हैदराबाद, भक्त जब पूर्ण रूप से श्रद्धा और भक्ति से समर्पित हो जाता है, तभी प्रभु उसकी रक्षा करते हैं। भगवान भक्त के बस में होते हैं। उक्त उद्गार गणेश मन्दिर, चादरघाट में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन आचार्य सत्यप्रकाश शास्त्रीजी ने व्यक्त किए। महराजजी ने कहा हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर वरदान माँगा कि मैं न दिन में, न ही रात्रि में, न घर के अन्दर, न ही बाहर, न ही बारह माह में मर सकूँगा।
जब उसे इसके अनुरूप आशीर्वाद मिला, तो उसने पृथ्वी पर भगवान की पूजा पाठ बन्द करवाकर स्वयं के नाम जपने व पूजा करवानी आरंभ की। उसके घर प्रह्लाद का जन्म हुआ। भक्त को चाहे कोई भी स्थान हो, भक्ति से कोई रोक नहीं सकता। गुरुकुल में जब प्रह्लाद पढ़ने गए, तब उन्हें वहाँ बहुत प्रताड़ित किया गया। हिरण्यकश्यप की बहन को वरदान था कि उसे अग्नि जला नहीं सकती। उसने जब प्रह्लाद को जलाने का प्रयास किया, तो वह स्वयं होलिका में जल गयी।
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हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को प्रताड़ित करने के लिए रस्सी से बांध दिया और कहा कि अब तू अपने नारायण को बुला। प्रह्लाद की पुकार पर नृसिंह रूप में खंभे से भगवान प्रकट हुए और संध्याकाल के समय घर की दहलीज पर भगवान ने हिरण्यकश्यप का वध किया। अवसर पर पूजा आचार्य आलोक मिश्रा, सुनील पाण्डेय, आचार्य ओम प्रकाश, रामराज तिवारी, नीरज तिवारी, वेदप्रकाश तिवारी, देवेन्द्र महाराज, रमेश मोदानी, मुरलीधर गुप्ता, भरत अग्रवाल, उदय राम, नारायणदास भराड़िया, दिनेश बंसल, ओमप्रकाश अग्रवाल, वेंकटलाल, सत्यनारायण बंग, बंसीलाल, हरिगोपाल तोतला, पुरुषोत्तमदास, सचिन तोष्णीवाल, राम डालिया, विकास अग्रवाल, श्रीनिवास, नटवर दरक, बलराम, अमरीश जायसवाल, सुमित्रा राठी व अन्य उपस्थित थे।
