आत्ममुग्धता से मुक्त पत्रकारिता

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नये दौर की पत्रकारिता ने कई रंग रूप अपनाए हैं। उनमें से एक आत्ममुग्ध पत्रकारिता भी है। अधिकतर समाचार पत्र या मीडिया चैनल अपने संस्थापक-संचालकों के गुण गाते नहीं थकते। मुख्य पृष्ठों पर प्रकाशक परिवार की तस्वीरें प्राथमिकता के साथ छपती हैं। आत्ममुग्धता एक ऐसी मानसिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति खुद को अधिक महत्व देता है और अक्सर आत्म-प्रेम से भ्रमित भी हो जाता है।

लगातार प्रशंसा के बीच लक्ष्य और सिद्धांत फीके पड़ने लगते हैं। ऐसे में हिन्दी मिलाप ने एक अलग राह ली। आत्ममुग्धता से मुक्त पत्रकारिता की। मिलाप हमेशा संपादक केंद्रित न होकर पाठक केंद्रित रहा। विनय वीर जी ने इस सिद्धांत को कुछ इस तरह जिया कि वे एक मिसाल बन गये। उनके निधन के समाचार के साथ जब उनकी तस्वीर मिलाप में प्रकाशित हुई, तो अनेक पाठकों की प्रतिक्रिया यही थी कि वे संपादक की तस्वीर को पहली बार मिलाप में देख रहे हैं।

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विनय वीर जी सुबह-सुबह ही दफ्तर पहुँच जाते और पाठकों के शिकायत भरे फोन कॉल का इंतज़ार करते। मिलाप के एक सदस्य के रूप में पाठकों की बातें सुनते। अक्सर शिकायत करने वाला यह जान नहीं पाता कि वह संपादक से बात कर रहा है। शिकायतों को गंभीरता से लेते और इस संबंध में संपादकीय विभाग को आवश्यक सुझाव देते। उन्होंने मिलाप को पूरी तरह से पाठक केंद्रित बना दिया। उसी सिद्धांत की डोर को वर्तमान संपादक विपमा वीर जी के नेतृत्व में मिलाप परिवार ने मज़बूती से थामे रखा है।

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