फैशन नहीं, आज की ज़रूरत है घरों में डिजिटल वर्क कॉर्नर

डिजिटल वर्क कॉर्नर का मतलब है, घर के अंदर छोटा-सा एक ऐसा कॉर्नर जो ऑनलाइन काम करने, पढ़ाई करने या किसी के साथ मीटिंग करने के लिए उपयुक्त हो। आजकल यह डिजिटल वर्क कॉर्नर सिर्फ देश के बड़े शहरों के घरों में ही देखने को नहीं मिलता, बल्कि भारत के टियर-2 और टियर-3 जैसे शहरों में भी अब यह बहुत तेजी से घर का जरूरी हिस्सा हो गया है। अगर इंटीरियर डिजाइन एक्सपर्ट्स की नजर से जानें तो यह ट्रेंड अभी जाने वाला नहीं है बल्कि अभी यह ट्रेंड बहुत तेज होने वाला है और छोटे शहरों व कस्बों से गांव तक जायेगा। आइये इसके बारे में विस्तार से जानें।  

ये है डिजिटल वर्क कॉर्नर  

घर की ऐसी शांत और काम्पैक्ट जगह जहां लैपटॉप या कंप्यूटर रखा जा सके। जहां बैठने के लिए एक आरामदायक कुर्सी, वीडियो कॉल के लिए जरूरी रोशनी और एक वर्किंग टेबल, जिसमें डिजिटल वर्किंग कल्चर की सभी जरूरी चीजें मौजूद हों, जैसे चार्जर, डायरी, पेन, फाइलें और इन सबके साथ इस कॉर्नर की एक साफ-सुथरी व आकर्षक पृष्ठभूमि भी जरूरी है।

इसे इंदौर की स्वाति अग्रवाल के घर में हाल ही के दिनों में बनाये गये कामकाजी डिजिटल वर्क कॉर्नर से समझ सकते हैं। स्वाति और उसके पति दोनों अलग-अलग क्षेत्र में जॉब करते हैं, उनके पीछे घर में उनका 15 वर्षीय बेटा शुभम रहता है, जो स्कूल से आने के दो घंटों बाद दो अलग-अलग ऑनलाइन हॉबी क्लास करता है।

इसलिए स्वाति और उसके हसबैंड ने घर के स्टोर रूम के एक कोने को आजकल डिजिटल वर्क कॉर्नर के रूप में बदल दिया है। यहां एक साफ-सुथरे कोने में छोटा-सा डेस्क लगा हुआ है, एक कुर्सी रखी है, बगल में एक बुक सेल्फ है, रिंग लाइट लगाकर इसे एक खूबसूरत स्टडी वर्क कॉर्नर बना लिया गया है।

जबकि इसके विपरीत कानपुर की रचना सिंह ने यू-ट्यूब में अपना कुकिंग चैनल चलाने के लिए घर की रसोई से सटी एक खिड़की के पास अपना कामकाजी डिजिटल वर्क कॉर्नर स्थापित किया है। इसके लिए उन्होंने इस कॉर्नर में एक टेबल लगायी है और माइक के साथ एक छोटा सेटअप बनाया है, जहां वह अपने कंटेंट की रिकॉर्डिंग और वीडियो की एडिटिंग करती हैं।   

जबकि जयपुर के अमितेश ने अपनी फ्रीलांसिंग की क्वालिटी बेहतर करने के लिए अपने बेडरूम के बगल में ही स्लिम वॉल माउंटेन डिश और वॉल क्लैप के साथ वर्क स्टेशन सेटअप किया है, जिसके बैकग्राउंड में हल्के रंग का वॉल पेपर और कुछ आकर्षक प्लांट मौजूद हैं।

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टियर-2 और टियर-3 शहरों में भी बढ़ा डिजिटल वर्क स्पेस का ट्रेंड

ये सभी टियर-2 और टियर-3 शहरों के प्रोफेशनल आजकल उसी तरह घर के डिजिटल वर्क कॉर्नर में काम करने के आदी हैं, जैसे मुंबई, बंग्लुरु और हैदराबाद में कोरोना के दौरान आईटी प्रोफेशनलों ने अपने घर में लॉकडाउन लगने के बाद आनन-फानन में इस तरह के डिजिटल कॉर्नर डेवलप किये थे। शायद कोरोना महामारी न फैलती, तो संभव है यह ट्रेंड अभी इतना तेजी से आगे नहीं बढ़ता।  

यह ट्रेंड अभी लगातार बढ़ रहा है और अगले एक दशक तक यह रूकने का नाम नहीं लेने वाला। क्योंकि आज ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा, जहां हाइब्रिड कामकाज की स्थायी संस्कृति न पनप चुकी हो। अब छोटी हों या बड़ी सभी तरह की कंपनियां अपने कर्मचारियों को पूरी तरह से ऑफिस में बुलाकर काम कराने की पक्षधर नहीं हैं।

हर घर में जरूरी होता जा रहा है डिजिटल वर्क कॉर्नर

सभी तरह की कंपनियां अपने कर्मचारियों को काफी हद तक वर्क फ्राम होम देने लगी हैं या फिर हाइब्रिड मॉडल अपना रही हैं, जिसमें कर्मचारी तीन दिन ऑफिस में काम करता है और तीन दिन घर में। इसका एक फायदा यह हुआ है कि छोटे शहरों में रहने वाले लोग भी दूर से काम कर पा रहे हैं, जो नौकरी नहीं कर रहे, उन घरों में भी ऐसी डिजिटल कॉर्नर का होना अब आश्चर्य में नहीं डालता, क्योंकि भले उस घर के लोग नौकरी न कर रहे हों, लेकिन बच्चे पढ़ तो रहे ही होंगे और आज ऑफलाइन से ज्यादा पढ़ाई ऑनलाइन हो चुकी है। तमाम प्रोफेशनल कोर्सेज तो अब ऑनलाइन मॉडल को ध्यान में रखकर ही डिजाइन किए जाते हैं।  

आज दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में भी लाखों युवा यू-ट्यूब चैनल, वीडियो एडिटिंग, कंटेंट राइटिंग या ट्यूटरिंग का काम कर रहे हैं, इसलिए उनके लिए भी घर में एक वर्क स्पेश का होना भी जरूरी हो गया है। कुल मिलाकर घर का डिजिटल वर्क कॉर्नर इन दिनों मल्टीयूज फैसिलिटीज वाला बन गया है। छोटे हों या बड़े सभी तरह के घरों में एक डिजिटल वर्क कॉर्नर फैशन नहीं बल्कि बेहद जरूरी कोना बन गया है। हमारी डिजिटल लाइफ तो अभी शुरु हुई है, अभी इसे बहुत दिनों तक फलना फूलना है।

– मधु सिंह 

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