संघर्ष विराम, तनी डोर पर नाच का समझौता

आखिर वह घड़ी आ गई, जिसका दुनिया को इंतज़ार था। हमास और इज़राइल के बीच युद्धविराम की घड़ी। 15 महीनों के महाविनाश के बाद, दोनों पक्षों ने सैन्य कार्रवाई को रोकने और क्षेत्र में स्थिरता लाने के उद्देश्य से मानवीय और कूटनीतिक उपायों की एक शृंखला शुरू करने पर सहमति व्यक्त की है। तीन चरण के इस समझौते का पहला चरण, कुछ देरी से सही, शुरू होने से यह विश्वास जगा है कि सद्बुद्धि की संभावना कभी खत्म नहीं होती।

संयुक्त राज्य अमेरिका, कतर और मिस्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थों की मदद से संपन्न यह युद्धविराम बड़ी हद तक दोनों पक्षों से तनाव की डोरी पर नृत्य की उम्मीद जैसा है। पहले चरण में, हमास ने तीन इज़राइली बंधकों – रोमि गोनन, एमिली दमरी और डोरन स्टीनब्रेचर – को रिहा किया, जिन्हें 471 दिनों से गाज़ा में बंधक बनाकर रखा गया था। इसके बदले में, इज़राइल ने 90 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा किया, जिनमें महिलाएँ और नाबालिग शामिल हैं। इन्हें विभिन्न सुरक्षा-संबंधित आरोपों में गिरफ्तार किया गया था। इस तरह कुल 33 बंधकों के बदले 2000 कैदियों को रिहा किया जाना है।

यह सौदा कइयों को बहुत महँगा लग रहा है। यहाँ तक कि इससे इज़राइल में वर्तमान सरकार के खतरे में पड़ने तक की आशंका जताई जा रही है। एक सवाल यह भी कि, रिहा किए गए 2000 कैदियों को कट्टरपंथ और आतंकवाद के रास्ते पर जाने से रोकने का उपाय क्या हो सकता है? जवाब नदारद है! चिंता का विषय है कि दी गई रियायतों को पाकर हमास कहीं और सशक्त न हो जाए। यानी, यह युद्धविराम लंबे समय में इज़राइल के सुरक्षा उद्देश्यों को कमजोर भी कर सकता है!

ख़ैर, फिलहाल युद्धविराम के तीन चरणों में बंधकों और कैदियों की आगे अदला-बदली, इज़राइली फौजों की आंशिक वापसी और मानवीय मदद की निरंतर आपूर्ति शामिल है। इन चरणों की सफलता दोनों पक्षों द्वारा युद्धविराम की शर्तों के पालन पर निर्भर करती है।

इस बीच अच्छी खबर यह है कि समझौते ने ग़ाज़ा में मानवीय मदद के रास्ते खोल दिए हैं और मदद के 630 से अधिक ट्रक इलाके में पहुँचे हैं। यह मदद युद्ध-पीड़ित नागरिक आबादी को कुछ राहत पहुँचा सकेगी। फिलिस्तीनी क्षेत्रों में, कैदियों की रिहाई का स्वागत स्वाभाविक है। लेकिन इस स्वागत को ग़ाज़ा में व्यापक विनाश का ग्रहण भी लगा हुआ है। नागरिक आबादी को खंडहरों के बीच पुनर्निर्माण का कठिन कार्य करना है। अंतरराष्ट्रीय संगठनों के समक्ष अब ज़रूरी सेवाएँ मुहैया कराने और पुनर्निर्माण प्रयासों का समर्थन करने के पर्याप्त अवसर हैं।

यहाँ यह कहना बेहद ज़रूरी है कि इस युद्धविराम के लिए मध्यस्थता की सफलता ने एक बार फिर दर्शाया है कि पुराने संघर्षों को सुलझाने में अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की भूमिका कितनी अहम हो सकती है। संयुक्त राज्य अमेरिका, कतर और मिस्र की भागीदारी से स्पष्ट है कि शांति समझौतों के लिए मध्यस्थता के सहयोगात्मक प्रयास कितने ज़रूरी हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह युद्धविराम मध्य-पूर्व में व्यापक मुद्दों के समाधान का प्रवेशद्वार भी बन सकेगा। काश, इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष के मूल कारणों को ईमानदारी से संबोधित किया जा सके और स्थायी शांति हेतु दो-राज्य समाधान पर चर्चा के लिए मार्ग प्रशस्त कर सके! (मौजूदा हालात में भले ही यह दूर की कौड़ी लगे!) अंतत, तमाम आशंकाओं और संदेहों के बावजूद हमास और इज़राइल के बीच यह युद्धविराम स्वागतयोग्य कदम है। बेशक, समझौता बेहद नाज़ुक और भंगुर है, लेकिन स्थायी शांति की दिशा में पहल का प्रतीक भी तो है!

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