मन की आजादी भी आवश्यक : रमेशजी
हैदराबाद, स्वतंत्रता दिवस समारोह और जन्माष्टमी महोत्सव पर सद्गुरु रमेशजी ने कहा कि जितनी आवश्यक देश की आजादी है, उतनी ही आवश्यक मन से आजादी है, क्योंकि मन ही हमारी मुक्ति और बंधन का कारण है। वास्तविकता में हम सब आजाद ही हैं, लेकिन मन ने मान लिया है कि हम कर्म बंधन में हैं या संसार के बंधन में हैं। इसीलिए हमें सुख-दुःख का अनुभव होता है ।
अवसर पर भारत छोड़ो आंदोलन की तरह मन के नियंत्रण में रहना छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की गई। मन से मुक्ति के बिंदु पर जोर देते हुए रमेशजी ने कहा कि श्री कृष्ण भगवान का जीवन साक्षात् चेतना का जीवंत स्वरूप है, जो हम सबके लिए प्रेरणादायक व मार्गदर्शक है। उनके बाल रूप, नटखट माखन चोर की लीलाएँ, कालिया मर्दन, निस्वार्थ और असीम प्रेम रूप हमारे मन के भीतर चलने वाले द्वंद्व के रूप में उनका महाभारत रूप, गीता के ज्ञान के रूप में उनका गुरु रूप सबमें ज्ञान बसा है।
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कृष्ण चेतना और राधा प्रेम का संदेश
सद्गुरु रमेशजी ने कहा कि चेतना के इस असीम रूप से जो भी जुड़ा, उन्होंने उन सभी का कल्याण किया। अपने मामा कंस को भी उन्होंने घृणा की दृष्टि से नहीं देखा, उनका उद्धार ही किया, शिशुपाल का भी उद्धार किया, मित्र सुदामा की गरीबी-अमीरी ना देखते हुए उद्धार किया और भीष्म पितामह को तार दिया। रमेशजी ने कहा कि वर्तमान समय में गुरु और संतों का ज्ञान ही कृष्ण की गीता है। द्वैत में आनंदित रहते हुए अद्वैत की चेतना से प्रेम करना और राधा के अनंत प्रेम की धारा को सदा महसूस करना, यही मनुष्य धर्म है। जो हमारे प्रति दुर्व्यवहार करता है, उसके प्रति सद्व्यवहार करना, क्षमा याचना करना, हमें वास्तव में हमारे कर्मों से मुक्त करता है।
गुरु माँ ने अपने संबोधन में आत्मा को अपना वतन मानकर उसको सर्वव्यापी चेतना से जोड़ने के लिए जी जान लगाने का आवाह्न किया। इस दौरान श्री कृष्ण के जीवन पर आधारित नृत्य-नाटिका का मंचन किया गया।
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