क्या आपके धन प्रबंधन को प्रभावित कर रही है तुरंत संतुष्टि पाने की प्रवृत्ति?

आज की आधुनिक और तेज़-रफ़्तार दुनिया में इंस्टेंट ग्रैटिफिकेशन यानी तुरंत संतुष्टि पाने की प्रवृत्ति बेहद आम हो चुकी है। स्मार्टफोन, सोशल मीडिया, ऑनलाइन शॉपिंग, फूड डिलीवरी और आसान क्रेडिट सुविधाओं ने इंसान को यह सिखा दिया है कि जो चीज़ चाहिए, वह तुरंत हासिल की जा सकती है। यह आदत देखने में सामान्य लगती है, लेकिन धीरे-धीरे यह हमारे जीवन के कई क्षेत्रों को प्रभावित करती है। विशेष रूप से निवेश और धन प्रबंधन जैसे विषय, जिनमें अनुशासन और धैर्य की आवश्यकता होती है, इंस्टेंट ग्रैटिफिकेशन से सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं।

धन प्रबंधन की पहली सीढ़ी है बचत। यदि कोई व्यक्ति हर बार अपनी छोटी-बड़ी इच्छाओं को तुरंत पूरा करने लगे तो वह भविष्य के लिए बचत करने की आदत खो देता है। उदाहरण के लिए, यदि हर महीने की आय का अतिरिक्त हिस्सा ऑनलाइन शॉपिंग, महंगे गैजेट्स या अनावश्यक मनोरंजन पर खर्च हो जाए, तो लंबे समय में उसकी वित्तीय स्थिति अस्थिर हो सकती है। ऐसे में निवेश पोर्टफोलियो कमज़ोर हो जाता है और भविष्य की ज़रूरतों के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं जुट पाती। निवेश का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है धैर्य।

शेयर बाज़ार, म्यूचुअल फंड, सोना या रियल एस्टेट जैसे निवेश माध्यम लंबे समय में अच्छे रिटर्न देते हैं, लेकिन इंस्टेंट ग्रैटिफिकेशन से प्रभावित लोग जल्दी परिणाम चाहते हैं। वे चाहते हैं कि पैसा तुरंत बढ़े और यदि उन्हें तुरंत मुऩाफा न दिखे, तो वे निवेश से बाहर निकल जाते हैं। इस अधीरता के कारण वे अक्सर घाटा उठाते हैं और निवेश के असली लाभ से वंचित रह जाते हैं। तुरंत संतुष्टि की चाहत का एक और नकारात्मक पहलू है बढ़ता हुआ कर्ज़। आजकल ाढडिट कार्ड और आसान लोन सुविधाएँ हर किसी के लिए उपलब्ध हैं।

इच्छाओं के लिए ईएमआई लेना : एक खतरनाक जाल

ऐसे में लोग अपनी इच्छाएँ पूरी करने के लिए ईएमआई पर लक्ज़री सामान खरीद लेते हैं। जबकि असल में उनकी आय और ज़रूरतें इतनी नहीं होतीं। धीरे-धीरे यह कर्ज़ का बोझ बढ़ा देता है और व्यक्ति का पूरा वित्तीय संतुलन बिगड़ जाता है। हर व्यक्ति के कुछ दीर्घकालिक लक्ष्य होते हैं, जैसे- घर खरीदना, बच्चों की पढ़ाई, शादी, स्वास्थ्य सुरक्षा और रिटायरमेंट की तैयारी, लेकिन यदि इंसान हर बार अपनी इच्छाओं को प्राथमिकता देता रहे और आज ही सारा पैसा खर्च कर दे, तो भविष्य के इन लक्ष्यों के लिए आवश्यक पूंजी इकट्ठी करना मुश्किल हो जाता है।

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परिणामस्वरूप, आने वाले समय में आर्थिक असुरक्षा बढ़ जाती है और व्यक्ति दूसरों पर निर्भर होने को मज़बूर हो जाता है। यह प्रवृत्ति मानसिक संतुलन पर भी असर डालती है। जब व्यक्ति बार-बार इच्छाओं को तुरंत पूरा करता है, तो धीरे-धीरे उसमें धैर्य और अनुशासन की कमी होने लगती है। जब पैसों की कमी होती है या कर्ज़ बढ़ जाता है, तब तनाव और चिंता बढ़ने लगती है। वित्तीय असुरक्षा का यह तनाव व्यक्ति के रिश्तों और जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। इस स्थिति से बाहर निकलने का एकमात्र उपाय है अनुशासन और जागरूकता।

इंस्टेंट ग्रैटिफिकेशन बनाम वित्तीय अनुशासन

अपने खर्च और आय का मासिक बजट बनाना और उसका पालन करना आवश्यक है। ज़रूरी और गैर-ज़रूरी ख़र्चों में अंतर करना सीखना चाहिए। दीर्घकालिक निवेश योजनाओं, जैसे- पीपीएफ, म्यूचुअल फंड एसआईपी, इंश्योरेंस और रिटायरमेंट फंड को प्राथमिकता देनी चाहिए। छोटे-छोटे लक्ष्यों के लिए अलग फंड बनाकर इच्छाओं को नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही, निवेश को केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि जीवनशैली का हिस्सा बनाना चाहिए।

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-अनुराधा जाजू

संक्षेप में कहा जाए तो इंस्टेंट ग्रैटिफिकेशन अल्पकालिक खुशी तो देता है, लेकिन यह दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता और मानसिक शांति को कमज़ोर करता है। एक समझदार और अनुशासित व्यक्ति वही है जो अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखकर भविष्य की सुरक्षा के लिए आज सही फैसले लेता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम आज की छोटी-छोटी संतुष्टियों के मोह को छोड़कर कल की बड़ी सुरक्षा के लिए निवेश और बचत को प्राथमिकता दें।

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