महासभा में भारत : दो टूक और रचनात्मक
भारतीय विदेश-मंत्री एस.जयशंकर का 28 सितंबर, 2024 को 79वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा में दिया गया भाषण काफी समय तक याद किया जाएगा। उन्होंने क्षेत्रीय और वैश्विक, दोनों मुद्दों पर बात की। ख़ास तौर पर पाकिस्तान के सीमा पार आतंकवाद और व्यापक वैश्विक चुनौतियों को लगातार समर्थन दिए जाने पर। उनकी टिप्पणियों ने न केवल आतंकवाद के खिलाफ भारत के कड़े रुख को एक बार फिर रेखांकित किया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय चिंताओं को दूर करने के लिए बहुपक्षीय सुधारों की ज़रूरत पर भी प्रकाश डाला।
विदेश-मंत्री के भाषण का एक मुख्य बिंदु पाकिस्तान की तीखी आलोचना थी। उन्होंने तर्क दिया कि पाकिस्तान ने जानबूझ कर उग्रवाद और कट्टरपंथ का रास्ता चुना है, जिससे आतंकवाद उसका प्राथमिक निर्यात बन गया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पाकिस्तान की सीमा पार आतंकवाद की नीति कभी सफल नहीं होगी और चेतावनी दी कि इस तरह की कार्रवाइयों के परिणाम अनिवार्य रूप से उसके लिए विपरीत ही होंगे। पाकिस्तान को दूसरों की ज़मीन पर लालच की निगाह रखने वाला अकार्यशील राष्ट्र बताते हुए, विदेश-मंत्री ने जम्मू और कश्मीर पर भारत की स्थिति को स्पष्ट किया। उन्होंने साफ-साफ कहा कि पाकिस्तान के साथ हल करने के लिए एकमात्र मुद्दा अवैध कब्जे वाले भारतीय क्षेत्र को खाली करना है। उन्होंने पाकिस्तान को चेतावनी दी कि वह अपने कर्मों के दंड से बचने की उम्मीद नहीं कर सकता और पाकिस्तान की वर्तमान सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक दुर्दशा को समझाने के लिए कर्म सिद्धांत का हवाला दिया। यानी, जैसी करनी वैसी भरनी!
भारतीय विदेश-मंत्री ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ की टिप्पणी का भी जवाब दिया, जिसमें उन्होंने कश्मीर की स्थिति की तुलना फिलिस्तीन से की थी। उन्होंने इस तुलना को खारिज कर दिया और जम्मू-कश्मीर पर भारत की संप्रभुता को दोहराया। विदेश-मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि आतंकवाद, चाहे वह किसी भी रूप में हो या कहीं से भी उत्पन्न हो, उसका अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा दृढ़ता से विरोध किया जाना चाहिए। कहना न होगा कि आतंकवाद के खिलाफ लगातार वैश्विक कार्रवाई का उनका यह आह्वान, नियंत्रण रेखा के पार सािढय आतंकवादी समूहों के लिए पाकिस्तान के समर्थन को लेकर भारत की लंबे समय से चली आ रही चिंताओं के सर्वथा अनुरूप है।
भारत-पाकिस्तान की खींचतान के अलावा, विदेश-मंत्री ने कई वैश्विक चुनौतियों पर भी बात की। उन्होंने याद दिलाया कि दुनिया रूस-पोन युद्ध, जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा मुद्दों जैसे संकटों का सामना कर रही है, जो सभी भू-राजनीतिक तनावों से बढ़ गए हैं। उन्होंने कहा कि इन चुनौतियों ने दुनिया को विखंडित, ध्रुवीकृत और निराश कर दिया है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार का आह्वान किया ताकि वे इन समस्याओं से निपटने में अधिक सक्षम और प्रभावी बन सकें। उन्होंने इस बात पर उचित ही खेद जताया कि, मौजूदा हालात में ये संस्थाएँ वैश्विक असमानताओं को दूर करने के बजाय गहरा करती प्रतीत हो रही हैं।
विदेश-मंत्री ने इस मौके का इस्तेमाल भारत के विकास पथ को आशा की किरण के रूप में उजागर करने के लिए बखूबी किया। इसके लिए उन्होंने डिजिटल वित्त, स्वास्थ्य सेवा और अंतरिक्ष अन्वेषण जैसे क्षेत्रों में भारत की तकनीकी प्रगति और नेतृत्व का उल्लेख किया। उन्होंने विकसित भारत के अभियान को न केवल एक राष्ट्रीय प्रयास के रूप में, बल्कि दुनिया के लिए एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया, जो एक जिम्मेदार वैश्विक शक्ति के रूप में भारत की भूमिका का द्योतक है। इस संदर्भ में, उन्होंने बहुपक्षवाद के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि की, लेकिन इस चेतावनी के साथ- कि आज की खंडित दुनिया में प्रासंगिक बने रहने के लिए वैश्विक संस्थाओं को अपनी जड़ता से मुक्त होना होगा।
निष्कर्षत, संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारतीय विदेश-मंत्री का संबोधन भारत की विदेश नीति की प्राथमिकताओं की एक शक्तिशाली अभिव्यक्ति था। यथा, आतंकवाद – विशेष रूप से पाकिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद – का कड़ा विरोध, बहुपक्षीय सुधारों की वकालत, और विकास के माध्यम से एक वैश्विक नेता के रूप में नए भारत का उदय।