बंगाल के अंदर

     नरेंद्र राय

वीरान हो गइ सड़काँ, सुनसान हो गइ गल्ली।

बंगाल के अंदर होरइ, ये कैसी खलबली।।

बच्चौं के मूँसे, दूद की बोतला छिटक्को गइ,

मासूम जवानी की लेओ गरदन लटक्को गइ।

आदम(1) के जिसम(2) की त़ाकत भटक्को गइ,

साड़ी उड़ी हवा में, कित्ती चोलियाँ फटी।

बंगाल के अंदर होरइ, ये कैसी खलबली।।

बरबादियों का नाच, शहेर भर में चलराएना,

मज़ब के नाम्पो(3), मज़बूरों का घरिच(4) जलराएना।

समज में सोब के आराए, कोन किस्कू छलराए याँ,

ईमान बेघर होराए, बेमान पलराए ना।

लाचार लोगाँ पो(5) याँ कित्ती लाठियाँ चली, 

बंगाल के अंदर होरइ, ये कैसी खलबली।।

धैशतगरदौं(6) के हात से, कित्ते मंदिराँ तुटे(7),

हैवानियत इत्ती बड़गइ, सोब हिन्दुवाँ लुटे।

मालूम नइँ अंदर-अंदर, कित्ते सिराँ कटे,

जलरैं सो मकानौं में, कित्तौं के दम घुटे।

खिलने के पैले(8), चिंदी-चिंदी होगइना कली,

बंगाल के अंदर होरइ, ये कैसी खलबली।।

इन्सानियत का नामोनिशाँ मिटगया कते(9),

हुकुम्मतों का तख़्ता, पलट गया कते।

थोड़े जन-जान बचाने, याँ-वाँ भागरैं कते,

थोड़े कोम्पों(10) में लोगाँ, रात-रात जागरैं कते।

बदमाश मुल्काँ वाले, इनकू पड़ारैं पट्टी(11),

बंगाल के अंदर होरइ, ये कैसी खलबली।।

भारत हमेशा करता है जी बात अमन(12) की,

काँटौं की भराटियौं की नइँ, फूलौं की चमन की।

भारत कबी बी(13), अपनी तऱफ से तो नइँ लड़ा,

कोइ लड़ने कू आयातों, उस्का तोड़ता जबड़ा।

मेरा मुलुक तो, सोब से निभाता है दोस्ती,

बंगाल के अंदर होरइ, ये कैसी खलबली।।

शब्दार्थ- 1.मनुष्य, 2.शरीर, 3.नाम पर, 4.घर ही, 5.पर, 6.आतंकवादी, 7.टूटे, 8. पहले, 9. कहते हैं, 10. परिवारों, 11.उकसारहे,  12. शान्ति, 13.भी।

Exit mobile version