चीन : व़फा पर दग़ा सुलह में दुश्मनी है!
चीन ने एक बार फिर साबित किया है कि चैन से जीना और जीने देना उसके स्वभाव में है ही नहीं! भारत को चिढ़ाने में उसे शायद परपीड़ा-सुख मिलता है। तभी तो हाल ही में चीन ने भारत की सीमा से लगे झिंजियांग प्रांत में दो नए ज़िले (काउंटी) बनाने की घोषणा कर डाली। सयाने बता रहे हैं कि होटन प्रीफेक्चर में बनने वाली हेआन और हेकांग काउंटियों में कुछ इलाका अक्साई चिन का भी शामिल है। याद रहे कि अक्साई चिन लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश का हिस्सा है, जिस पर 1950 के दशक से चीन का अवैध कब्जा है। यही वजह है कि इस घोषणा पर भारत ने गंभीर विरोध दर्ज कराया है। (शायद इससे अधिक कुछ और किया भी नहीं जा सकता!) भारत के विदेश मंत्रालय ने बीजिंग के साथ गंभीर विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि ऐसे कदम अवैध हैं और भारत के स्थापित रुख को नहीं बदल सकते। विदेश मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि चीन द्वारा ऐसे एकतरफा कदम उसके दावों को वैधता नहीं दे सकते।
चीन ने ये नए ज़िले बनाने की घोषणा ऐसे वक़्त की है, जब दोनों देशों ने हाल ही में एलएसी पर तनाव कम करने के प्रयास किए थे। अक्टूबर 2024 में, दोनों देशों ने पश्चिमी हिमालय के संघर्ष बिंदुओं से सैनिकों को हटाने पर सहमति व्यक्त की थी, जिसे आपसी रिश्तों में संभावित सुधार का संकेत कहा गया था। कहना न होगा कि चीन की इस नई प्रशासनिक कार्रवाई से इन कूटनीतिक प्रयासों को नुकसान पहुँच सकता है और सीमा पर नए सिरे से टकराव की आशंका बढ़ सकती है।
चीन का प्रशासनिक सीमाओं को पुन: परिभाषित करने का कदम सोची-समझी शरारतपूर्ण व्यापक रणनीति का हिस्सा है। वह क्षेत्रीय दावों को मजबूत करने के लिए सलामी स्लाइसिंग की रणनीति आज़मा रहा है। इस रणनीति के तहत विवादित क्षेत्रों में धीरे-धीरे छोटे-छोटे बदलाव करके ज़मीनी स्थिति को बदलने की कोशिश की जाती है। ऐसे कदम न केवल द्विपक्षीय रिश्तों को प्रभावित करते हैं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता को भी चुनौती देते हैं। बदले में पड़ोसी देशों को भी अपनी सुरक्षा और कूटनीतिक रणनीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
याद रहे कि भारत-चीन संबंधों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी बारीकी से देखता है क्योंकि इनसे वैश्विक भू-राजनीति प्रभावित होती है। दोनों देश क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अहम भूमिका निभाते हैं। इनकी हर हलचल व्यापक रणनीतिक समीकरणों को प्रभावित करती है। चीन की हालिया कार्रवाई को अन्य देश क्षेत्रीय विवादों में उसके अड़ियल रुख का सबसे ताज़ा सबूत मान सकते हैं। स्पष्ट है कि चीन का अक्साई चिन के विवादित क्षेत्रों को शामिल करके नए प्रशासनिक ज़िले (काउंटी) बनाना, क्षेत्र में अपने दावों को मजबूत करने की रणनीतिक चाल है। भारत द्वारा तेज़ी से दर्ज किया गया विरोध क्षेत्रीय संप्रभुता पर हमारे अडिग रुख का प्रतीक है और यथास्थिति को चुनौती देने वाले कदमों का सामना करने की तत्परता को दर्शाता है।
अंतत इस पूरे प्रकरण से भारत-चीन संबंधों की नाज़ुक स्थिति और विवादों के समाधान के लिए स्थायी कूटनीतिक जुड़ाव की ज़रूरत का पता चलता है। इससे दुनिया के दूसरे देशों के भी कान खड़े होना स्वाभाविक है, क्योंकि ऊपर से छोटे प्रतीत होनेवाले ऐसे विवाद गहराई में क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक भू-राजनीति के लिए तूफान छिपाए हो सकते हैं! चीन के इस संपूर्ण चरित्र पर दत्तत्रिया क़ैफी का यह शेर कितना प्रासंगिक है-
व़फा पर दग़ा सुलह में दुश्मनी है;
भलाई का हरगिज़ ज़माना नहीं है!