हाईकोर्ट ने खारिज की उदासीन मठ की याचिका

हैदराबाद, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने स्पष्ट करते हुए कहा कि मठों का संचालन ठीक से न होने पर और मठ से संबंधित भू-संपत्ति की सुरक्षा बरकरार रखने में मठाधिपतियों के विफल होने पर कानून के तहत कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति करने का सरकार को अधिकार है। हुसैनी अलम, हैदराबाद स्थित श्री उदासीन मठ से संबंधित कूकटपल्ली स्थित निजाम के जमाने से चली आ रही 540.30 एकड़ भू-संपत्ति की सुरक्षा करने में मठ के महंत विफल हो गए, जिस कारण धर्मस्व विभाग ने कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति करते हुए आदेश जारी किए।
इस आदेश को चुनौती देते हुए श्री उदासीन मठ व महंत अरुणदास उदासीन ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। इस याचिका पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस नागश भीमिपाका ने सुनवाई की। दलील सुनने के पश्चात न्यायाधीश ने दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मठ से संबंधित भू-संपत्ति की सुरक्षा करने में मठाधिपति के विफल होने पर सरकार को इसकी नियुक्ति करने का अधिकार है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने दलील देते हुए बताया कि कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति करने का अधिकार विशेष परिस्थितियों में ही धर्मस्व विभाग के आयुक्त को रहता है, लेकिन इस मामले में बिना किसी आरोप के अधिकारी की नियुक्ति कानून के विरुद्ध है।
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भूमि अधिग्रहण और मठाधिपति की विफलता
वर्ष 1966-69 के दौरान इंडियन डेटोनेट्र्स लिमिटेड, आईडीएल केमिकल्स को 99 वर्ष के लिए यह भूमि लीज पर मंजूर की गई। वर्तमान समय में यह भूमि गल्फ ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड के अधीन है। लोकायुक्त के आदेश के अनुसार, मठ व उसके व्यवहार पर जाँच-पड़ताल करने पर इस मामले का खुलासा हुआ। इस कारण ही कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति के आदेश दिए गए।
दलील सुनने के पश्चात मठ का संचालन करने वाले मठाधिपति धार्मिक गतिविधियों तक ही सीमित रह गए। रिकॉर्ड की जाँच करने पर पता चला कि भूमि लीज पर लेने वाले लोगों ने भूमि अन्य लोगों को आवंटित कर दी। इस कारण मठ व महंत ने धर्मस्व विभाग के उपायुक्त से भूमि का अधिग्रहण कर इसे मठ को सौंपने का आग्रह किया।
अधिकारियों ने अदालत की शरण लेकर यह भूमि मठ के अधीन की। इसके बाद 9 एकड़ श्मशान वाटिका के लीज धारकों ने लीज़ पर ली गई भूमि को बदल दिया। संचालन ठीक से न होने के कारण ही धर्मस्व विभाग की ओर से कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति को उचित बताया गया। उन्होंने कहा कि भू-संरक्षण में विफल हो गए हैं। इस आधार पर ही दायर याचिका को खारिज करते हुए न्यायाधीश ने अधिकारी की नियुक्ति संबंधी आदेश का समर्थन किया।
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