ग्रेटर हैदराबाद में मेनहोल को दिया जा रहा है यूनिक आईडी नंबर
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हैदराबाद, ग्रेटर हैदराबाद देश के पाँच महानगरों में से एक है। हालाँकि यहां ऐतिहालिक रूप से चारमीनार एवं सालारजंग संग्रहालय को छोड़ कोई बड़ा आश्चर्य नहीं है, लेकिन आए दिन व्यवस्था में कई सारे आश्चर्य घटते रहते हैं। नया उदाहरण शहर को पेयजल की आपूर्ति और मल की निकासी करने वाले जल बोर्ड का है। बोर्ड ने इन दिनों मल निकास व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करने के लिए एक ओर जहाँ सैकड़ों किलोमीटर की गाद निकालने में सफलता अर्जित की है, तो दूसरी ओर बोर्ड लाखों की संख्या में मेनहोल को यूनिक आईडी (विशेष पहचान) देने की युक्ति कर रहा है, ताकि किसी भी प्रकार की समस्या पर संबंधित मैनहोल का इतिहास केवल एक क्लिक पर प्राप्त किया जा सके। अब तक बोर्ड इस प्रक्रिया में 3 लाख मेनहोल तक पहुंच चुका है, जबकि शहर में 6 लाख से अधिक सीवर मेनहोल हैं। व्यवस्था को ठीक करने के बीच बोर्ड एक यक्ष प्रश्न के उत्तर को टटोल रहा है कि शहर में मलनिकाल शुल्क वसूली में अघोषित अवरोध को किस तरह दूर किया जाए।
हैदराबाद महानगरीय पेयजल आपूर्ति व मल निकास बोर्ड के प्रबंध निदेशक अशोक रेड्डी ने आज संवाददाताओं को संबोधित करते हुए बोर्ड द्वारा चलाये जा रहे 90 दिन के अभियान की विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि किस तरह प्रौद्योगिकी के सहयोग से शहर के एक-एक मैनहोल का रिकॉर्ड तैयार किया जा रहा है।
उन्होंने दावा किया कि बिना कोई अतिरिक्त एक रुपया खर्च किये बोर्ड ने 1.21 लाख मेनहोल और 1586 किलोमीटर नालों/ पाइप लाइन की सफाई कर गाद निकाली गयी है। इसके लिए बोर्ड के कर्मी और उपकरण तथा वाहन उपयोग में लाए जा रहे हैं। इस तरह अभियान के दौरान उपलब्ध डेटा की निरंतर समीक्षा के चलते बोर्ड को प्राप्त होने वाली समस्याओं की संख्या में 33 प्रतिशत कमी आयी है। हर महीने बोर्ड को 75 हज़ार शिकायतें आती हैं, जिनमें से 99 प्रतिशत शिकायतें कुछ ही घंटों में हल की जाती हैं। जल बोर्ड के फीडबैक सर्वेक्षण के अनुसार, 62 प्रतिशत शिकायतकर्ता बोर्ड के समाधान से संतुष्ट हैं। बोर्ड उन अधिकारियों ख़िलाफ कार्रवाई कर रहा है, जो बिना शिकायत समाधान के ऑनलाइन शिकायत को बंद कर देने की सूचना उपभोक्ता को देते हैं।
अशोक रेड्डी ने कहा कि 2 अत्तूबर को 90 दिन का अभियान शुरू किया गया था, लेकिन डेटा और जीआईएस मैपिंग को आधार बनाकर डैशबोर्ड जानकारी के साथ इसे संचालित करने में पंद्रह दिन का समय लगा। आज हर पल की जानकारी डैशबोर्ड पर उपलब्ध है कि कौन सा वाहन, कौन से कर्मियों के साथ किस मेनहोल की सफाई में लगे हुए हैं। बोर्ड हर दिन एमसीसी पर मिलने वाली शिकायतों की निगरानी भी कर रहा है, ताकि शिकायतों के आकार-प्रकार के बारे में उचित जानकारी प्राप्त की जा सके और उसके कारणों तक पहुँचा जा सके। विशेषकर सीवर लाइन से जुड़ी समस्याओं को समझने के लिए 90 दिन का अभियान काफी कारगर सिद्ध हुआ है। न केवल वर्तमान समस्याओं का समाधान किया जा सक रहा है, बल्कि समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए नयी परियोजनाओं के प्रस्ताव भी तैयार किये जा रहे हैं। कई मेनहोल और सीवर लाइन में संभावनाओं से अधिक गाद निकली है। बोर्ड का लक्ष्य है कि आगामी अप्रैल तक शहर के सभी मेनहोल की सफाई की जाए, ताकि वर्षाकाल में किसी प्रकार की समस्या सीवर लाइन के साथ न हों। जिस तरह सीवर लाइन पर डैशबोर्ड आधारित निगरानी की जा रही है, उसी तरह बोर्ड पेयजल भंडारण स्थलों तथा जलाशयों और एसटीपी पर किये जा रहे जलशोधन पर भी निगरानी रखने की योजना रखता है।
50 करोड़ तक पहुंच सकता है मलजल शुद्धिकरण का बिजली खर्च
एक प्रश्न के उत्तर में जल बोर्ड महाप्रबंधक ने कहा कि बोर्ड के प्रावधान में नल बिल के साथ 35 प्रतिशत मलनिकास बिल भी शामिल होता है। पिछली सरकार ने जब महानगर में पेयजलापूर्ति निशुल्क घोषित की तबसे आवासीय घरों से शुल्क नहीं वसूला जा रहा है। हालाँकि सरकार ने केवल नल बिल की बात की थी, लेकिन बोर्ड ने मलनिकाल बिल भी नहीं वसूला। सीवर बिल क्यों नहीं वसूला गया, इस बारे में बोर्ड के पास कोई उत्तर नहीं है। लेकिन बोर्ड अपनी बैठकों में इस बात पर विचार कर रहा है, ताकि भविष्य में कोई रणनीति बनायी जा सके।
प्रबंध निदेशक ने कहा कि ग्रीन ट्रिब्यूनल के स्पष्ट आदेश हैं कि शहर का मलजल शत प्रतिशत शुद्धिकरण प्रक्रिया से गुज़रे। पहले यह नदी या तालाबों में छोड़ दिया जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं किया जा सकता। इसके लिए बनाये गये एसटीपी पर बिजली खर्च बढ़ेगा। इस तरह बोर्ड पर सीवरेज शुद्धिकरण का बिजली खर्च 50 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। स्टिल्ट चैंबर न रखने वाले प्रतिष्ठानों खिलाफ होगी कार्रवाई
जलबोर्ड प्रबंध निदेशक अशोक रेड्डी ने कहा कि सीवर व्यवस्था की समीक्षा के दौरान इस बात की भी जाँच की जा रही है कि जिन मेनहोलों से ओवरफ्लो की शिकायतें बार-बार आ रही हैं, उसके आस पास कितने वाणिज्यिक प्रतिष्ठान हैं? विशेषकर होटलों, छात्रावासों और अस्पतालों ने स्टिल्ट चैंबर बनाया है या नहीं? उन्होंने हाल ही में मेहदीपटनम में किये गये औचक दौरे का उल्लेख करते हुए कहा कि कई होटल बिना चेंबर बनाये अपना करचा मेनहोल में फेंक रहे हैं, जिससे मलजल के बहाव में अवरोध पैदा हो रहा है। इसी तरह हॉस्टेल संचालक भी धड़ल्ले से नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं। बोर्ड इस बात की भी जानकारी इकट्ठा कर रहा है कि कितने हॉस्टल आवासीय भवनों में चल रहे हैं। चूंकि बोर्ड आवासीय भवनों से जल शुल्क नहीं वसूल रहा है, इसलिए आवासीय भवनों में हॉस्टल चला कर मुफ्त पेयजल सुविधा का उपयोग करना नियमों का उल्लंघन होगा। बोर्ड इसके बारे में जानकारी इकट्ठा कर नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करेगा। बोर्ड ऐसे हज़ार मेनहोल की पहचान करने की प्रक्रिया में है, जहाँ से अधिक शिकायतें प्राप्त हो रही हैं। पेयजल टैंक व्यवस्था में किये जा रहे सुधारों के बारे में उन्होंने कहा कि बहुत जल्द टैंक बुक करने वाले उपभोक्ता को टैंक रद्द करने या उसकी तिथि और समय बदलने का विकल्प भी दिया जाएगा।