जैन धर्म में दान का बड़ा महत्व : भावरत्नाश्रीजी
हैदराबाद, शाहअलीबंडा स्थित ऋषभ आराधना भवन में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन सभा में श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित करते हुए साध्वी भावरत्नाश्रीजी म.सा. ने कहा कि अनादिकाल से आत्मा में चार संज्ञाएं रही हैं। इन आसक्तियों को तोड़ने के लिए जिनेश्वर भगवान ने चार प्रकार के धर्म बताए हैं। यह चार धर्म हैं- दान, शील, तप और भाव।
म.सा. ने कहा कि आहार संज्ञा की आसक्ति को तोड़ने के लिए तप धर्म है। भय संज्ञा की आसक्ति को तोड़ने के लिए भाव धर्म, शरीर संज्ञा की आसक्ति को खत्म करने के लिए शील धर्म व परिग्रह की संज्ञा को खत्म करने के लिए दान धर्म है। म.सा. ने कहा कि दान धर्म का उद्देश्य आत्मा को परिग्रह की आसक्ति से मुक्त करना है। दान के साथ धन की आसक्ति से मुक्ति नहीं होती तो वह वास्तविक दान नहीं कहलाएगा। भावरत्नाजी ने आगे कहा कि यश, कीर्ति व नाम की लालसा से किये गये दान से भव मुक्ति नहीं हो सकती है। सुपात्र दान ही मोक्ष का साधन है। धर्म का प्रारंभ दान से ही होता है। म.सा. ने आगे कहा कि धन तिजोरी आदि में पड़ा रहता है। उसकी आसक्ति को तोड़ना और भी सरल है। म.सा. ने कहा कि गरीबों को उपरोक्त ज़रूरतों के लिए यथासंभव सहायता करनी चाहिए, इसमें हमारा कोई विरोध नहीं है, अपितु प्रभु ने तो सुपात्र दान और अभयदान के पश्चात अनुकम्पा दान करना भी ज़रूरी बताया है। असहाय की मदद करने को अनुकम्पा दान कहते हैं। कभी दान देते समय पक्षपात नहीं करें। कंजूस, अनाथ, दरिद्र, शोकाकुल हो, ऐसे व्यक्ति को दिया दान अनुकम्पा दान कहलाता है। सुपात्र दान जिन आज्ञा के अनुरूप कार्य करने वाले लोगों के लिए करना चाहिए। पर्व के महान दिनों में अपनी राशि को इस प्रकार के दान में लगाना चाहिए। अनुकम्पा दान देते समय तिरस्कार के भाव नहीं होने चाहिए।
साध्वीजी ने आगे कहा कि परमात्मा के दर्शन त्याग भाव से करना चाहिए। अनुकम्पा के लिए मन में प्रेम और दया के भाव रखना चाहिए। पूर्व जन्म के पुण्य से आपको मानव जन्म और धन प्राप्त हुआ है। यदि इस जन्म को धर्म कार्य से नहीं जोड़ेंगे तो अगला जन्म कैसा होगा, स्वत: ही सोच सकते हैं। ऐसी अनुकम्पा के भाव हमारे जीवन में भी आने चाहिए। अनुकम्पा अच्छी सोच, अच्छे विचार से भी हो सकती है। सुपात्र दान में प्रसन्नता के भाव आने चाहिए। नाम और कामना के उद्देश्य से सुपात्र दान फलदायी नहीं होता है। साधु-साध्वी को दी गई अवाश्यक सामग्री सुपात्र दान की श्रेणी में आती है। सुपात्र दान का महत्व जिनवाणी सुनने से आता है।
चारकमान संघ के मंत्री प्रवीण नाहटा ने संघ को जानकारी देते हुए बताया कि 23 अगस्त से अक्षय निधि तपस्या शुरू होने जा रही है, जिसकी विधि में गुरुवर्या के सान्निध्य में सुबह 10 बजे चारकमान पार्श्व मंदिर में कलश स्थापना होगी। एकासना की व्यवस्था पार्श्व भवन में रहेगी। उन्होंने कहा कि रविवार 25 अगस्त को 18 अभिषेक महापूजन सुबह 8:30 बजे से चारकमान स्थित पार्श्व मंदिर में होगा।