बुल्डोजर पर ब्रेक, नोटिस दिए बिना ध्वस्तीकरण मान्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने हाल में चलन में आए बुल्डोजर न्याय की तुलना अराजकता की स्थिति से की और देशभर के लिए दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा कि कारण बताओ नोटिस दिए बिना किसी भी संपत्ति को ध्वस्त नहीं किया जाए तथा प्रभावितों को जवाब देने के लिए 15 दिन का वक्त दिया जाना चाहिए।

न्यायालय ने कहा कि प्राधिकारी उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना नागरिकें की संपत्ति को ध्वस्त करके उन्हें दंडित नहीं कर सकते। न्यायालय ने ऐसी ज्यादतियें को मनमाना करार दिया और कहा कि इससे सख्ती से निपटे जाने की जरूरत है।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पी ने एक इमारत को बुल्डोजर से ध्वस्त करने और महिलाओं, बच्चों तथा वृद्ध व्यक्तियें को रातों-रात बेघर कर देने के दृश्य को भयावह करार दिया।

पी ने अपने 95 पृष् के फैसले में कहा, यदि प्राधिकारी न्यायाधीश की तरह काम करते हैं और किसी नागरिक पर इस आधार पर मकान ढहाने का दंड लगाते है कि वह एक आरोपी है तो यह शक्तियें के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन है। इसमें कहा गया है, जब प्राधिकारी नैसर्गिक न्याय के मूल सिद्धांतों का पालन करने में विफल रहते हैं और वाजिब प्रक्रिया के सिद्धांत का पालन किए बिना काम करते हैं, तो बुल्डोजर द्वारा इमारत को ध्वस्त करने का भयावह दृश्य एक अराजक स्थिति की याद दिलाता है, जहाँ ताकतवर ही जीतेगा।

पी ने कहा कि इस तरह की मनमानी कार्रवाइयें के लिए संविधान में कोई जगह नहीं है, जो कानून के शासन की बुनियाद पर टिका हुआ है। पी ने कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि उसके निर्देश उन मामलों में लागू नहीं होंगे जहाँ सड़क, गली, फुटपाथ, रेल पटरी या किसी नदी या जलाशय जैसे किसी सार्वजनिक स्थल पर कोई अनधिकृत संरचना है तथा उन मामलों में भी लागू नहीं होंगे जहाँ न्यायालय ने ध्वस्तीकरण का आदेश दिया है।

पी ने कहा, कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना (संपत्ति) ढहाने की कोई भी कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। इस नोटिस का जवाब स्थानीय नगर निकाय कानून के अनुरूप निर्धारित अवधि में देना होगा या फिर नोटिस तामील होने के 15 दिन के भीतर देना होगा। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि संवैधानिक लोकाचार और मूल्य शक्ति के इस तरह के दुरुपयोग की अनुमति नहीं देते और इस तरह के दुस्साहस को अदालत द्वारा बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

पी ने कहा, प्राधिकारी न्यायाधीश बनकर यह निर्णय नहीं ले सकते कि आरोपी व्यक्ति दोषी है और इसलिए उसकी आवासीय/व्यावसायिक संपत्ति/संपत्तियें को ध्वस्त करके उसे दंडित किया जाए। अधिकारी का ऐसा कृत्य उसकी सीमाओं का उल्लंघन होगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य के अधिकारियें की ओर से शक्तियें के मनमाने इस्तेमाल के संबंध में नागरिकें के मन में व्याप्त आशंकाओं को दूर करने के लिए हम संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियें का प्रयोग करते हुए कुछ निर्देश जारी करना आवश्यक समझते हैं। अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय को उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक कोई भी डिक्री या आदेश पारित करने का अधिकार देता है। (भाषा)

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