जयपुर, एक तरफ जहां उत्तर प्रदेश के संभल में जामा मस्जिद को लेकर बवाल मचा हुआ है तो अब दूसरी तरफ राजस्थान के अजमेर शरीफ को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। अजमेर की एक स्थानीय अदालत ने उस याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया है जिसमें हिंदू सेना की ओर से दावा किया गया है कि दरगाह एक शिव मंदिर के ऊपर बनाया गया है। कोर्ट ने याचिका को सुनवाई योग्य मानते हुए संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करते हुए जवाब दाखिल करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी।
हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर की मुंसिफ कोर्ट में यह वाद दायर किया है। उन्होंने अपनी याचिका में एक किताब में किए गए दावों को आधार बनाया है। 1911 में यह किताब को हरबिलास सारदा ने लिखी थी, जिसका नाम है अजमेर : हिस्टोरिकल एंड डिक्रिप्टिव। अंग्रेजी में लिखी गई इस किताब में 168 पन्ने हैं। इसमें दरगाह ख्वाजा मोहिनुद्दीन चिश्ती नाम से एक अलग चैप्टर है। इसमें ख्वाजा के जीवन काल और उनकी दरगाह का ब्योरा दिया गया है।
पुस्तक के पेज नबर 93 पर लिखा है कि बुलंद दरवाजे के उत्तर के गेट में जो तीन मंजिला छतरी है वह किसी हिंदू इमारत के हिस्से से बनी है, छतरी की बनावट बताती है कि यह हिंदू ओरिजिन की है। उसके सतह पर खूबसूरत नक्कासी को चूने और रंग पुताई से भर दिया गया है। इसी किताब के पेज नंबर पर 94 पर लिखा है कि छतरी में जो लाल रंग का बलुआ पत्थर का हिस्सा लगा है वह किसी जैन मंदिर का है जिसका विध्वंस कर दिया गया है। पेज नंबर 96 पर लिखा है कि बुलंद दरवाजे और भीतरी आंगन के बीच का आंगन, उसके नीचे पुराने हिंदू मंदिर के तहखाने हैं, जिसमें से कई कमरे अभी भी वैसे ही हैं। अगले पन्ने पर लिखा गया है कि अंदर एक मंदिर में महादेव की छवि है, जिस पर हर दिन एक ब्राह्मण परिवार द्वारा चंदन रखा जाता था, जिसे अभी भी दरगाह द्वारा घड़ियाली (घंटी बजाने वाला) के रूप में रखा जाता है। किताब में लिखी गई इन बातों को आधार बनाकर ही याचिका दायर की गई है।
वादी विष्णु गुप्ता के वकील योगेश सिरोजा ने अजमेर में बताया कि वाद पर दीवानी मामलों के न्यायाधीश मनमोहन चंदेल की अदालत में सुनवाई हुई। सिरोजा ने कहा कि दरगाह में एक शिव मंदिर होना बताया जा रहा है। उसमें पहले पूजा पाठ होता था। पूजा पाठ दोबारा शुरू करवाने के लिये वाद दायर किया गया। दरगाह के दीवान सैय्यद नसीरुद्दीन ने कहा है कि देश में दरगाह और मस्जिदों में मंदिर ढूढ़ने की जो नई परिपाटी शुरू हुई है, वह न देश एवं समाज के हित में है और न ही आने वाली पीढ़ी के हित में ठीक है। उन्होंने कहा कि यह दरगाह साढ़े आठ सौ साल पुरानी है, जिसे सौ साल की एक किताब से खारिज नहीं किया जा सकता है।(एजेंसियाँ)