केटीआर को 30 तक गिरफ्तार नहीं करने का आदेश, जारी रहेगी जाँच

हैदराबाद, तेलंगाना उच्च न्यायालय ने फार्मूला ई-रेस के मामले में पूर्व मंत्री व भारास विधायक के. तारक रामाराव को आंशिक रूप से राहत देते हुए 30 दिसंबर तक उन्हें गिरफ्तार न करने के एसीबी को आदेश दिए, लेकिन यह भी कहा कि इस मामले की जाँच-पड़ताल जारी रहेगी। गौरतलब है कि गत 18 दिसंबर को नागरिक प्रशासन व शहरी विकास विभाग के प्रधान सचिव दाना किशोर की शिकायत पर 19 दिसंबर को एसीबी ने केटीआर समेत तत्कालीन नागरिक प्रशासन विभाग के प्रधान सचिव अरविंद कुमार और एचएमडीए के पूर्व मुख्य अभियंता बीएलएन रेड्डी के खिलाफ मामले दर्ज किए थे। एसीबी द्वारा दर्ज मामले को खारिज करने का आग्रह करते हुए आज केटीआर ने अति-आवश्यक भोजन अवकाश विराम याचिका दायर की, जिस पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस एन.वी. श्रवण कुमार ने सुनवाई प्रारंभ की।

सुनवाई के दौरान श्रवण कुमार ने बताया कि अदालत अपने अधिकार के तहत सीआरपीसी 482 के अंतर्गत दायर याचिका पर आदेश जारी कर रही है, जिसके तहत केटीआर को आगामी 30 दिसंबर तक गिरफ्तार न करने के एसीबी को आदेश जारी किए। वहीं न्यायाधीश ने केटीआर से कहा कि वे जाँच-पड़ताल में सहयोग करें और जाँच-पड़ताल के दौरान मामले से संबंधित सबूत और दस्तावेज पेश करे।इसके साथ ही न्यायाधीश ने दाना किशोर को नोटिस जारी कर प्रतियाचिका दायर करने के आदेश देते हुए मामले की सुनवाई 27 दिसंबर तक स्थगित कर दी।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी.ए. सुन्दरम ने दलील देते हुए बताया कि याचिकाकर्ता पूर्व सरकार में मंत्री के पद पर कार्यरत थे। इस कारण ही व्यक्तिगत और राजनीतिक शत्रुता के चलते उनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए। उन्होंने बताया कि एफआईआर की समीक्षा करने पर यह स्पष्ट हो रहा है कि उनके खिलाफ राजनीतिक शत्रुता के चलते यह मामला दर्ज किया गया। उन्होंने बताया कि एफआईआर की समीक्षा करने पर यह भी स्पष्ट हो रहा है कि अपराध के संबंध में किसी प्रकार के कोई ठोस कारण नहीं बताए गए। 18 को शिकायत करने पर इसके दूसरे दिन ही 19 दिसंबर को मामले दर्ज किए गए। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय से संबंधित ललित कुमारी के मामले का उल्लेख करते हुए बताया कि केटीआर के खिलाफ दर्ज मामला ललित कुमारी के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के विरुद्ध है।

अधिवक्ता ने बताया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ इस मामले में आर्थिक लाभ प्राप्त करने का कोई आरोप नहीं है। इतना ही नहीं, इस रेस के जरिए 110 करोड़ रुपये का लाभ प्राप्त हुआ है। फार्मूला रेस के लिए तत्कालीन सरकार, फार्मूल ई ऑपरेशन्स (एफईओ) और एस नेक्सजेन प्राइवेट लिमिटेड के बीच समझौता किया गया, जिसके तहत 10वें सीजन के बाद प्रायोजक के चले जाने पर सरकार ने स्वयं मैदान में उतरकर क्षतिपूर्ति के लिए कार्य किया। वर्ष 2023 से संबंधित बकाया का भुगतान किया गया, क्योंकि नए समझौते को सरकार अमल में नहीं लाती है, तब वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकार को ऑर्बिट्रेशन का सामना करना पड़ सकता है। वर्तमान समझौते को अमल में लाने पर आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन हो सकता था। उल्लंघन होने पर चुनाव आयोग या एसीबी कार्रवाई कर सकती थी। प्रोसिजर अमल में न लाने का आरोप लगाते हुए 14 माह के बाद मामला दर्ज करना ललित कुमारी, चरण सिंह से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के विरुद्ध है। तीन माह की देरी को ही सर्वोच्च न्यायालय ने स्वीकार नहीं किया और यहाँ 14 माह की देरी हुई है। इस देरी के संबंध में किसी प्रकार का कोई कारण नहीं बताया गया। भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 3(1)(ए) के तहत मामला दर्ज करने के लिए अधिकारों का दुरुपयोग किया गया। याचिकाकर्ता ने पैसा अपने लिए उपयोग में नहीं लाया। प्रायोजक के चले जाने पर समझौते के तहत एक पार्टी होने के कारण सरकार को समझौता बनाए रखने का निर्णय लेना पड़ा।

