इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी की निंदा

नई दिल्ली, कानून विशेषज्ञों ने यौन अपराध जुड़े एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से सुनाए गए फैसले में की गई उस टिप्पणी की शुक्रवार को निंदा की, जिसमें कहा गया है कि किसी लड़की के निजी अंग को पकड़ना और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास का मामला नहीं माना जा सकता। कानून विशेषज्ञों ने न्यायाधीशों से संयम बरतने का आह्वान किया।

उन्होंने कहा कि इस तरह की टिप्पणियों से न्यायपालिका में लोगों का भरोसा कम होता है। वरिष् अधिवक्ता और पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता पिंकी आनंद ने कहा कि मौजूदा दौर में, खासतौर पर सतीश बनाम महाराष्ट्र राज्य जैसे मामलों के बाद, जिसमें शीर्ष अदालत ने यौन अपराधों को कमतर करके आंकने की निंदा की थी, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले ने बलात्कार के प्रयास जैसे जघन्य अपराध को कमतर करके आंका है, जो न्याय का उपहास है।

आनंद ने पीटीआई-भाषा से कहा कि लड़की के निजी अंगों को पकड़ने, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ने, उसे घसीटकर पुलिया के नीचे ले जाने की कोशिश करने और केवल हस्तक्षेप के बाद ही भागने जैसे तथ्यों के मद्देनजर यह मामला पूरी तरह से बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में आता है, जिसमें 11 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार की मंशा से हर संभव हरकत की गई।

उन्होंने कहा कि अब पुन: जागृत होने का समय आ गया है। आनंद ने कहा कि कानून का उल्लंघन करने वालों और महिलाओं तथा बच्चों के खिलाफ अपराध करने वालों को बख्शा नहीं जा सकता और यह फैसला स्पष्ट रूप से गलत है, क्योंकि यह इस बात को नजरअंदाज करता है। मुझे पूरा भरोसा है कि इस तरह के फैसले को उचित तरीके से पलटा जाएगा और न्याय होगा।

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न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर उठते सवाल

वरिष् अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि भगवान ही इस देश को बचाए, क्योंकि पी में इस तरह के न्यायाधीश विराजमान हैं। उच्चतम न्यायालय गलती करने वाले न्यायाधीशों से निपटने के मामले में बहुत नरम रहा है। सिब्बल ने कहा कि न्यायाधीशों, खासकर उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को ऐसी टिप्पणियाँ करने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे समाज में गलत संदेश जाएगा और लोगों का न्यायपालिका पर से भरोसा उठ जाएगा।

उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि इस तरह की विवादास्पद टिप्पणी करना अनुचित है, क्योंकि मौजूदा समय में न्यायाधीश जो कुछ भी कहते हैं, उससे समाज में एक संदेश जाता है। अगर न्यायाधीश, खासतौर पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, इस तरह की टिप्पणियाँ करते हैं, तो इससे समाज में गलत संदेश जाएगा और लोगों का न्यायपालिका पर से भरोसा उ जाएगा।

वरिष् अधिवक्ता विकास पाहवा ने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की व्याख्या, बलात्कार के प्रयास की संकीर्ण परिभाषा देकर एक चिंताजनक मिसाल कायम करती प्रतीत होती है। उन्होंने कहा कि निजी अंगों को पकड़ने, पायजामा उतारने और लड़की को घसीटकर पुलिया के नीचे ले जाने जैसी कथित हरकतें स्पष्ट रूप से बलात्कार की मंशा की ओर इशारा करती हैं, जो संभवत: महज इरादे से कहीं आगे दुष्कर्म के प्रयास के दायरे में आती हैं।

पाहवा ने कहा कि इस तरह के फैसलों से यौन हिंसा के पीड़ितों की सुरक्षा के प्रति न्यायिक प्रणाली की प्रतिबद्धता में जनता का विश्वास कम होने का खतरा है। ऐसे फैसले पीड़ितों को आगे आने से भी हतोत्साहित कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें डर होगा कि उनके साथ हुई हरकतों को कमतर आंका जाएगा या खारिज कर दिया जाएगा।(भाषा)

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