अधिकारियों को राहत नहीं, अदालत ने याचिकाएँ खारिज कीं, प्रशासनिक हस्तक्षेप से इनकार
हैदराबाद, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने गत 9 अक्तूबर को केंद्र सरकार द्वारा जारी आदेश के खिलाफ 5 आईएएस अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं को यह कहकर खारिज कर दिया कि अदालत प्रशासनिक निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करेगी। इसी प्रकार सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल (कैट) के आदेश के संबंध में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। इसके संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाए गए कुछ फैसलों का भी उल्लेख किया।
अदालत ने कहा कि पिछले आदेश के अनुसार अधिकारियों की राय न सुनना सहज न्याय सूत्र के विरुद्ध होने से इनकार कर दिया और बताया कि अधिकारियों की विनती की समीक्षा करने के बाद ही केंद्र सरकार अपना निर्णय लेगी। अदालत ने यह भी बताया कि आवंटन के संबंध में निर्धारित दिशा-निर्देश और नियमों के विरुद्ध आवंटन किए जाने को व्यक्तिगत विवाद बताते हुए कहा कि इस विवाद से संबंधित याचिकाएँ कैट के समक्ष विचाराधीन हैं। याचिकाकर्ताओं को आपत्ति हो तो वे कैट के समक्ष अपनी आपत्ति रख सकते हैं। इस कारण केंद्र सरकार द्वारा जारी आदेश में हस्तक्षेप न करने का फैसला सुनाते हुए आईएएस अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज करते हुए आदेश दिया।
गौरतलब है कि गत जनवरी माह के दौरान दिए गए उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार अधिकारियों की आपत्तियों को नकारते हुए गत 9 अक्तूबर को आवंटन को निर्धारित कर केंद्र सरकार द्वारा जारी आदेश पर स्थगनादेश जारी करने से कैट द्वारा इनकार किया गया। इस कारण आईएएस अधिकारी वाकाटी करुण, के. आम्रपाली, ए. वाणी प्रसाद, डी. रोनाल्ड रोस, जी. सृजन, सी. हरिकिरण और शिवशंकर ने लंच मोशन पिटिशन उच्च न्यायालय में दायर की थी। इन याचिकाओं पर आज उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस अभिनंद कुमार शाविली और जस्टिस अलिशेट्टी लक्ष्मीनारायण की खण्डपीठ ने सुनवाई की।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने दलील देते हुए बताया कि इसके पूर्व इस मामले के संबंध में इसी उच्च न्यायालय ने आदेश जारी किए थे। इस आदेश की परवाह न कर और याचिकाकर्ताओं की आपत्ति को सुने बिना एकपक्षीय निर्णय लेते हुए केंद्र सरकार ने आदेश जारी किया। उन्होंने बताया कि इस मामले पर एक सदस्यीय समिति का गठन अनुचित है और समिति के गठन के संबंध में जारी आदेश की प्रति याचिकाकर्ताओं को नहीं दी गई। जून माह में आवेदन करने पर तीन माह के पश्चात आवंटन संबंधी आदेश जारी किया गया। उनकी राय को जाने बिना आवंटन संबंधी आदेश जारी किए। इस दौरान खण्डपीठ ने हस्तक्षेप कर कहा कि याचिकाकर्ताओं को चाहिए कि पहले वे अपनी ड्यूटी में शामिल हो और संबंधित राज्य सरकार को विश्वास में लेने की राय दी। दोनों राज्यों के बीच समन्वय के साथ निर्णय लेने की भी संभावना है। दोनों राज्यों की आपत्तियों की समीक्षा करने के बाद केंद्र सरकार को आदेश दिए जा सकते हैं। खण्डपीठ ने कहा कि आवंटन अदालत की जिम्मेदारी नहीं है। केंद्र सरकार में उच्च स्तर के अधिकारी रहते हैं और वे भलिभाँति जानते हैं कि आम जनता को क्या चाहिए। इस आधार पर ही वे अधिकारियों की नियुक्ति करते हैं। किसे कितने अधिकारियों की आवश्यकता है और किन्हें कहाँ आवंटन किया जाए, यह अदालत की जिम्मेदारी नहीं है। यह कार्य केंद्र सरकार का है। वर्तमान याचिकाओं के आधार पर पुन एक बार स्थगनादेश जारी करने पर विवाद का हल नहीं होगा। कैट द्वरा याचिकाएँ खारिज करने पर याचिकाकर्ता पुन अदालत की शरण लेंगे। कितने समय तक यह विवाद चलेगा। अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे अपनी-अपनी सेवा को निभाएँ, उनके कारण आम जनता को परेशानी न हो। आप सभी लोग आम जनता के लिए ही कार्य कर रहे हैं, इसे ध्यान में रखे। सरकारी बाबुओं के अदालत में आने पर स्थगनादेश कैसे जारी किया जा सकता है, खण्डपीठ ने यह सवाल उठाया।
इस दौरान अधिवक्ताओं ने हस्तक्षेप कर कहा कि आंध्र-प्रदेश में तीन अधिकारी मुख्य ओहदे पर कार्यरत हैं और इन अधिकारियों की सेवाएँ वहीं बरकरार रखने के लिए केंद्र सरकार को पत्र भी लिखा गया। इसी प्रकार तेलंगाना सरकार ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखा। इस पर खण्डपीठ ने कहा कि क्या आंध्र-प्रदेश का प्रशासन इन तीन अधिकारियों द्वारा ही चल रहा है? क्या इनके न होने पर प्रशासनिक कार्रवाई रुक जाएगी, इस प्रकार अदालत के चक्कर काटना क्या उचित है, इस पर अधिवक्ताओं ने कहा कि उनका ऐसा कोई उद्देश्य नहीं है। वे चाहते हैं कि इन याचिकाओं पर पूर्ण स्तरीय सुनवाई कर जो भी फैसला सुनाया जाएगा, उसके प्रति वे कटिबद्ध रहेंगे, तब तक केंद्र सरकार के आदेश पर रोक लगाने का आग्रह किया। इसके अलावा आगामी 4 नवंबर को कैट में सुनवाई है, कम से कम तब तक इस आदेश के खिलाफ स्थगनादेश देने का आग्रह किया। यह भी आग्रह किया गया कि माह के अंत तक याचिकाओं पर सुनवाई पूर्ण करने के कैट को आदेश दें।
केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल नरसिम्हा शर्मा ने दलील देते हुए बताया कि पहले इन याचिकाओं से मुक्त होकर अधिकारियों को चाहिए कि वे अपनी-अपनी सेवाओं में शामिल हों। कैट ने भी यही राय दी है और इस मामले पर किसी प्रकार के कोई आदेश की आवश्यकता नहीं जताई। वर्तमान समय में स्थगनादेश जारी करने पर दोनों राज्यों को परेशानी हो सकती है। वरिष्ठ अधिकारी के रूप में केंद्र सरकार के आदेश पर अमल किया जाना चाहिए। इस दौरान कैट कोई न कोई सही निर्णय लेगी। इस दलील के साथ उन्होंने दायर याचिकाओं को खारिज करने का आग्रह किया। दोनों पक्षों की दलील सुनने के पश्चात खण्डपीठ ने स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार ने प्रशासन के संबंध में जो निर्णय लिया है, उसमें किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा, इस राय के साथ खण्डपीठ ने याचिकाएँ खारिज करने के आदेश जारी किए।