विशेषाधिकार प्राप्तवर्ग को भूआवंटन रद्द
नई दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम क्षेत्र में सांसदों, विधायकों, नौकरशाहों, न्यायाधीशों और पत्रकारों को तरजीही भूमि आवंटन की सुविधा देने संबंधी तत्कालीन आँध्र-प्रदेश की वाई.एस. राजशेखर रेड्डी सरकार द्वारा जारी किये गये सरकारी आदेश को रद्द कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि राज्य सरकार की इस तरह की उदारता मनमाना और अतार्किक है। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पी ने इस नीति को अनुचित, मनमाना, भेदभावपूर्ण और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का हनन बताया। निर्णय में कहा गया है कि चुनिंदा विशेषाधिकार प्राप्त समूहों को रियायती दरों पर भूमि का आवंटन एक मनमाने और तर्कहीन दृष्टिकोण को दर्शाता है। न्यायालय के निर्णय में कहा गया है कि राज्य सरकार की यह नीति सत्ता का दुरुपयोग है, जिसका उद्देश्य केवल समाज के समृद्ध वर्गों को लाभ पहुँचाना है तथा आम नागरिक और सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित लोगें के समान अधिकार को अस्वीकार करना है।
निर्णय में कहा गया है कि यह कहना गलत नही होगा कि स्पष्ट मनमानी का सिद्धांत, जो शायरा बानो बनाम भारत संघ मामले में प्रतिपादित किया गया था, यहाँ लागू होता है। पी के लिए 64 पृष्ां का निर्णय लिखते हुए प्रधान न्यायाधीश ने जनहित के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि नीति ने असमानता को बढ़ावा दिया है और संविधान में निहित वास्तविक समानता के सिद्धांतों को कमजोर किया है। इसमें कहा गया है कि जब सरकार कुछ विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को रियायती दरों पर भूमि आवंटित करती है, तो इससे असमानता की व्यवस्था पैदा होती है, जिससे उन्हें भौतिक लाभ मिलता है, जिसे प्राप्त करना आम नागरिक के लिए टेढ़ी खीर है।
न्यायालय ने कहा कि यह तरजीही व्यवहार संदेश देता है कि कुछ व्यक्ति अपने सार्वजनिक पद या सार्वजनिक कल्याण की आवश्यकताओं के कारण नही, बल्कि केवल अपनी स्थिति के कारण अधिक पाने के हकदार हैं।