शहर में मगरमच्छ!

हैदराबाद , यह ख़बर बहुत लोगों को हैरान और चकित कर देने वाली है कि हाल ही में हैदराबाद की पास मूसी नदी में एक विशिष्ट अतिथि ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस आगंतुक, एक मगरमच्छ, का शहरी परिदृश्य में प्रकट होना अप्रत्याशित तो था, लेकिन आकर्षक भी। इसकी उपस्थिति, कुछ लोगों के लिए चिंता का विषय होते हुए भी, शहर के अपनी प्रकृति और नदी के साथ रिश्तों पर पुनर्विचार करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है।

मूसी नदी में मगरमच्छ की एंट्री: हैदराबाद में हलचल

कुछ सयाने ऐसे जीव द्वारा उत्पन्न खतरे पर चिंता व्यक्त कर सकते हैं। लेकिन इन सरीसृपों को शहर की पहचान के एक स्थायी और मूल्यवान हिस्से के रूप में अपनाने की संभावना से भी वे इन्कार नहीं कर सकते। आखिरकार, जहाँ एक मगरमच्छ कदम रखता है, वहाँ और भी मगरमच्छ आने की संभावना होती है और हैदराबाद को इस अप्रत्याशित आशीर्वाद से बहुत कुछ हासिल होने वाला है। इतना ही नहीं, गरीबों के नाम पर विलाप करने वाले सियासतदान तो मगरमच्छों से ढेरों आँसू उधार भी ले सकते हैं!

उम्मीद की जानी चाहिए कि कुछ पर्यावरणप्रेमी यह प्रस्ताव ज़रूर लाएँगे कि भयपूर्ण प्रतिािढया देने के बजाय, मूसी को मगरमच्छों के लिए एक प्रमुख रिसॉर्ट और अभयारण्य में बदलकर अधिक दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। हैदराबाद में भले ही पानी से भरी नदी न हो, लेकिन मगरमच्छों की भव्यता से भरपूर नदी के सहारे उस अभाव की पूर्ति की जा सकती है। वास्तव में, ऐसा नज़ारा दुनिया में कहीं भी बेजोड़ होगा। पानी नहीं तो क्या हुआ!

एक ज़माना था कि मगरमच्छ को स्वच्छ-निर्मल गंगाजी की सवारी समझा जाता था। अब ज़माना बदल गया है। उन्हें गँदला पानी और कीचड़ रास आने लगा है। इसीलिए उन्हें अब मूसी उसी तरह निरापद लगती होगी, जिस तरह दुनिया भर में माफियाओं को सियासत रास आती है। इसलिए ज़रूरी है कि मूसी को साफ करने के तमाम प्रोजेक्ट तत्काल रोक दिए जाएँ। जिस तरह सियासत और भ्रष्टाचार का रिश्ता नैसर्गिक है, उसी तरह नए ज़माने के मगरमच्छ शायद मूसी को उसकी प्राकृतिक स्थिति में पसंद करते हों। तैरता हुआ कचरा और बजबजाता हुआ मलबा वैतरणी जैसा प्रामाणिक वातावरण प्रदान करता है न! नदी के तल या किनारों को साफ करने के बजाय, इन राजसी सरीसृपों के लिए इसके आकर्षण को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। प्लास्टिक, कचरा और अन्य मलबे को बढ़ने दें, मगरमच्छों के लिए एक ऐसा आवास बनाएँ जो मेहमाननवाज़ और घर जैसा हो!

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वैसे सयानों का एक समुदाय यह भी कह सकता है कि, सालारजंग संग्रहालय जैसे सांस्कृतिक संस्थान के पास मगरमच्छों का अचानक दिखाई देना महज संयोग नहीं माना जा सकता। हो न हो, ये सरीसृप प्रकृति के संदेशवाहक हैं। शायद शहर को जलमार्गों के प्रति उपेक्षा और अनादर की याद दिलाने के लिए भेजे गए हैं। मूसी, जो कभी एक जीवित और बहती नदी थी, अब अपने पूर्व स्वरूप की छाया मात्र रह गई है। मगरमच्छ के आगमन को एक मुखर संदेश के रूप में समझा जाना चाहिए कि नदी की महिमा को बहाल करें, वरना प्रकृति ख़ुद अपना इंतज़ाम करना जानती है!

ऐसे में, इन मगरमच्छों को हटाने या कहीं और बसाने के बारे में सोचना एक बड़ी गलती होगी। इसके बजाय, शहर को उन्हें हैदराबाद के लिए एक नए युग के राजदूत के रूप में अपनाना चाहिए। मगरमच्छ-थीम वाले पर्यटन की संभावनाएँ अकेले ही बहुत ज़्यादा हैं। पर्यटक पहले से ही शहर की विश्वप्रसिद्ध बिरयानी और चारमीनार की भव्यता के लिए आते हैं। अब, वे कुछ वाकई अनोखा अनुभव कर सकते हैं: मूसी के किनारे मगरमच्छ स़फारी! पैडल बोट को बख्तरबंद जहाजों के रूप में फिर से डिज़ाइन किया जा सकता है, जिससे पर्यटकों को उनके प्राकृतिक आवास में सरीसृपों को करीब से देखने का मौका मिलेगा!
संभावनाएँ और भी हैं। लेकिन बाकी फिर कभी।

डॉ. ऋषभ देव शर्मा

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