का नमक खाकर उनके साथ नमक हरामी की है। ऐसे कामांध व हत्यारे को जेल में रखना ही उचित है, इन्हें जेल से बाहर छोड़ने पर वे समाज के लिए किसी भी रूप में लाभदायक नहीं होंगे। इस दलील के साथ न्यायाधीश ने जमानत मंजूर करने से इनकार करते हुए दायर याचिका खारिज कर दी।

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