पर पीड़ा समझने वाला प्रभु को अतिप्रिय : राधाकृष्णजी

हैदराबाद, जो दूसरों के दुख को समझता है वह भगवान को सबसे ज्यादा प्रिय होता है। जिसका दिल दूसरों की तकलीफ, पीड़ा को समझने में सक्षम होगा, जो गाय की पीड़ा को समझेगा , वही भगवान के हृदय में स्थान बनायेगा। उक्त उद्गार अत्तापुर स्थित एसएनसी कन्वेंशन हॉल में ध्यान फाउंडेशन श्याम बाबा नंदीशाला, ध्यान फाउंडेशन गौशाला के तत्वावधान में योगी अश्विनी गुरुजी की प्रेरणा से आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के सप्तम दिवस कथा व्यास गोवत्स परम पूज्य श्री राधाकृष्णजी महाराज ने दिये।

महाराज जी ने कहा कि हमारे द्वारा कहे शब्द को ब्रह्माण्ड ग्रहण करता है और हमारे शब्द घूम कर बड़े रूप में हमारे सामने आते हैं। अपशब्द बोला तो वही अपशब्द ब्रह्मांड में बड़ा होकर हमारे पास आयेगा। कोई अच्छा विचार बोला है तो वह और अच्छा होकर आयेगा। यही ब्रह्मांड का सिद्धांत है। कोई भी यह दावा नहीं कर सकता है कि उसने किसी का बुरा नहीं किया है। गलती सभी करते हैं और उसका फल मिलता ही है।

यदि किसी पाप को दस बीस लोग कर दें, तो वह पुण्य नहीं माना जाएगा। महात्मा लोग भी चूक करते हैं। अपना निरीक्षण करने में व्यक्ति कच्चा होता है। महाराज ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण का विवाह रुक्मिणी के साथ हुआ। प्रभु ने कुल 16108 विवाह किये और सभी के साथ गृहस्थचर्या शुरू हुई। विवाह सभी करते हैं लेकिन विवाह के बाद गृहस्थ धर्म का महात्म्य समझना हर किसी से नहीं होता है।

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श्रीकृष्ण ने पवित्र गृहस्थ जीवन जीकर बताया

महाराज जी ने कहा कि माता पिता को जैसी सीख संतानों को देनी चाहिए, वैसी नहीं दे पा रहे हैं। इसके लिए आवश्यक है कि पहले स्वयं आचरण करें, फिर बच्चों को सीख दें। महाराज ने कहा कि जैसे होली के मौके पर कोरे वस्त्र वाले को रंग लगाने में बहुत अच्छा लगता है, वैसे ही श्रीकृष्ण पर भी कई आरोप लगाये गये। भगवान ने पवित्र गृहस्थ जीवन जीकर बताया। नारदजी जांच करने के लिए आये कि इतनी रानियाँ कैसे रह रही हैं।

श्री राधाकृष्णजी महाराज ने कहा कि भाग्यशाली वे लोग हैं, जिनके घर में समय समय पर कोई संत जांचने आते हैं। निरीक्षण के लिए संतों को घर बुलाओ, क्या सही है, क्या नहीं, इसका मार्गदर्शन मिलेगा। जब नारादजी ने विभिन्न कक्षों मे देखा तो प्रभु सबके साथ कुछ न कुछ कार्य करते दिखे। प्रभु के पास सेवकों की कमी नहीं है, फिर भी भगवान की सेवा रानियाँ अपने हाथों से करती हैं। आज महाराज ने कथा को विराम देते हुए सहयोगियों का आभार प्रकट किया और सभी को गौसेवा करते रहने की प्रेरणा दी।

अवसर पर मुख्य यजमान एवं प्रसाद यजमान पुरुषोत्तम दास प्रेमलता दीपक सीमा विजयवर्गीय, प्रसाद यजमान ओमप्रकाश प्रेमलता अग्रवाल, कथा स्थल (हॉल) यजमान चंद्रकांत लक्ष्मी डाकोतिया, महेश सरिता डाकोतिया, महेन्द्र आशा डाकोतिया, अलंकार यजमान जयप्रकाश दीपक आशीष विजयवर्गीय, दैनिक यजमान ने सहयोग दिया।

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