समग्र स्वास्थ्य के लिए करें योग (विश्व योग दिवस)

योग एक समग्र स्वास्थ्य व्यवस्था है और समग्र स्वास्थ्य का मतलब केवल शारीरिक परेशानियों से मुक्ति नहीं बल्कि मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और सामाजिक सामंजस्य बेहतर बनाने की स्थिति है। इसलिए योग एक होलिस्टिक हेल्थ विजडम है। यह शरीर, मन और आत्मा तीनों के स्तर पर संतुलन और संतुष्टि देता है।

योग भारतीय संस्कृति की एक अनमोल धरोहर है, जो हज़ारों सालों से हमारे समग्र स्वास्थ्य की साधना का आधार रहा है। अब चिकित्सा विज्ञान भी इस बात को मानता है कि योग केवल व्यायाम या शरीर को लचीलापन देने वाली गतिविधि नहीं है, बल्कि यह समग्र स्वास्थ्य व्यवस्था है, जिसे जीवनशैली का आधार बनाया जाना चाहिए।  

गौरतलब है कि साल 2025 के अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की थीम है, ‘योगा फॉर बन अर्थ, वन हेल्थ’ यानी योग एक धरती के लिए एक स्वास्थ्य व्यवस्था है। यह थीम किसी और ने नहीं भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2025 में अपनी ‘मन की बात’ कार्यक्रम के तहत कही थी, जिसमें उन्होंने योग को वैश्विक स्वास्थ्य और पृथ्वी की भलाई के लिए एक ज़रूरी माध्यम या व्यवस्था बताया था।

योग: व्यक्तिगत स्वास्थ्य से लेकर वैश्विक कल्याण तक का समग्र समाधान

‘योगा फॉर बन अर्थ, वन हेल्थ’ थीम का मूलत: उद्देश्य यही है कि योग के माध्यम से न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य को सुधारा जाए, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और वैश्विक कल्याण को भी इससे बढ़ावा मिले। यह विचार ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की भावना को दर्शाता है, जिसमें समस्त जीवों और समूची धरती के साथ संतुलन व सामंजस्य पर बल दिया गया है।  

आज की तेज रफ्तार ज़िंदगी में शरीर, मन और आत्मा तीनों अपनी-अपनी तरह से अस्वस्थ हैं और मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम में ऐसी दवाईयां नहीं हैं, जो एक साथ इन तीनों को सही कर सकें, इसमें संतुलन कायम करें, सिर्फ योग ही ऐसा कर सकता है।

इसलिए अब आधुनिक चिकित्सा के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी योग की ज़रूरत पर बल दिया है। डब्ल्यूएचओ भी अपनी स्वास्थ्य परिभाषा में यह स्पष्ट कर चुका है कि शरीर का स्वस्थ होना महज किसी तरह के शारीरिक रोगों की अनुपस्थिति भर नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति की समपूर्ण रूप से संतुष्ट और अच्छे होने की स्थिति है। योग के ज़रिये हम समग्र स्वास्थ्य हासिल कर सकते हैं।

योग के आठ अंग और स्वास्थ्य पर उनका सकारात्मक प्रभाव

योग का अर्थ होता है जुड़ना यानी शरीर से, मन से, आत्मा से और ब्रह्मांड से जुड़ना। योग के प्रमुख अंगों में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि आते हैं। वास्तव में ये आठों स्थितियां जब किसी एक व्यक्ति अपने आपमें समाहित कर लेता है, तब उसे बाहर की कोई भी स्थिति असंतुष्ट या अस्वस्थ नहीं कर सकती।

 योग के ज़रिये हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। यह हमारे पाचनतंत्र में सुधार करता है, हार्मोनल संतुलन बनाता है, श्वंसन तंत्र को मज़बूती प्रदान करता है और हमारे हृदय स्वास्थ्य को नियंत्रित करता है। दरअसल, नियमित योगाभ्यास से शरीर का इम्यून सिस्टम सशक्त होता है, जो कि हमारे शरीर की बीमारियों से लड़ने के लिए शरीर की क्षमता को बेहतर बनाता है।

इसी तरह योगासन, जैसे- पवनमुक्त आसन, वज्रासन और भुजंगासन हमारी पाचन क्रिया को सुदृढ़ करते हैं। जबकि विशेष योग क्रियाएं, जैसे- सूर्य नमस्कार, शशांकासन, एंडोक्राइन ग्रंथियों पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसके तहत किए जाने वाले प्राणायाम से हमारे फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है, जिससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसे रोगों में लाभ होता है।

