पाक-बांग्ला मौसेरे भाई!

बांग्लादेश की सेना के प्रमुख अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल एसएम कमर-उल-हसन ने हाल ही में पाकिस्तान का दौरा किया। इसे दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में बड़े बदलाव का संकेत माना जा सकता है। भारत को चौकन्ना रहने की ज़रूरत है कि कहीं ये मौसेरे भाई मिलकर कोई खुऱाफात न कर जाएँ!
दरअसल, 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी के बाद से, पाकिस्तान के साथ उसके रिश्ते जटिल रहे हैं। जिसमें अक्सर तनाव ज़्यादा और जुड़ाव कम रहा है। प्रधानमंत्री शेख हसीना के 15 वर्षों के कार्यकाल के दौरान ढाका ने इस्लामाबाद से दूरी बनाए रखी और नई दिल्ली के साथ संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया। लेकिन, अगस्त 2024 में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश की विदेश नीति सिर के बल खड़ी होती दिखी। ऐसे में, लेफ्टिनेंट जनरल कमर-उल-हसन की पाकिस्तान यात्रा, कई वर्षों में किसी वरिष्ठ बांग्लादेशी सैन्य अधिकारी की पहली यात्रा है।
इस दौरे के दौरान उन्होंने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल सैयद आसिम मुनीर और जॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष जनरल साहिर शमशाद मिर्ज़ा से अलग-अलग मुलाकात की। इन बैठकों में क्षेत्रीय सुरक्षा और द्विपक्षीय सैन्य सहयोग पर चर्चा की गई। प्रकट तौर पर दोनों पक्षों ने ऐसे रक्षा संबंधों के महत्व पर ज़ोर दिया, जो मजबूत हों और बाहरी प्रभावों से मुक्त हों। साथ ही, दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए सहयोग की कसमें खाईं।
समझना ज़रूरी है कि यह घटना भारत के लिए कई चिंताओं का सबब हो सकती है। सबसे पहली बात तो यही कि, बांग्लादेश का पाकिस्तान के साथ जुड़ाव इस इलाके में नए संभावित समीकरण का संकेत देता है। ऐतिहासिक रूप से, बांग्लादेश के साथ भारत के करीबी रिश्ते क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने में अहम रहे हैं। लेकिन बांग्लादेश-पाकिस्तान सैन्य संबंधों में बढ़ोतरी, दक्षिण एशिया में रणनीतिक संतुलन को बदल सकती है।
दरअसल जब वे दोनों बाहरी प्रभावों से मुक्त द्विपक्षीय रिश्तों की बात कर रहे हैं, तो यह पारंपरिक क्षेत्रीय शक्तियों, विशेष रूप से भारत, के प्रभाव से मुक्त होने की उनकी साझी मंशा की घोषणा है। स्वाभाविक है कि इससे बांग्लादेश में भारत के प्रभाव में कमी आएगी, भले ही उसके साथ भारत के गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रिश्ते रहे हों।
दूसरी अहम चिंता भारत की सुरक्षा से जुड़ी है। ख़ासकर सीमा प्रबंधन और आतंकवाद विरोधी प्रयासों के संदर्भ में भारत को अब दोगुना चौकस रहना होगा। भले ही दोनों देश क्षेत्रीय शांति के लिए कसमें खा रहे हों, लेकिन उनकी नीयत शायद ही साफ हो! उनका सहयोग ऐसे नए समीकरण पेश कर सकता है, जो भारत के रणनीतिक हितों के अनुरूप न हो। बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास या रक्षा समझौतों की संभावना को देखते हुए भारत को क्षेत्रीय रक्षा रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।
निष्कर्षत, इन हालात में भारत को बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा। कूटनीतिक स्तर पर, बांग्लादेश के नए नेतृत्व के साथ सािढय रूप से संवाद ज़रूरी है, ताकि आपसी हितों को पुन स्थापित किया जा सके और उन चिंताओं का समाधान खोजा जा सके जो ढाका को इस्लामाबाद के करीब ले जा रही हैं।
साथ ही, भारत को यह देखना होगा कि बांग्लादेश भारत के साथ दक्षिण एशियाई आर्थिक और सुरक्षा ढाँचे का अभिन्न हिस्सा बना रहे। बुनियादी ढाँचे, व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में सहयोगी परियोजनाएँ दोनों देशों के बीच परस्पर निर्भरता को मजबूत कर सकती हैं। भारत भला अपने एक अज़ीज़ दोस्त को कट्टर दुश्मन में बदलते हुए चुपचाप तो नहीं देख सकता न!