करुणा और प्रेम से जीतें जग : सद्गुरु रमेशजी

हैदराबाद, करुणा और प्रेम से सारा जग जीता जा सकता है। सभी गुरु, संत-महात्मा यही संदेश देते हैं, लेकिन इनको सांसारिक दृष्टि से देखने के कारण हम इसको आत्मसात नहीं कर पाते। जो इंसान संत-महात्मा या गुरु में शरीर को न देखकर उनके द्वारा जागृत की गई चेतना को देखता है, उसका भक्तिभाव और समर्पण स्वयं ही जाग जाता है।

उक्त उद्गार बंजारा हिल्स स्थित अवर पैलेस में आयोजित सत्संग में सद्गुरु रमेशजी ने व्यक्त किए। रमेशजी ने कहा कि दुःखी वही होता है, जिसके मन में दया का भाव नहीं होता। हालाँकि कुछ लोगों में दूसरों के लिए दया होती है, लेकिन उनकी अपेक्षाओं के जुड़ने के कारण फल प्राप्त नहीं होता। इसलिए दया से अपेक्षा को दूर रखना चाहिए। किसी की पीठ पीछे निंदा करना भी दुःख का कारण बनता है। इसलिए निंदा से बचना चाहिए। हम जिस इंसान के बारे में जैसी भावना रखते हैं, उसकी भावना भी हमारे प्रति भी ठीक उसी प्रकार की होती है। इसलिए सबके प्रति सद्भाव रखते हुए ज्ञान, प्रसन्नता, खुशी, हँसी, मुस्कान, आशीर्वाद जैसे गुणों को सबमें बाँटते रहना चाहिए।

ब्रह्मानंद की ओर करुणा और प्रेम से यात्रा

दूसरों के साथ हमें खुद के प्रति दया का भाव रखना चाहिए।खुद के दुःख पर भी दया करते इसे दूर किया जा सकता है।रमेशजी ने कहा कि जो संसार के विषयों में यानी विषयानंद फँसे रहते हैं, वह दुःख-दर्द तथा उतार-चढ़ाव के चक्र के प्रभाव में रहते हैं। इसके विपरीत जो ब्रह्म के आनंद में रहते हैं, उसका जीवन सम रहता है। हालाँकि इसका अर्थ यह नहीं है कि हम संसार को छोड़कर ब्रह्म में लीन हो जाएँ। हम सब कुछ करते हुए भी ब्रह्मानंद की स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं।

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इसके लिए हर किसी में ब्रह्म के दर्शन करेंगे, तो संसार में रहते हुए ब्रह्म के आनंद की प्राप्ति कर सकेंगे। संसार में हमारे धैर्य की भी परीक्षा होती है, जिस पर हमें खरा उतरने का प्रयास करना चाहिए। हमारे जीवन की मंजिल आध्यात्मिकता होती है। करुणा और प्रेम से संसार को जीतकर ब्रह्मानंद को प्राप्त करते हुए जीवन के परम लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहिए। गुरु माँ ने कहा कि गुरु ही हमें यह बताता है कि इस संसार से भी एक अलग दुनिया है, जहाँ हम लोगों का कल्याण कर सकते हैं। गुरु हमें बताता है कि सबके अंदर एक अकूत तथा अक्षय खजाना है। किसी जरूरतमंद की मदद अवश्य करनी चाहिए।

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इससे हमारे मार्गदर्शन का मार्ग प्रशस्त होता है। उन्होंने कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिनको जितना दिया जाता वह उतनी ही बढ़ती जाती हैं। इनमें खुशी, सुख, आशीर्वाद, कृतज्ञता, मुस्कुराहट, क्षमा आदि शामिल हैं। सामने वाला कैसा भी हो, हमें इनको बाँटते हुए सद्गगुणों के खाते को सतत रूप से बढ़ते रहना चाहिए। समग्र रूप से गुरु हमें एक ऐसी नई दुनिया में ले जाना चाहते हैं, जहाँ हर गतिविधि में प्रशंसा या सराहना का भाव समाहित होता है।

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