क्लिनिकल एक्ट में यूनानी चिकित्सा के साथ न्याय की मांग

हैदराबाद, तेलंगाना यूनानी मेडिसिन मैन्युफैक्चरर्स असोसिएशन (तुम्मा) ने राष्ट्रीय आयुष आयोग (एनसीएसएम) को क्लिनिकल एस्टैब्लीशमेंट एक्ट 2010 में यूनानी चिकित्सा प्रणाली के साथ हो रहे अन्याय को देखते हुए त्वरित हस्तक्षेप की मांग करते हुए एक ज्ञापन सौंपा है।

असोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. फजल अहमद ने यहाँ जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि यह कानून केवल एलोपैथी चिकित्सा को ध्यान में रखकर बनाया गया है और यूनानी चिकित्सा को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है। उन्होंने कहा कि यूनानी चिकित्सकों को अपने क्लिनिक का रजिस्ट्रेशन जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के पास कराना पड़ता है, जबकि राज्य में आयुष बोर्ड मौजूद है। साथ ही एलोपैथी डॉक्टरों को 5 वर्षों के लिए रजिस्ट्रेशन मिलता है, जबकि यूनानी डॉक्टरों को केवल 1 वर्ष के लिए रजिस्ट्रेशन दिया जाता है। आवेदन पत्रों में यूनानी चिकित्सा को “रेजिमेनल थेरेपीज़” के लिए कोई विकल्प नहीं दिया गया है और यूनानी चिकित्सा संस्थानों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश भी नहीं हैं।

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डॉ. फजल अहमद ने कहा कि यूनानी चिकित्सकों से वही रजिस्ट्रेशन शुल्क लिया जाता है, जो एलोपैथी चिकित्सकों से लिया जाता है, जबकि उनकी आर्थिक स्थिति भिन्न है। एसोसिएशन ने आयोग से मांग की है कि राज्य पैनल में कम से कम चार निजी यूनानी चिकित्सकों को शामिल किया जाए। यूनानी चिकित्सा केंद्रों को बीमा और रिइम्बर्समेंट की सुविधा दी देने, पंजीकरण और नवीनीकरण शुल्क में कमी करने तथा यूनानी चिकित्सा के लिए अलग दिशानिर्देश और आवेदन प्रपत्र तैयार करने की मांग भी ज्ञापन पत्र में शामिल है। असोलिएशन ने आयोग से अपील की है कि भारतीय चिकित्सा पद्धति की रक्षा करते हुए यूनानी चिकित्सकों को अपने क्लिनिकल संस्थान स्थापित करने में पूरा सहयोग प्रदान करे।

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