योग से मानसिक स्वास्थ्य, एकाग्रता और भावनात्मक संतुलन में सुधार

नियमित योग किए जाने पर हमारा हृदय पूरी तरह से स्वस्थ रहता है, क्योंकि योगासन रक्तचाप और कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करते हैं। हृदय संबंधी रोगों में यह सहायक उपचार के रूप में लोकप्रिय हुआ है।

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योग जितना शारीरिक परेशानियों में सहायक है, उससे कहीं ज्यादा असरकारक मानसिक स्वास्थ्य के मामले में है। योग तनाव और चिंता में हमें राहत देता है। योगासन विशेषकर ध्यान (मेडिटेशन) व प्राणायाम (जैसे अनुलोम-विलोम) मस्तिष्क में कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) के स्तर को कम करते हैं। यह डिप्रेशन से लड़ने में सहायक है। विभिन्न शोध बताते हैं कि योग न्यूरोट्रांसमीटर सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाता है, जिससे मूड बेहतर होता है।

योग से एकाग्रता बढ़ती है और स्मृति भी मज़बूत होती है। त्राटक, ब्राह्मरी और ध्यान अभ्यास मस्तिष्क की एकाग्रता और उसकी याद्दाश्त की क्षमता को बढ़ाते हैं। इससे विद्याथियों को खासतौर पर लाभ होता है। इसी तरह योग इंसानों में भावनात्मक व सामाजिक संतुलन मज़बूत करता है।

योग से आध्यात्मिक विकास, सामाजिक सामंजस्य और चिकित्सा में भूमिका

योग स्वभाव में धैर्य, क्षमा और करुणा का विकास करता है। इससे व्यक्ति संबंधों में सहिष्णुता और सामंजस्य बना रहता है। सामूहिक योगाभ्यास, सामाजिक जुड़ाव और सामूहिक चेतना का अनुभव होता है। इससे अकेलेपन व अवसाद जैसी समस्याओं से राहत मिलती है।  

योग आध्यात्मिक स्वास्थ्य और आत्मज्ञान का भी सूचक है। नियमित योग करने से व्यक्ति में आत्मनिरीक्षण और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है। व्यक्ति अग्रसर होता है, जिससे जीवन में उद्देश्य और संतुलन के साथ-साथ आंतरिक शांति का विकास होता है। ध्यान व्यक्ति को ‘स्व’ के निकट लाती हैं।

इससे जीवन की दृष्टि और दिशा दोनों स्पष्ट रहते हैं। इसलिए योग और आधुनिक चिकित्सा के बीच किसी तरह का भेदभाव या विरोधाभाषी नहीं है, ये दोनों एक साथ मिलकर व्यक्ति को हर तरह से सुखी रखने की कोशिश करते हैं। यही वजह है कि भारतीय और विदेशियों में कई ऐसे योग संस्थान या योग चिकित्सा संस्थान खुल गए हैं, जो योग थैरेपी को डायबिटाज, उच्च रक्तचाप, पीठ दर्द, गठिया, मोटापा और डिप्रेशन जैसे रोगों की इलाज में पूरक पद्वति के रूप में उपयोग कर रहे हैं।

बड़े चिकित्सा संस्थान योग को वैज्ञानिक रूप से जांचने और अपनाने में अग्रणी है। भारत ही नहीं, अमरीका में भी नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ, योग को एक कॉम्प्लीमेंटली हेल्थ एप्रोज के रूप में मान्यता देता है। सबसे बड़ी बात यह है कि योग से जीवनशैली में सुधार होता है। मोबाइल आधारित जीवनशैली और तनाव के कारण पूरी दुनिया में करोड़ों की तादाद में लोग लाइफस्टाइल डिजीज का शिकार हो रहे हैं।

इससे बचने का सबसे कारगर तरीका नियमित योग ही है। क्योंकि इससे नींद सुधरती है, वजन नियंत्रित होता है और डिजिटल डिटॉक्स भी योग के ज़रिये सुधरता है।

-डॉ. अनिता राठौर 

यह भी पढ़ें:जीवन की भागदौड़ में तनाव से मुक्त रहना ज़रूरी,कैसे?

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