मैं एक किन्नर हूँ
(सारिका असाटी)
मेरे घर का गृह-प्रवेश था। इस अवसर पर किन्नर भी आ गए थे। मेरे मन में इनके निजी जीवन के बारे में जानने की इच्छा हुई और इस संदर्भ में प्रिया नामक किन्नर से कुछ प्रश्न करने लगी। मैंने किन्नर प्रिय से प्रश्न किया, आपका जन्म कहाँ हुआ और आपके माता-पिता कौन हैं?
उसने एक लंबी साँस ली। वह कुछ उदास होकर निराश-सी अपनी जीवन-गाथा बताने लगी- ये तो नहीं बता सकती कि मैं कहाँ से हूँ और बताना भी नहीं चाहती। हाँ, इतना मुझे याद है कि मेरे माता-पिता को कोई संतान नहीं हो रही थी। उनकी शादी के दस साल के बाद मैं पैदा हुई। घर में पहली संतान आई है, यह जानकर सभी बहुत खुश हुए। समय गुज़रता गया। जब मैं चार-पांच साल की हुई तो हमारे घर में कामवाली बाई को पता चला कि मैं लड़की नहीं, बल्कि एक हिजड़ा हूँ तो उसने मेरे माता-पिता को यह बात बतायी। यह बात सुनकर उनके तो होश ही उड़ गए। मेरे माता-पिता मुझे बहुत लाड़-प्यार करते थे। बेश़क, पहले से ज़्यादा। उन्हें इस बात का डर था कि कहीं मुहल्ले में हल्ला ना हो जाए कि मैं किन्नर हूँ, इसलिए उन्होंने बाई को समझाया कि मुहल्ले में किसी को भी यह बात न बताये कि यह बच्ची किन्नर है। इस बात को छुपाये रखने के एवज में कामवाली बाई की लगभग हर इच्छा पूरी करने लगे। समय गुज़रता गया। देखते-देखते मेरी उम्र पंद्रह साल की हो गई। बस यहीं से शुरू हुई, मेरी कहानी लड़की से किन्नर बनने की। मेरी आवाज़ बदलने लगी। मेरा चाल-ढाल बदलने लगा। मैं खुद ही परेशान हो गई कि ये मेरे साथ क्या हो रहा है और क्यों हो रहा है? क्या मैं सचमुच किन्नर हूँ?
कहते हैं ना कि सच्चाई बहुत दिनों तक छुप नहीं सकती। एक दिन ऑटोवाले के साथ मैं झगड़ने लगी। इसी बीच वहां भीड़ इकट्ठी हो गई। मैं गुस्से में किन्नर की तरह तालियाँ पीट-पीट कर उसे गाली देने लगी। मुझे ऐसा करते देख सब दंग रह गए। बसी इसी एक घटना से यह राज़ खुल गया कि मैं एक किन्नर हूँ। उस मुहल्ले में मेरे हमारा रहना मुश्किल हो गया।
इधर, मेरी भावनाओं में भी बहुत बदलाव आने लगे, जैसे मुझे माँ की साड़ी पहनना अच्छा लगता था। कभी होंठों पर लिपस्टिक लगाना तो कभी रंगबिरंगी चूड़ियाँ पहनना। इस सबसे मुझे विश्वास हो गया कि मैं ना तो मर्द हूँ और ना ही औरत…..मैं तो एक किन्नर हूँ।
कुछ समय बाद हमारे घर पर एक किन्नर समुदाय आ धमका और मेरे माता-पिता से मुझे मांगने लगा। किन्नर समुदाय के लोग कहने लगे कि आपकी संतान आपके समाज की नहीं है। इसका समाज अलग है। हम इसे अपने साथ लेकर जाएंगे।
मेरे माता-पिता मुझे उनके साथ भेजना नहीं चाहते थे, लेकिन मैं जाने के लिए तैयार हो गई, क्योंकि मुझसे अपने माता-पिता की बेइज़्ज़ती और सहन नहीं की जा रही थी। उनकी आंखों में आंसू थे। घर-परिवार से निकलते समय मैंने उनसे वादा किया कि मैं उनकी संतान हूँ और हमेशा रहूंगी। उनसे हमेशा मिलने आती रहा करूँगी।
आप बीती सुनाते हुए प्रिया की आँखों में आँसू आ गए और वो सिसकते हुए कहने लगी, आज दस साल हो गए। यहाँ आकर मुझे दस साल हो गए, लेकिन मेरी कभी हिम्मत ही नहीं हुई कि मैं अपने माता-पिता से मिलने जाऊं। ये नरक की ज़िन्दगी है और मैं सोचती हूँ कि अब कौन-सा चेहरा लेकर उनके पास जाऊं? अब तो मुझे खुद से और खुद की ज़िन्दगी से ही बहुत घिन्न होती है। उनकी बहुत याद आती है। बचपन में ही उन्हें पता चल गया था कि मैं किन्नर हूँ, फिर भी उन्होंने मुझे बहुत प्यार दिया और उसके बाद उतना प्यार कभी किसी ने नहीं किया?
प्रिया फफक कर रो पड़ी। मेरी आँखों में भी आंसू आ गए। मैंने प्रिया के कंधे पर हाथ रखा और सांत्वना देते हुए कहा, प्रिया जो त़कदीर में लिखा होता है, वही होता है। शायद भगवान को यही मंज़ूर था, पर तुम बहुत खुशनसीब हो कि तुम्हारे माता-पिता ने वास्तविकता जानने के बावजूद भी इतना प्यार दिया था। तुम बहुत साहसी हो कि अपने माता-पिता की इज़्ज़त के लिए तुमने अपना रास्ता चुना।
प्रिया अपने गालों पर झरते आंसुओं को पोछते हुए कहने लगी, घिन्न आती है मुझे इस समाज पर और समाज के लोगों पर। हम किन्नर हैं, मगर हम भी तो किसी की संतान हैं। लोग हिजड़ा से ऩफरत करते हैं, लेकिन उनका आशीर्वाद लेने के लिए दौड़ पड़ते हैं। हम भगवान से यही दुआ करते हैं कि कभी किसी को हिजड़ा मत बनाना। यह ज़िंदगी बहुत दर्द देती है। खैर, जो भी है, जीना तो पड़ता ही है और जी भी रहे हैं। मैं पहली बार अपनी जीवन गाथा किसी को बता रही हूँ। अब थोड़ा जी हल्का हो गया। बहुत दिन से अच्छे से रो भी नहीं पाई थी, लेकिन आज…..!
अचानक वह हमारे घर से जाते हुए कहने लगी- मुझे ज़रूरी काम है, जाना होगा। मैं वहीं खड़ी स्तब्ध रह गई। प्रिया को जाते हुए देख रही थी उसकी कहानी, उसकी जिंदगी का स़फर, उसकी आँखों के आँसू अभी तक मुझे कचोट रहे थे।लेकिन प्रिया की यह दर्द भरी कहानी मुझे हज़ारों सवाल पूछ रहे थे, जिसका ज़वाब उनके पास नहीं था।