सोशल मीडिया पर बच्चों की सुरक्षा: केरल में डेटिंग ऐप का काला सच

केरल, केरल में हाल ही में 16 साल के एक लड़के के साथ एक चिंताजनक घटना हुई, जो ऑनलाइन डेटिंग एप्स के खतरों को उजागर करती है। मामले में पुलिस ने 14 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है, जिनमें सरकारी कर्मचारी भी शामिल हैं। इन लोगों पर आरोप है कि उन्होंने लड़के के साथ एप के जरिए दोस्ती कर उसे यौन शोषण का शिकार बनाया। यह मामला यह दिखाता है कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बच्चों की सुरक्षा कितनी कमजोर है। केरल विधानसभा में बच्चों में मोबाइल और इंटरनेट के अत्यधिक उपयोग पर भी चिंता जताई गई। सीएम पिनाराई विजयन ने बताया कि जनवरी 2021 से 9 सितंबर 2025 के बीच 41 बच्चों ने मोबाइल और इंटरनेट के गलत इस्तेमाल के कारण आत्महत्या की, और 30 बच्चों को डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़े यौन और मादक पदार्थों के मामलों में कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ा। 

लड़का सुरक्षित, पुलिस जांच में बड़ा खुलासा
जांच में पता चला कि यह लड़का पिछले दो साल से फर्जी प्रोफाइल्स के जरिए एप पर सक्रिय था। हालांकि अब लड़का सुरक्षित है, लेकिन पुलिस का कहना है कि ऐसे शिकार होने की घटनाएं दुर्लभ नहीं हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। पुलिस के अनुसार, यह घटनाएं उनके डिजिटल डी-एडिक्शन (डी-डीएडी) प्रोजेक्ट के तहत आने वाले पैटर्न में आती हैं। यह प्रोजेक्ट बच्चों को ऑनलाइन गेम्स, सोशल मीडिया और अश्लीलता जैसी चीजों की लत से बचाने और उनका पुनर्वास कराने के लिए शुरू किया गया है।

क्या है डी-डीएजी प्रोजेक्ट?
डी-डीएडी प्रोजेक्ट 2023 में शुरू हुआ और देश का पहला ऐसा प्रयास है। फिलहाल, इसके छह केंद्र काम कर रहे हैं- तिरुवनंतपुरम, कोल्लम, कोच्चि, त्रिशूर, कोझिकोड और कन्नूर। माता-पिता, स्कूल और बाल अधिकार कार्यकर्ताओं से मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया के बाद पुलिस इसे और जिलों में फैलाने की योजना बना रही है, जैसे पठानमथिट्टा, अलप्पुझा, कोट्टायम, पालक्कड़, मलप्पुरम, वायनाड, इडुकी और कासरगोड। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2023 से जुलाई 2025 तक डी-डीएडी केंद्रों ने 1,992 डिजिटल लत के मामलों को संभाला, जिनमें से 571 मामले ऑनलाइन गेम्स की लत से जुड़े थे।

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लड़कों-लड़कियों में अलग-अलग लत
सूरज कुमार एमबी, जो एर्नाकुलम में छात्र पुलिस कैडेट प्रोजेक्ट (एसपीसी) के नोडल अधिकारी और जिले के डी-डीएडी केंद्र के समन्वयक हैं, बताते हैं, ‘हमने देखा है कि लड़के अधिकतर ऑनलाइन गेम्स के शिकार हैं, जबकि लड़कियां सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की तरफ अधिक आकर्षित होती हैं। हमारे काउंसलर्स माता-पिता को भी बच्चों की मदद करने के तरीके बताते हैं।’ उनके अनुसार, इस प्रोजेक्ट की बड़ी सफलता माता-पिता के नजरिए में बदलाव रही है। पहले कई परिवार मोबाइल फोन की लत को नशा या शराब जैसी समस्या नहीं मानते थे, लेकिन अब वे इसे गंभीरता से लेने लगे हैं। राज्य सरकार ने हाल ही में केंद्रों में काउंसलर्स के कॉन्ट्रैक्ट को नवीनीकृत किया है और बढ़ती मांग को देखते हुए अतिरिक्त स्टाफ नियुक्त करने की प्रक्रिया भी चल रही है।

सरकार भी इंटरनेट के अत्यधिक उपयोग पर चिंतित
साइबर कानून विशेषज्ञ और साइबर सुरक्षा फाउंडेशन के संस्थापक अधिवक्ता जियास जमाल ने डी-डीएडी प्रोजेक्ट को एक मॉडल प्रोजेक्ट बताया और चेतावनी दी कि डेटिंग एप्स का बढ़ता उपयोग नाबालिगों के लिए गंभीर चुनौती है। उन्होंने कहा, ‘डेटिंग एप्स केवल 18 साल से ऊपर के लोगों के लिए हैं, लेकिन कमजोर सत्यापन के कारण नाबालिग आसानी से इसमें शामिल हो जाते हैं। ये एप्स अक्सर विदेश में काम करते हैं और सोशल मीडिया पर अपने विज्ञापन चलाते हैं। ऐसे प्लेटफॉर्म्स को भी जवाबदेह ठहराना चाहिए।’ जमाल ने बताया कि कई बार बच्चे इन एप्स के जाल में फंसकर ब्लैकमेल, वित्तीय नुकसान या अवैध गतिविधियों के लिए मजबूर किए जाते हैं। कुछ मामलों में बच्चों का शोषण यौन गतिविधियों और मादक पदार्थों के कारोबार में भी किया गया।

डब्ल्यूसीडी और शिक्षा विभाग चला रहे कई प्रोग्राम
इसके अलावा, महिला एवं बाल विकास विभाग और शिक्षा विभाग भी बच्चों और माता-पिता को डिजिटल लत से बचाने के लिए कई प्रोग्राम चला रहे हैं। महिला एवं बाल विकास विभाग अधिकारियों के अनुसार, बच्चों के प्रति हमारी जिम्मेदारी (ओआरसी) पहल अब 1,227 स्कूलों में लागू है, जो बच्चों में डिजिटल लत और अन्य समस्याओं के बारे में जागरूकता फैलाती है। शिक्षा विभाग के साथ मिलकर 1,012 स्कूलों में मनो-सामाजिक काउंसलर्स नियुक्त किए गए हैं। इसके अलावा, ब्लॉक पंचायत स्तर पर पैरेंटिंग क्लिनिक शुरू किए गए हैं और थिरुवनंतपुरम जिले की एक पंचायत में जोखिम मानचित्रण जैसी पहल के तहत कमजोर बच्चों की पहचान कर उन्हें सुरक्षा प्रदान की जा रही है।

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