विकट हालातों में भी बरकरार रखें संतुलन : कपिलमुनिजी


हैदराबाद, विषम परिस्थिति में भी जो मानसिक संतुलन को बरकरार रखने में सक्षम हैं, उसे दुनिया की कोई शक्ति आकुल व्याकुल नहीं बना सकती। मानसिक संतुलन, स्वभावगत संतुलन व खान पान में संतुलन बेहद जरूरी है। जो बात-बात में मानसिक संतुलन खो बैठते हैं, उन्हें ढेर सारे सुख के संसाधन भी सुखी नहीं बना सकते। अपने हित को नजर के सामने रखकर मानसिक संतुलन को बनाये रखने में मदद मिल सकती है। अपनी आत्मा का हित चाहने वाले की दृष्टि में मन की शांति ही सर्वोपरि ध्येय होता है, जिसके लिए उसे चाहे कितना भी संघर्ष और बलिदान क्यों न करना प़, वह सहर्ष तैयार होता है।

उक्त उद्गार मारेडपल्ली स्थित तातेड़ भवन में कपिलमुनिजी म.सा. ने प्रवचन के दौरान व्यक्त किये। अध्यक्ष महावीर तातेड़ व कार्याध्यक्ष महावीर गांधी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, म.सा. ने कहा कि जीवन में सुख शांति व आनंद की अनुभूति के लिए जिनके स्वभाव में संतुलन होता है वे हर हाल में सामंजस्य बैठाने की कला में निपुण होते हैं। ऐसे लोगों के लिए बिगड़ी बात और वातावरण को अपने अनुकूल बनाना सहज और सरल होता है। खास तौर पर जो मुखिया की भूमिका निभाते हैं, उनके भीतर इस गुण का होना अत्यंत आवश्यक है। तभी व्यक्ति दूसरों को प्रसन्न करते हुए अपने साथ लेकर चल सकता है। जो अपने स्वार्थ को ही मुख्यता देता है, ऐसा व्यक्ति मुखिया होने या नेतृत्व करने की योग्यता को खो देता है। हमारे जीवन में खानपान से संबंधित संतुलन भी स्वस्थ और व्यवस्थित जीवन जीने के लिए बहुत जरूरी है। भोजन के मुख्यत तीन उद्देश्य हैं साधना, स्वास्थ्य और स्वाद। जो आत्म कल्याण की साधना में निरत हैं, वे शरीर को साधना का माध्यम मानकर सीमित मात्रा में संतुलित भोजन ग्रहण करते हैं, ताकि साधना के लक्ष्य की प्राप्ति सुगम और आसान हो। कुछ लोग स्वास्थ्य को केंद्र में रखते हैं। जो आहार स्वास्थ्य के हित को क्षति पहुँचाता है, उससे परहेज करते हैं, सिर्फ पोषक तत्वों से भरपूर भोजन को ही प्रधानता देते हैं। संसार में ऐसे लोगों की बहुत भरमार है, जिनकी दृष्टि में साधना और स्वास्थ्य गौण है। ऐसे अविवेकी लोगों की दृष्टि में स्वाद ही सब कुछ होता है। वे जीभ की लोलुपता वश स्वाद लंपट बनकर स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने में जरा भी संकोच नहीं करते। स्वास्थ्य के हित-अहित की परवाह किये बगैर चाहे जैसा भोजन ग्रहण करके मानसिक स्वास्थ्य को चौपट कर डालते हैं और असमय बीमारियों का शिकार होकर बेशकीमती जिन्दगी को बोझ की तरह घसीटते रहते हैं। ऐसे लोगों के अंतकाल में समाधि की संभावना क्षीण हो जाती है। परिणामस्वरूप मृत्यु दुखदायी व परलोक भी भयंकर बन जाता है। इस लोक और परलोक को सुधारने के लिए जीवन की प्रत्येक प्रवृत्ति में संयम व संतुलन साधना चाहिए। कार्पाम का संचालन महामंत्री उमेश नाहर ने किया।

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