डुप्लीकेट दावत

– डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव

बहुत दिनों से कोई दावतनामा नहीं आया था। लगभग एक साल हो गए थे। मैं पास पड़ोस वालों को दावत पर जाते देखा करता था। बगलवाले शर्मा अंकल को अक्सर दावतों में जाते देखा करता था। मन करता कि इनके साथ चला जाऊँ, पर हमारे पापा इसके ख़िल़ाफ थे। उनका कहना था कि बिना निमंत्रण के कहीं भी नहीं जाना चाहिए।

कई दिनों बाद भगवान ने मेरी सुन ली। मेरे दूर के रिश्तेदार का निमंत्रण आया तो मैं ख़ुशी से झूम उठा। शादी इसी महीने की 20 तारीख को थी। पापा बोले, मेरी तबियत ठीक नहीं रहती है राजू, तुम ही चले जाना। जी पापा.. मैंने कहा और बेसब्री से 20 तारीख का इंतज़ार करने लगा। एक-एक दिन मुझे भारी लगने लगे।

आखिरकार वह दिन भी आ ही गया। मेरा एक परम मित्र रमेश था। वह जब भी किसी दावत में जाता था तो मुझे अपने साथ ले जाता था। हम दोनों जमकर दावत का आनंद लेते थे। अब मेरी बारी थी। दावतनामा किसी का भी हो दावत में हम दोनों का जाना निश्चित था। मैंने रमेश को दावत के बारे में बता दिया था।फिर क्या 20 तारीख को हम दोनों दावत में थे। मैंने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। हम दोनों नाश्तेवाले स्टॉल पर पहुंचे। वहाँ भीड़ बहुत थी। हम भी बड़े घाघ थे। भीड़ को चीरते हुए स्टॉल के नजदीक जा पहुंचे। यह क्या?डोसे के स्टॉल पर आउट ऑफ स्टॉक का बोर्ड लग चुका था। भीड़ अब दो भागों में विभाजित हो चुकी थी, कुछ लोग पानीपुरी की ओर गए तो कुछ चाउमीन की ओर। हम पानीपुरी की ओर गए, परंतु वहाँ भी पानी फिर चुका था। फिर हम दोनों चाउमीन की ओर दौड़े कहीं वह भी खत्म न हो जाए! हम चाउमीन को छोड़ना नहीं चाहते थे। हम दोनों ने चाउमीन का आनंद लिया।

रमेश बोला, अब हमें भोजन कर लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि इससे भी हाथ धोना पड़े। हम भोजन के स्टॉल पर पहुंचे। वहाँ भी सब निपट चुका था। रसगुल्ला से रसगुल्ला गायब हो चुका था। डोंगे में चाशनी ही मात्र स्वागत कर रही थी। छोले की सब्जी में छोला गायब था। रोटियों के स्टॉल पर मारामारी मची थी।रमेश बोला, भाई! ये दावत तो बेकार रही। मैं दावत को बेकार नहीं जाने देना चाहता था, पर क्या किया जाए?

मैंने एक विचार रमेश के सामने रखते हुए कहा, देखो, इस दावत में मुझे कोई नहीं जानता था और बगलवाले गेस्ट हॉउस में भी कोई नहीं जानता होगा, तो क्यों ना इस दावत को छोड़कर दूसरी दावत का आनंद लिया जाए! रमेश को मेरा विचार ठीक लगा। हम ओरिजनल दावत को बाय-बाय करके जुगाड़ू दावत में जा घुसे और जमकर दावत का आनंद लिया। हम दोनों भोजन के बाद मिष्ठान का आनंद ले ही रहे थे कि रमेश ऐसे भागा जैसे उसने कोई भूत देख लिया हो। उसे भागता देख मैं दंग रह गया और मुझे भी वहां से भागना पड़ा। हम गेस्ट हाउस से बाहर निकल गए।

मैंने उससे अचानक भागने का कारण पूछा तो वह बोला, अरे! जिस रिश्तेदार से वर्षों से हमारी लड़ाई चली आ रही है। यह उसी की लड़की की शादी है। खैर, ओरिजनल दावत में तो कुछ मजा नहीं आया, लेकिन डुप्लीकेट दावत का हम दोनों ने जमकर लुफ्त उठाया।

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