युद्धवीर पुरस्कार ग्रहिता मनमोहन सिंह मौन

नई दिल्ली/हैदराबाद, आर्थिक सुधारों के प्रणेता पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का बृहस्पतिवार रात यहाँ निधन हो गया। वह 92 वर्ष के थे। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली ने सिंह के निधन की घोषणा की। उन्हें गंभीर हालत में रात करीब साढ़े आ बजे आपातकालीन वार्ड में भर्ती कराया गया था।

एम्स ने एक बुलेटिन में कहा कि 26 दिसंबर को उनका आयु संबंधी चिकित्सा उपचार जारी था और वह घर पर अचानक बेहोश हो गए। मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा और सात दिनों का राष्ट्रीय शोक मनाया जाएगा। मनमोहन सिंह को वर्ष 1995 में वित्त-मंत्री रहने के दौरान राष्ट्र के विकास में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए युद्धवीर फाउंडेशन के अवार्ड से सम्मानित किया गया था। इस बीच तेलंगाना सरकार ने मनमोहन सिंह के निधन पर कल शुक्रवार को सभी सरकारी कार्यालयों व शैक्षणिक संस्थानों को अवकाश की घोषण की है। साथ ही राज्यभर में सात दिन शोक मनाने के निर्देश दिये हैं।

अस्पताल की बुलेटिन में कहा गया है कि उन्हें घर पर तत्काल होश में लाने के प्रयास किए गए। उन्हें रात आ बजकर छह मिनट पर दिल्ली एम्स लाया गया। तमाम प्रयासों के बावजूद उन्हें होश में नहीं लाया जा सका और रात 9.51 बजे उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। सिंह ने भारत के 14वें प्रधानमंत्री के रूप में वर्ष 2004 से 2014 तक 10 वर्षों तक देश का नेतृत्व किया। पिछले कुछ माह से उनका स्वास्थ्य खराब था। उनके परिवार में पत्नी गुरशरण कौर और तीन बेटियाँ हैं।

सौम्य स्वभाव के लिए भी विख्यात रहे आर्थिक सुधारों के जनक मनमोहन सिंह

सौम्य और मृदुभाषी स्वभाव वाले मनमोहन सिंह भारत में आर्थिक सुधारों का सूत्रपात करने वाले शीर्ष अर्थशास्त्रा और प्रधानमंत्री के तौर पर लगातार दो बार गबंधन सरकार चलाने वाले कांग्रेस के पहले नेता के तौर पर याद किए जाएँगे। उनका बृहस्पतिवार को निधन हो गया।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक राष्ट्र के 10 वर्षों तक प्रधानमंत्री रहे सिंह को दुनिया भर में उनकी आर्थिक विद्वता तथा कार्यों के लिए सम्मान दिया जाता था। उन्होंने भारत के 14वें प्रधानमंत्री के रूप में वर्ष 2004 से 2014 तक 10 वर्षों तक देश का नेतृत्व किया। कभी अपने गाँव में मिट्टी के तेल से जलने वाले लैंप की रोशनी में पढ़ाई करने वाले सिंह आगे चलकर एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद बने। सिंह की 1990 के दशक की शुरुआत में भारत को उदारीकरण की राह पर लाने के लिए सराहना की गई, लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में अपने 10 साल के कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों पर आँखें मूँद लेने के लिए भी उनकी आलोचना की गई। उनके करीबी सूत्रों की मानें तो राहुल गांधी द्वारा दोषी राजनेताओं को चुनाव लड़ने की अनुमति देने के लिए अध्यादेश लाने के केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले की प्रति फाड़ने के बाद सिंह ने लगभग इस्तीफा देने का मन बना लिया था। उस समय वह विदेश में थे। भाजपा द्वारा सिंह पर अक्सर ऐसी सरकार चलाने का आरोप लगाया जाता था, जो भ्रष्टाचार से घिरी हुई थी। पार्टी ने उन्हें मौनमोहन सिंह की संज्ञा दी थी और आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ नहीं बोला।

अविभाजित भारत (अब पाकिस्तान) के पंजाब प्रांत के गाह गाँव में 26 सितंबर, 1932 को गुरमुख सिंह और अमृत कौर के घर जन्मे सिंह ने 1948 में पंजाब में अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। उनका शैक्षणिक कॅरियर उन्हें पंजाब से ब्रिटेन के कैम्ब्रिज तक ले गया, जहाँ उन्होंने 1957 में अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी ऑनर्स की डिग्री हासिल की। सिंह ने इसके बाद 1962 में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के नाफील्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने अपने कॅरियर की शुरुआत पंजाब विश्वविद्यालय और प्रतिष्ित दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के संकाय में अध्यापन से की। उन्होंने यूएनसीटीएडी सचिवालय में भी कुछ समय तक काम किया और बाद में 1987 और 1990 के बीच जिनेवा में साउथ कमीशन के महासचिव बने।

वर्ष 1971 में सिंह भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में शामिल हुए। इसके तुरंत बाद 1972 में वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में उनकी नियुक्ति हुई। उन्होंने जिन कई सरकारी पदों पर काम किया, उनमें वित्त मंत्रालय में सचिव, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर, प्रधानमंत्री के सलाहकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के पद शामिल हैं। उनके कॅरियर का महत्वपूर्ण मोड़ 1991 में नरसिंह राव सरकार में भारत के वित्त-मंत्री के रूप में सिंह की नियुक्ति था। आर्थिक सुधारों की एक व्यापक नीति शुरू करने में उनकी भूमिका को अब दुनिया भर में मान्यता प्राप्त है। बाद में सिंह को भारत के 14वें प्रधानमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व करने के लिए चुना गया, जब सोनिया गांधी ने इस भूमिका को संभालने से इनकार किया और अपनी जगह उनका चयन किया। उन्होंने 22 मई, 2004 को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली और 22 मई, 2009 को दूसरे कार्यकाल के लिए पद संभाला। इस युग में अभूतपूर्व विकास और समृद्धि की कहानी देखी गई, जहाँ यह माना जाता है कि उनके प्रधानमंत्रित्व काल में देश की आर्थिक वृद्धि सबसे अधिक थी। उनका राजनीतिक कॅरियर 1991 में राज्यसभा के सदस्य के रूप में शुरू हुआ, जहाँ वह 1998 से 2004 के बीच विपक्ष के नेता रहे। उन्होंने इस साल (3 अप्रैल) को राज्यसभा में अपनी 33 साल लंबी संसदीय पारी समाप्त की।(एजेंसियाँ)

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