समुद्र की लहरों पर भारत का परचम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 29 अक्तूबर, 2025 को मुंबई में मैरीटाइम लीडर्स कॉन्क्लेव में दिया गया संबोधन वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में अत्यंत प्रासंगिक है। आज की दुनिया में समुद्री व्यापार और सुरक्षा पर बढ़ते खतरे (जैसे लाल सागर संकट, जहाँ हूती विद्रोहियों के हमलों से वैश्विक सप्लाई चेन प्रभावित हो रही है) ने भारत की भूमिका को और मजबूत किया है। प्रधानमंत्री ने उचित ही कहा – जब वैश्विक समुद्र में उफान उठता है, दुनिया स्थिर मीनार ढूँढ़ती है।
भारत वह मीनार बनकर उभरेगा! दरअसल, प्रधानमंत्री का यह बयान सीधे-सीधे वर्तमान वैश्विक व्यापारिक अस्थिरता को संबोधित करता है, जबकि यूक्रेन-रूस युद्ध और मध्य पूर्व संघर्षों से ऊर्जा और माल की कीमतें आसमान छू रही हैं। भारत की समुद्री क्षमता में वृद्धि – पोर्ट क्षमता 2762 एमएमटीपीए तक पहुँचना और कार्गो हैंडलिंग में 64 प्रतिशत उछाल – ऐसे समय में वैकल्पिक रास्ते पेश करती है।
भारत की समुद्री नीति और वैश्विक रणनीति का विस्तार
जलवायु परिवर्तन के दौर में ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट और सस्टेनेबल लॉजिस्टिक्स की बातें कॉप-30 जैसे वैश्विक मंचों से जुड़ती हैं, जहाँ भारत ब्लू इकोनॉमी को बढ़ावा दे रहा है। महामारी के बाद की रिकवरी में, जहाँ वैश्विक व्यापार 90 प्रतिशत समुद्री मार्गों पर निर्भर है, भारत का मेरीटाइम इंडिया विजन 2030 निवेशकों के लिए सुनहरा अवसर है, जो लाखों रोजगार पैदा करेगा। 85 देशों के प्रतिनिधियों के बीच इस संबोधन ने दर्शाया कि भारत वैश्विक अनिश्चितताओं में स्थिरता का प्रतीक बन रहा है।
इस संबोधन की भू-राजनैतिक सांकेतिकता बेहद अहम है और भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बढ़ती भूमिका को रेखांकित करती है। प्रधानमंत्री ने उचित ही आईएमईसी (इंडिया-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर) का जिक्र किया, जो चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के विकल्प के रूप में उभर रहा है। यह कॉरिडोर न केवल व्यापार को बढ़ावा देगा, बल्कि मध्य पूर्व की अस्थिरता में भारत को रणनीतिक लाभ भी देगा। ध्यान रहे कि छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत से लेकर आधुनिक प्रयासों तक समुद्री सुरक्षा पर जोर देकर प्रधानमंत्री ने चीन की दक्षिण चीन सागर में विस्तारवादिता के खिलाफ भी दृढ़ता का संकेत दिया है।
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विकसित भारत के समुद्री सपनों की नई दिशा
वैश्विक स्तर पर भी इस संबोधन का स्पष्ट संदेश है कि भारत सागर (सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन) की नीति से महासागर तक विस्तार कर रहा है। यह शांति और स्वायत्तता पर आधारित है। 2.2 लाख करोड़ की परियोजनाएँ और एमओयू दर्शाते हैं कि भारत यूरोप, अफ्रीका और एशिया के साथ साझेदारी बढ़ा रहा है। यह साझेदारी अमेरिका-चीन व्यापार तनावों के बीच तटस्थ लेकिन प्रभावशाली भूमिका निभाएगी। अभिप्राय कि संबोधन भारत को वैश्विक समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित करता है, जो भू-राजनीतिक तनावों में संतुलन बनाए रखेगी।
कहना न होगा कि वैश्विक व्यापार में तनाव, आपूर्ति श्रृंखला टूटने और जलवायु संकट से भरे माहौल में भारत का उदय स्वाभाविक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2025 को समुद्री वर्ष घोषित किया। उन्होंने ध्यान दिलाया कि सदियों पुराने औपनिवेशिक कानूनों को तोड़कर आधुनिक विधेयक लाए गए हैं। राज्य समुद्री बोर्ड सशक्त हुए हैं। डिजिटलीकरण बढ़ा है। बड़े जहाजों को इंफ्रास्ट्रक्चर एसेट का दर्जा दिया गया है। वित्तीय सहूलियत की घोषणा की गई है।
सत्तर हजार करोड़ रुपये का पैकेज घोषित किया गया है। इसमें शिपयार्ड और कौशल विकास शामिल हैं। इससे लाखों नौकरियाँ पैदा होंगी। 4.5 लाख करोड़ निवेश आकर्षित कर 2500 जहाज बनेंगे। भारत के प्रथम डीप-वाटर ट्रांसशिपमेंट हब का निर्माण किया जाएगा। कांडला में ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट लगेगा। जेएनपीटी की क्षमता दोगुनी होगी। यानी, समुद्र सचमुच संपदा का सागर बनेगा और विकसित भारत का सपना समुद्र की लहरों पर सवार है!
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