कांग्रेस का धरना केवल प्रदर्शन : कृष्ण मोहन

हैदराबाद, तेलंगाना बीसी कमीशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. वकुलाभरणम कृष्णमोहन राव ने बुधवार को सोमाजीगुड़ा में आयोजित प्रेस वार्ता में कहा कि दिल्ली में धरना बीसी अधिकारों की लड़ाई नहीं, बल्कि महज़ राजनीतिक प्रदर्शन है। उन्होंने कहा, अगर सरकार की सही नीयत होती, तो वह सुप्रीम कोर्ट के जरिए लंबित विधेयकों पर त्वरित निर्णय का रास्ता निकाल सकती थी। कानूनी का रास्ता मौजूद होते हुए भी ऐसा नाटक क्यों? यह बीसी अधिकारों के लिए संघर्ष नहीं, बल्कि पार्टी उच्च नेतृत्व की नजरों में आने का पब्लिसिटी स्टंट है।

उन्होंने आगे कहा कि हाल ही में तमिलनाडु फैसले के संदर्भ में राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 143(1) के तहत 14 अहम सवाल सुप्रीम कोर्ट को भेजे, जिससे साफ है कि कानूनी उपाय का रास्ता खुला हुआ है। फिर भी मुख्यमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट जाने की बजाय जंतर-मंतर पर धरना देने को चुना, जो जनता को गुमराह करने वाला राजनीतिक नाटक है। उन्होंने सरकार के दोहरे रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा, अगर स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण लागू करने के लिए बुसानी डेडिकेटेड कमीशन की रिपोर्ट पर्याप्त थी तो मुख्यमंत्री और मंत्रियों ने उसे प्राप्त करने के लिए समय क्यों नहीं निकाला?

बीसी आयोगों के साथ भेदभाव क्यों? उठे सवाल

आखिरकार बुसानी कमीशन को अपनी रिपोर्ट बिना प्रचार के मुख्य सचिव को सौंपनी पड़ी, लेकिन जब जस्टिस सुदर्शन रेड्डी वर्किंग ग्रुप ने रिपोर्ट सौंपी तो मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री और कई मंत्री उसे लेने एमसीआरएचआरडी संस्थान तक गए। बुसानी कमीशन और जस्टिस रेड्डी समिति के साथ यह भेदभाव क्यों? यह रेवंत सरकार के बीसी विरोधी रवैये का साफ संकेत है। डॉ. वकुलाभरणम ने कहा, कालेश्वरम परियोजना की तथाकथित व्यापक अध्ययन रिपोर्ट तैयार करने में 16 महीने लगाए गए, लेकिन करोड़ों बीसी के भविष्य का निर्धारण करने की प्रक्रिया कुछ ही दिनों में पूरी कर दी गई।

इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया के लिए नियुक्त आयोगों को समुचित समय तक नहीं दिया गया। उदाहरण के लिए बुसानी कमीशन को अपनी रिपोर्ट देने के लिए मात्र एक माह की समयसीमा दी गई, जो सरकार के आदेश जीओ 49 में स्पष्ट है। क्या ये रिपोर्टें बिना व्यापक अध्ययन के पेश की गईं? ये रिपोर्टें कहां हैं? इन्हें सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? कालेश्वरम रिपोर्ट तो तत्काल जारी कर दी गई, लेकिन करोड़ों बीसी के जीवन से जुड़े अहम दस्तावेज क्यों छुपाए जा रहे हैं?

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बीसी अधिकारों की असली लड़ाई अदालत में हो

जस्टिस सुदर्शन रेड्डी समिति की रिपोर्ट कहां है? इन आयोगों की कानूनी वैधता क्या है? ये सब दिखाता है कि बीसी आरक्षण के नाम पर वास्तविक कदमों से ज्यादा राजनीतिक नाटक और दिखावा किया जा रहा है। करोड़ों की उम्मीदों और अधिकारों से जुड़े इस गंभीर मुद्दे में सरकार की यह लापरवाही अक्षम्य है। तमिलनाडु मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि राज्यपालों के पास पॉकेट वीटो का अधिकार नहीं है और वे विधेयकों को अनिश्चितकाल तक नहीं रोक सकते।

इस संदर्भ में अनुच्छेद 143(1) के तहत राष्ट्रपति के संदर्भ की सीमाओं पर स्पष्ट और केंद्रित बहस होनी चाहिए। बीसी अधिकारों के लिए कानूनी रास्ते पर जोर देते हुए डॉ. वकुलाभरणम ने कहा, बीसी आरक्षण पब्लिसिटी शो या पीआर अभ्यास से हासिल नहीं हो सकते। सरकार को ईमानदारी से आगे बढ़ते हुए सभी रिपोर्टों को सार्वजनिक करना चाहिए, एक वैधानिक आयोग गठित करना चाहिए और उसकी सिफारिशों पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।

अधिकार नारेबाजी से नहीं, केवल अदालतों से मिलते हैं। दिल्ली धरने पर उन्होंने टिप्पणी की, यह सिर्फ एआईसीसी का ध्यान खींचने के लिए किया गया पीआर अभ्यास था। बीसी आरक्षण की असली लड़ाई सुप्रीम कोर्ट में लड़ी जानी चाहिए, न कि रेवंत रेड्डी के दिल्ली प्रेजेंटेशन या मंचित धरनों से। बीसी के लिए वास्तविक न्याय केवल अदालतों से मिलेगा, राजनीतिक नाटकों से नहीं। इस प्रेस वार्ता में राज्य बीसी एक्य वेदिका के अध्यक्ष नरसिंहा यादव, राष्ट्रीय बीसी अध्ययन मंच के संयोजक एम. मारुति प्रसाद और राज्य बीसी नेता अम्बटी सुधाकर, रमेश आदि उपस्थित रहे।

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