भीष्म नीति में हैं जीवन और धर्म के गूढ़ रहस्य

महाभारत के महासंग्राम में गंगा पुत्र भीष्म को बाणों से बिंधे होने के बावजूद मृत्यु छू नहीं पाई, क्योंकि उन्हें इच्छा-मृत्यु का वरदान प्राप्त था। उन्होंने पूरा युद्ध अपनी बाणों की शैय्या पर लेटकर देखा। युद्ध समाप्ति के बाद जब धर्मराज युधिष्ठिर शोक और संशय में थे, तब भीष्म ने उन्हें इसी शय्या पर लेटे हुए, जीवन और धर्म के गूढ़ रहस्यों का ज्ञान दिया। यही उपदेश भीष्म नीति के नाम से प्रसिद्ध हुए, जिनमें राजधर्म, मोक्षधर्म और संकटकाल के सिद्धांत शामिल थे। यहाँ प्रस्तुत है, उनके कुछ प्रमुख उपदेश।
मन पर नियंत्रण: भीष्म ने युधिष्ठिर को समझाया कि मनुष्य का मन अत्यंत चंचल होता है, जो क्षण भर में भटक जाता है। सफल और संतुलित जीवन जीने के लिए व्यक्ति को सबसे पहले अपने मन को वश में रखना सीखना चाहिए।
त्याग का महत्व: उन्होंने कहा कि संसार में बिना त्याग के कोई बड़ी उपलब्धि या सिद्धि प्राप्त नहीं की जा सकती। सच्चा त्याग ही मनुष्य को वास्तविक सुख और खुशियाँ प्रदान करता है।
क्रोध पर विजय: भीष्म ने बताया कि क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। व्यक्ति को कभी भी क्रोध के अधीन होकर अपना विवेक नहीं खोना चाहिए। क्रोध पर नियंत्रण रखना अत्यंत आवश्यक है।
स्त्रा का सम्मान: यह सबसे महत्वपूर्ण उपदेशों में से एक था। भीष्म ने स्पष्ट किया कि स्त्रा का सम्मान करना ही उसका पहला सुख है, जिस घर या समाज में नारी का आदर नहीं होता, वहां सुख-समृद्धि कभी वास नहीं करती।
सत्य की शक्ति: उन्होंने सत्य को सबसे बड़ा तप बताया। सत्य मनुष्य को उत्थान और स्वर्ग की ओर ले जाता है, जबकि झूठ अंधकार की ओर धकेलता है, जिससे निराशा और पतन निश्चित होता है। सत्यवादी हमेशा उन्नति करता है।
मधुर वाणी: भीष्म ने सलाह दी कि व्यक्ति को हमेशा मीठी और प्रेमपूर्ण वाणी का प्रयोग करना चाहिए। कटु वचन, निंदा और अपमानजनक बातें करना मनुष्य के अवगुण हैं, जिन्हें तुरंत त्याग देना चाहिए। हमेशा ऐसे वचन बोलें, जो सुनने वाले को प्रिय लगे।
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