इज़राइल-ईरान संघर्ष और अमेरिका की विडंबना
इज़राइल और ईरान के बीच चल रहा संघर्ष इस समय मध्य पूर्व के सबसे जटिल भू-राजनीतिक संकटों में से एक है। इसके परिणाम केवल उस इलाके तक सीमित नहीं रहेंगे। जैसे-जैसे तनाव बढ़ता जा रहा है, इसमें संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका पल-पल और अहम होती जा रही है। बेशक वह अपने सहयोगी इज़राइल का समर्थन करने और व्यापक क्षेत्रीय युद्ध से बचने के नाजुक संतुलन को बनाए रखने की कोशिश कर रहा हो।
इस इलाके में शत्रुता का नया अध्याय अभी-अभी हमास और हिजबुल्लाह के साथ इज़राइल की सैन्य मुठभेड़ों के बाद शुरू हुआ है, जिसने अमेरिका की नींद हराम कर दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने इज़राइल को ईरान के साथ व्यापक संघर्ष में अपनी सैन्य कार्रवाइयों को आगे बढ़ाने के खिलाफ चेतावनी दी है और स्थिति को नियंत्रित करने की ज़रूरत पर जोर दिया है। क्योंकि अगर यह संघर्ष व्यापक युद्ध में बदला, तो न केवल मध्य पूर्व को अस्थिर कर सकता है, बल्कि वैश्विक तेल बाजारों और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकता है।
बाइडेन सरकार ईरानी तेल सुविधाओं पर किसी भी इज़राइली हमले के संभावित परिणामों के बारे में मुखर रही है, क्योंकि उसे पता है कि इस तरह की कार्रवाइयों के जवाब में ईरान भी गंभीर कार्रवाई कर सकता है। यह सावधानी इस समझ से उपजी है कि ईरान का प्रभाव पूरे इलाके में सैन्य नेटवर्क के माध्यम से फैला हुआ है, जो किसी भी हमले का सख्ती से जवाब देने में सक्षम है। ऐसे में, बढ़ते संघर्ष की संभावना को कम करके नहीं आँका जा सकता है, और अमेरिका इस क्षेत्र में अपनी प्रतिबद्धताओं की अनिश्चित प्रकृति से अच्छी तरह वाकिफ है।
मध्य पूर्व मामलों के जानकार वली नस्र की मानें तो अमेरिका इस वक़्त बड़ी हद तक किंकर्तव्यविमूढ़-सा है। एक तरफ, वह इज़राइल की सुरक्षा के लिए लंबे समय से प्रतिबद्ध है, उसे एक अस्थिर क्षेत्र में एक अहम साथी के रूप में देखता है। दूसरी तरफ, ईरान के साथ व्यापक संघर्ष में वृद्धि अमेरिकी हितों को कमजोर कर सकती है, तेल की कीमतों में वृद्धि को बढ़ावा दे सकती है, और अमेरिकी हताहतों की संख्या बढ़ा सकती है, जिससे संभावित रूप से घरेलू असंतोष भड़क सकता है।
बाइडेन सरकार की रणनीति फिलहाल निरोध पर केंद्रित प्रतीत होती है, जिसमें एक तरफ कूटनीति पर जोर देना तो दूसरी तरफ सैन्य कार्रवाई की धमकी भी देते रहना शामिल है। ईरानी तेल सुविधाओं पर संभावित इज़राइली हमलों के बारे में चर्चा इस विडंबना को उजागर करती है। इस तरह की कार्रवाइयों का उद्देश्य ईरान की वित्तीय क्षमताओं को कमजोर करना होगा, लेकिन इससे व्यापक संघर्ष भड़कने का जोखिम है, जिसमें न केवल ईरान बल्कि क्षेत्र में उसके सहयोगी भी शामिल हो सकते हैं, जिसमें हिजबुल्लाह के अलावा इराक और सीरिया में प्रॉक्सी सेनाएँ भी शामिल हैं।
याद रहे कि ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षा और उग्रवादी समूहों के लिए उसके समर्थन को लंबे समय से इज़राइल अपने अस्तित्व के लिए खतरा मानता रहा है। इज़राइल सरकार ईरान की कार्रवाइयों को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सीधी चुनौती के रूप में देखती है, जिसके कारण सीरिया और अन्य जगहों पर ईरानी संपत्तियों को निशाना बनाकर पहले कई हमले किए गए हैं। इधर बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य, विशेष रूप से इज़राइल और कई अरब राज्यों के बीच संबंधों के सामान्यीकरण ने इस कहानी को कुछ और जटिल बना दिया है। यों, ईरान के खिलाफ एक एकीकृत मोर्चे की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता। गठबंधनों और शत्रुताओं के इस जटिल जाल में एक गलत फैसला बहुआयामी संघर्ष को जन्म देकर इलाके में तो मानवीय संकट को बढ़ा ही सकता है, दुनिया को तीसरे महायुद्ध की ओर भी ठेल सकता है! … और अमेरिका को इतनी तो समझ होगी ही कि विश्वयुद्ध का जिन्न एक बार बोतल से बाहर आया, तो खुद उसे भी निगल सकता है!