कथामृत पान से समाप्त होता है द्वंद : बद्री प्रपन्नाचार्यजी
हैदराबाद, संसार में हर एक शब्द का किसी न किसी से झगड़ा है। सुख का दुख से और जय का पराजय से झगड़ा रहता है। भगवान की कथा की विशेषता है कि जो कथा के रस में डूब जाता है, उसके जीवन का द्वंद समाप्त हो जाता है। उक्त उद्गार काचीगुड़ा स्थित श्री श्याम मंदिर में विष्णुदास राजगोपाल बाहेती द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के पंचम दिवस कथा की महिमा बताते हुए कथा व्यास श्रीश्री 1008 राजगुरु स्वामी बद्री प्रपन्नाचार्यजी महाराज ने दिये।





महाराज ने कहा कि भगवान की कथा चरित्रों के गुणगान का एक शब्द भी यदि जीवन में प्राप्त हो जाए तो भागवत की अनुभूति प्राप्त हो जाती है। भगवान का स्वरूप शांत है और उसी शांत स्वरूप परमात्मा के सुंदर चरित्रों का वर्णन करने वाली कथा है। जो जीव इन चरित्रों का श्रवण करता है वह शांत स्वभावी हो जाता है। यही कथा की विशेषता है। भगवान की कथा की विशेषता है कि यह हमारे जीवन के समस्त क्लेश का शमन कर देती है।
नाम जप, ध्यान, मंदिर दर्शन और कथा श्रवण से फल की प्राप्ति
महाराज ने कहा कि भगवान के स्वरूप को किसी भी रूप में प्राप्त करने की विधा होती है। सच्चिदानंद विग्रह के साधन चतुष्टय हैं। जीव चाहे भगवान का नाम ले, चाहे भगवान के स्वरूप का दर्शन करे, चाहे लीला सुने और चाहे भगवान के धाम में निवास करे। इन चतुष्टय साधनों में एक-दूसरे से किसी प्रकार का भेद नहीं होता है। इनको अपनाने वाले पूर्ण रूप से परमात्मा के स्वरूप के दर्शन करेंगे।
महाराज ने कहा कि चार साधन में से एक भी साधन जीवन में आ गया, तो भगवत स्वरूप की प्राप्ति होगी। जिनका नाम जप करने से प्राप्ति नहीं होती है वे भगवान के स्वरूप का ध्यान करें। मंदिर में दर्शन करें। महाराज ने कहा कि मंदिर तीन प्रकार के होते हैं, साधारण मंदिर, स्थूल मंदिर व सूक्ष्म मंदिर। साधारण मंदिर सभी घर में बनाकर रखते हैं। स्थूल मंदिर हर नगर में बड़े-बड़े मंदिर बने हैं जहां प्रभु के विराट स्वरूप में दर्शन करें।
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मन मंदिर में स्वयं भगवान किसी न किसी रूप में विराजमान होते हैं। इन तीनों में से किसी में भी जाएं, भगवान के स्वरूप के दर्शन होंगे और उतना ही फल प्राप्त होगा। भगवान की लीला के दर्शन करना है या श्रवण करना, माला जपना, कथा सुनने का फल समान है। कथा श्रवण के साधन से भी भगवान की प्राप्ति होती है और भगवान के पवित्र धाम में जाकर वास करना भी प्रभु की प्राप्ति का मार्ग है। महाराज ने श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं की महत्ता बताई।
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