वायनाड में खंड-प्रलय


केरल के वायनाड में हाल ही में हुए भूस्खलन ने राज्य के परिदृश्य और मानस पर गहरा असर छोड़ा है। इस आपदा में सैंकड़ों लोग हताहत और लापता हो गए हैं और हज़ारों को विस्थापित होना पड़ा है। केरल के इतिहास की सबसे घातक आपदाओं में से एक यह आपदा न केवल तात्कालिक विनाश, बल्कि इस त्रासदी को बढ़ाने वाले कारकों पर भी व्यापक चिंतन की माँग करती है।

चूरलमला, वेल्लरीमला, मुंडक्कई और पोथुकल्लू सहित प्रभावित क्षेत्रों में व्यापक विनाश हुआ है। बचाव अभियान बड़े पैमाने पर चलाए जा रहे हैं, जिसमें रक्षा, पुलिस और अग्निशमन सेवाओं के 1,200 कर्मी स्थानीय स्वयंसेवकों के साथ मिलकर जीवित बचे लोगों की तलाश में अथक प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, लगातार होती भारी बारिश और चुनौतीपूर्ण इलाके इन प्रयासों में बाधा डाल रहे हैं।

दरअसल, वायनाड का यह इलाका वर्षाजनित आपदा की आशंका से परयः जूझता रहता है। हालाँकि, भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने लगातार प्रतिकूल मौसम की स्थिति की चेतावनी जारी की थी, लेकिन ऐसी प्रलयंकर आपदा का अनुमान किसी को न था। बेशक, इस भयावह और कारुणिक त्रासदी के घटित होने में परकृतिक कारकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन मानवीय क्रियाकलापों या निष्कि्रयताओं को भी नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। विशेषज्ञों ने बताया है कि बड़े पैमाने पर वनों की कटाई और अनियमित निर्माण की इस इलाके को खंड प्रलय के मुँह में ठेलने में बड़ी भूमिका है। वन भूमि को वृक्षारोपण में बदलने और अनियंत्रित पर्यटन ने नाज़ुक पर्यावरण तंत्र को अस्थिर कर दिया है, जो भूस्खलन को ख़ुद बुलावा देने से कम नहीं!

ग़ौरतलब है कि कई पर्यावरणविद पहले से यह चेतावनी देते रहे हैं कि इस इलाके में पारिस्थितिकी संबंधी सिफारिशों की अनदेखी कभी भी ख़तरनाक साबित हो सकती है। वायनाड की खंड प्रलय काफ़ी हद तक व्यवस्था के उपेक्षापूर्ण रवैये का परिणाम भी कही जा सकती है। पर्यावरण विशेषज्ञ माधव गाडगिल की रिपोर्ट में पहले भी पारिस्थितिकी के लिहाज़ से संवेदनशील क्षेत्रों में कड़े नियमन की बात कही गई थी। लेकिन इन सिफारिशों को काफी हद तक नज़रअंदाज़ किया गया, जिससे मौजूदा संकट में योगदान मिला।

तत्काल प्रतिक्रिया के लिए राज्य सरकार ने महत्वपूर्ण संसाधन तैनात किए हैं। केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने राहत प्रयासों के समन्वय के लिए वायनाड में एक सर्वदलीय बैठक की। इन प्रयासों के बावजूद, त्रासदी के पैमाने ने उपलब्ध बुनियादी ढाँचे को अपर्याप्त साबित कर दिया है। मतलब साफ है कि अभी हमें और बेहतर आपदा तैयारी और प्रतिक्रिया तंत्र की ज़रूरत है। सेना द्वारा अस्थायी बेली पुलों के निर्माण से, ऐसी आपात स्थितियों में त्वरित प्रतिक्रिया क्षमताओं की अहमियत को समझा जा सकता है।

इस अप्रत्याशित आपदा में महाविनाश के दृश्य सचमुच दिल दहला देने वाले हैं। मेप्पाडी में एपीजे सामुदायिक भवन एक गमगीन जगह बन गया है, जो अपने प्रियजनों के शवों की पहचान करने वालों की चीखों से भरा हुआ है। पूरे परिवार के ख़त्म हो जाने और बचे हुए लोगों के अपने नुकसान से उबरने के संघर्ष की कहानियाँ बहुत हैं। इस आपदा से जो मनोवैज्ञानिक घाव हुए हैं, उन्हें भरने में सालों लग जाएँगे – अगर कभी भर पाएँ, तो!

माना कि प्रकृति सदा दुर्जेय है, लेकिन उसे समझकर उससे पार भी पाया जा सकता है। इसी समझ के साथ मानवीय सभ्यताओं का विकास हुआ है। इसलिए, जैसे-जैसे हम विकास के पथ पर आगे बढ़ रहे हैं, ऐसी आपदाओं के मूल कारणों को दूर करने के लिए ठोस प्रयास किए जाने चाहिए। इसमें सख्त पर्यावरण नियम, टिकाऊ भूमि-उपयोग की परंपरा और परकृतिक आपदाओं का सामना करने में सक्षम मज़बूत बुनियादी ढाँचे का विकास शामिल है। वायनाड में हुई त्रासदी एक चेतावनी है, जिसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। यह ज़रूरी है कि हम विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखें, ताकि ऐसी आपदाएँ बार-बार आने वाला दुःस्वप्न न बन जाएँ।

इस आपदा के बाद, हमारी संवेदनाएँ पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ हैं। वायनाड के लोगों की दृढ़ता और बचाव दल के अथक प्रयास तबाही के बीच आशा की किरण दिखाते हैं। जब हम मारे गए लोगों के लिए शोक मना रहे हैं, तो आइए हम इस त्रासदी से सबक लेने और अपने पर्यावरण तथा समुदायों को भविष्य की आपदाओं से बचाने के लिए ठोस कदम उठाने का संकल्प भी लें।

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