केटीआर को फिलहाल गिरफ्तारी से राहत
हैदराबाद, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने फार्मूला ई कार रेस को लेकर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) द्वारा दर्ज मामले के संबंध में पूर्व मंत्री भारास विधायक केटीआर को 31 दिसंबर तक गिरफ्तार न करने के आदेश जारी किया।
गौरतलब है कि पिछली सुनवाई में केटीआर को 30 दिसंबर तक गिरफ्तार न करने के आदेश दिए गए थे। इस आदेश को 31 दिसंबर तक विस्तार दिया गया। एसीबी द्वारा गिरफ्तार न करने के आदेश को खारिज करने के आग्रह के साथ दायर याचिका को अदालत ने खारिज कर दिया। अदालत ने इस मामले में प्रतियाचिका दायर करने के सरकार को आदेश देते हुए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस के. लक्ष्मण ने सुनवाई 31 दिसंबर तक स्थगित कर दी। फार्मूला ई कार रेस के व्यवहार को लेकर एसीबी ने गत 19 दिसंबर को केटीआर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करते हुए इस मामले में केटीआर को आरोपी नं. 1, तत्कालीन विशेष सचिव अरविंद कुमार को आरोपी नं. 2 और एचएमडीए के तत्कालीन मुख्य अभियंता बीएलएन रेड्डी को आरोपी नं. 3 करार दिया।
दर्ज एफआईआर को खारिज करने का आग्रह करते हुए केटीआर ने गत 20 दिसंबर को भोजन अवकाश क्वाश पिटिशन दायर की थी। इस याचिका पर आज पुन सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गंड्रा मोहन राव ने दलील देते हुए कहा कि राजनीतिक शत्रुता के चलते याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। मामला दर्ज करना याचिकाकर्ता के खिलाफ अन्यायपूर्ण कार्रवाई है।इस दलील के साथ अधिवक्ता ने केटीआर को गिरफ्तार न करने के लिए इसके पूर्व दिए गए आदेश में विस्तार करने का आग्रह किया।
सरकार की ओर से महाधिवक्ता ए. सुदर्शन रेड्डी और अतिरिक्त महाधिवक्ता तेरा रजनीकांत रेड्डी ने सुनवाई में भाग लिया। दलील देते हुए महाधिवक्ता ने केटीआर के साथ पूछताछ करने के लिए अनुमति देने का आग्रह करते हुए हलफनामा दायर किया। इसके लिए अदालत ने साफ इनकार कर दिया। इस इनकार के साथ इसके पूर्व दिए गए आदेश को 31 दिसंबर तक विस्तार दिया।
मामले की सुनवाई के दौरान एसीबी की ओर से जाँच अधिकारी डीएसपी माजिद अली खान ने प्रतियाचिका दायर की। इसके साथ ही एफआईआर में दर्ज तथ्यों का पुन एक बार उल्लेख करते हुए बताया कि इस मामले में विगत सरकार ने कितने बड़े पैमाने पर नकदी का हस्तांतरण किया। मंत्री के रूप में रहते हुए याचिकाकर्ता ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया। आम जनता के धन को नियमों के विरुद्ध हस्तांतरण के लिए सहयोग देकर याचिकाकर्ता ने जनता के साथ विश्वासघात किया। उन्होंने बताया कि गत 18 दिसंबर को नागरिक प्रशासन व शहरी विकास विभाग के मुख्य सचिव दाना किशोर द्वारा इस मामले को लेकर शिकायत करते ही सरकार ने जाँच-पड़ताल प्रारंभ करने के लिए एसीबी के पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखा। इसके बाद 19 दिसंबर को एफआईआर दर्ज की गई। जाँच-पड़ताल प्राथमिक स्तर पर है और जाँच-पड़ताल को गलत करार देते हुए केटीआर ने अदालत में याचिका दायर की।
शिकायत की समीक्षा करने पर यह स्पष्ट हो रहा है कि याचिकाकर्ता समेत अन्य आरोपियों ने कानून के विरुद्ध नकदी का हस्तांतरण किया। जाँच की प्रारंभिक दशा में हस्तक्षेप कर आरोपियों को राहत देने संबंधी आदेश जारी करने का अदालत को काफी कम अधिकार है। उन्होंने बताया कि प्राथमिक जाँच-पड़ताल को रोकने के लिए किसी प्रकार के आदेश न देने के संबंध में इसके पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था। इस कारण याचिकाकर्ता द्वारा दायर क्रिमिनल पिटिशन सुनवाई योग्य नहीं है। इसीलिए वे इस याचिका को खारिज करने और इसके पूर्व के 30 दिसंबर तक गिरफ्तार न करने के आदेश खारिज करने का आग्रह कर रहे हैं।
इस मामले को लेकर केटीआर ने हलफनामा दायर करते हुए कहा कि समझौते को अमल में लाने के संबंध में नीतिगत अंशों को देखने की जिम्मेदारी संबंधित विभाग के अधिकारी की है और मंत्री के रूप में यह उनकी जिम्मेदारी नहीं है। विदेशी संस्थाओं को निधियाँ स्थानांतरित करने के समय अनुमति का मामला बैंक द्वारा देखा जाना चाहिए। इस मामले से भी उनका लेना-देना नहीं है। एचएमडीए एक संवैधानिक संस्था है और नकद हस्तांतरण कानूनी रूप से किया गया है, इसकी जिम्मेदारी भी एचएमडीए की है। चुनाव आयोग से अनुमति न लेने के लगाए गए आरोप से भी उनका कोई संबंध नहीं है। चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश आने के बाद उन्होंने मंत्री के रूप में कोई व्यवहार नहीं किया। इस मामले में अवैध क्रियाकलाप होते हैं, तो वे भी इसके जिम्मेदार नहीं है। इस हलफनामे के जरिए केटीआर ने एसीबी द्वारा दर्ज मामले को खारिज करने का आग्रह किया।
वहीं दूसरी ओर एसीबी की ओर से भी इस मामले में बड़े पैमाने पर सरकारी खजाने का दुरुपयोग होने का हवाला देते हुए प्रतियाचिका दायर की गई। प्रतियाचिका में केटीआर पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने आपराधिक स्तर पर कार्य किया है। इसके साथ ही बताया गया कि इस मामले में 54 करोड़ रुपये से अधिक नकद हस्तांतरण एचएमडीए द्वारा किया गया, जिस कारण हस्तांतरण को लेकर एचएमडीए पर 8 करोड़ रुपये का भार पड़ा है। एफआईआर दर्ज होने के बाद मामले को खारिज करने का आग्रह करते हुए अदालत में याचिका दायर कर असंगत कारणों का खुलासा करते हुए जाँच-पड़ताल को रोकने का प्रयास किया जा रहा है, इसीलिए दायर याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।