पीसी एक्ट की धारा 13(2) लगाने के लिए प्रावधान इस मामले में कहाँ है। इसी प्रकार आईपीसी की धारा 409 के तहत दर्ज मामले के संबंध में एक भी सबूत नहीं है। रेस को 35 हजार लोगों ने देखा और इससे 700 करोड़ रुपये का लाभ प्राप्त हुआ है। फार्मूला ई-रेस देशभर में पहली बार हैदराबाद में आयोजित की गई। इसके आयोजन का निर्णय सरकार का निर्णय था। सरकारी तंत्र के रूप में देखा जाए, तो तत्कालीन मंत्री के रूप में याचिकाकर्ता ने इसे स्वीकृति प्रदान की। इस मामले में साजिश रचने के लिए संचालकों को दोषी के रूप में कहीं पर भी नहीं बताया गया। यदि ऐसा होता, तब आईपीसी की धारा 120बी के तहत साजिश कैसे होती, यह केवल सिविल मामला है और सरकार के एक मुख्य निर्णय का हिस्सा है। इस दलील के साथ अधिवक्ता ने एफआईआर पर आगे की कार्रवाई पर रोक लगाने का आग्रह किया। प्रतिवाद करते हुए महाधिवक्ता ए. सुदर्शन रेड्डी ने कहा कि फार्मूला ई-रेस में अवैध क्रियाकलाप हुए हैं।

एफआईआर कोई इनसाइक्लोपीडिया नहीं है और जाँच के आधार पर एफआईआर में अन्य अंश जोड़े जाते हैं। इसी प्रकार जाँच के जारी रहते मामले के संबंध में नए आरोपी भी एफआईआर के साथ जोड़े जाएँगे और किसी को एफआईआर से हटाया भी जा सकता है। इस मामले में किसी प्रकार की कोई दुर्भावना नहीं है।आरोप गंभीर होने के कारण ही मामले दर्ज किए गए हैं। इस मामले की प्राथमिक जाँच-पड़ताल की गई है और 18 अक्तूबर को इसकी रिपोर्ट भी तैयार की गई। इसके बाद 17 दिसंबर को केटीआर से पूछताछ करने के लिए राज्यपाल से अनुमति भी प्राप्त की गई। महाधिवक्ता ने आगे कहा, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने सर्वोच्च न्यायालय के जिन मामलों का उल्लेख किया, वे अभी विचाराधीन हैं। रेस से संबंधित कंपनी इंग्लैंड की है और सभी पहलुओं की समीक्षा करने के बाद ही एफआईआर दर्ज की गई। इस कारण ही इस मामले में कुछ देरी हुई है। पहला समझौता 15 अक्तूबर, 2022 को हुआ और यह 27 अक्तूबर, 2023 को रद्द हो गया। इसके पश्चात 30 अक्तूबर, 2023 को नया समझौता किया गया, लेकिन समझौते से पहले ही 3 व 11 अक्तूबर को भुगतान कर दिया गया। दो किश्तों में 54.88 करोड़ रुपये एचएमडीए ने साधारण निधियों के तहत जारी किए। इसके लिए तत्कालीन मंत्री व याचिकाकर्ता ने अनुमति दी। इस कारण सरकार को आईटी के तहत 14 करोड़ रुपये का भार पड़ा। उन्होंने बताया कि 10 करोड़ से अधिक का भुगतान करने के लिए एचएमडीए को सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। इतनी भारी रकम का भुगतान करने के लिए वित्त विभाग से सरकार को अनुमति लेने के अलावा आरबीआई से भी मंजूरी प्राप्त करनी अनिवार्य है, लेकिन अनुमतियों के बिना आईओबी के जरिए विदेशी कंपनियों को यह भुगतान किया गया। यहाँ पर जिस लाभ का जिक्र किया जा रहा है, वह सरकार को नहीं, बल्कि प्रायोजक कंपनियों को प्राप्त हुआ है। दलील सुनने के पश्चात न्यायाधीश ने 30 दिसंबर तक केटीआर को गिरफ्तार न करने के एसीबी को और प्रतियाचिका दायर करने के दाना किशोर को आदेश देते हुए सुनवाई 27 दिसंबर तक स्थगित कर दी।

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