दिल की दूरियाँ मिटाता है पर्युषण पर्व : ललितप्रभजी

हैदराबाद, पर्युषण हृदय शुद्धि और कषाय मुक्ति का पर्व है। 84 लाख जीवयोनियों से क्षमा माँगना सरल है, पर जिनसे हमारा मनमुटाव है या जिसका हमने और जिसने हमारा दिल दुःखाया है, उससे माफी माँगना सच्चा धर्म है। संवत्सरी का इंतजार करने की बजाय आज ही माफी माँगकर हिसाब चुकता कर लें। हम साल भर भले ही गरम रहें, पर अब तो नरम बन जाएँ और मन में पलने वाली गांठों को दूर कर लें।

जैसे गन्ने की गांठों में रस नहीं होता, वैसे ही जो मन में दूसरों के प्रति गांठ पाले रखता है, उसका जीवन नीरस बन जाता है। गांठ बन जाने के बाद सामने वाले में केवल दोष ही नजर आते हैं। जिसे हम चाहते हैं, उसकी हर बात हमें अच्छी लगती है, क्यों न हम सबको चाहना शुरू कर दें, ताकि हमें सबकी बातों अच्छी लगनी शुरू हो जाए। याद रखें, दूरियाँ जमीन की नहीं दिल की होती हैं। इसीलिए तो रूस दूर होकर भी पास है और पाकिस्तान पास होकर भी भारत से दूर है।

महावीर मार्ग और संन्यासी जीवन की सीख

उक्त उद्गार नुमाइश मैदान में लोक कल्याणकारी चातुर्मास समिति, त्रयनगर, हैदराबाद द्वारा आयोजित 53 दिवसीय प्रवचनमाला के तहत पर्युषण पर्व के संदेश और कर्तव्य विषय पर राष्ट्र संत ललितप्रभसागरजी ने व्यक्त किये। आज समिति के अध्यक्ष प्रदीप सुराणा द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, पूज्यश्री ने कहा कि महावीर बनें, महावीर भक्त नहीं। केवल राम या महावीर का नाम रटने से हमारा कल्याण नहीं होगा।

महावीर उस व्यक्ति को ज्यादा पसंद करते हैं, जो उनका नाम लेने की बजाय उनके मार्ग पर चलने की कोशिश करता है। अगर भगवान का नाम लेने से सब कुछ मिल जाता, तो महावीर महलों को छोड़कर जंगलों में नहीं जाते। अरिहंत का नाम लेने से हमें मन की शांति तो मिल सकती है, पर अरिहंत बनने के लिए हमें महावीर के मार्ग पर चलना होगा। संतश्री ने कहा कि सिकन्दर द्वारा हजारों-हजार योद्धाओं को जीतना सरल है, पर खुद को जीतना मुश्किल। उसकी विजय परम विजय है, जो दूसरों को जीतने की बजाय स्वयं को जीत लेता है।

संसार से संन्यासी बनकर जाने की प्रेरणा देते हुए संतश्री ने कहा कि संसार में जन्म लेना हमारी नियति है, पर परमात्मा से इतनी प्रार्थना जरूर करें कि जब यह शरीर छूटे, तो शरीर पर संसारी की बजाय संन्यासी का वेश जरूर हो। व्यक्ति जब भी मुक्त होता है, संसार से उबरकर ही होता है। संसार में चाहे जितना रहा जाए और भोगा जाए, मन अतृप्त ही रहता है। इसलिए संसारी बनकर भले ही जिओ, पर एक दिन ही सही, संत जीवन अंगीकार करने का भाव अवश्य रखो। इसी में जीवन की धन्यता है।

संतों के प्रवचन में जीवन और क्षमा की शिक्षा

संत प्रवर ने कहा कि पर्युषण भीतर के प्रदूषण को हटाने का पर्व है। बाहर के प्रदूषण से बीमारियाँ आती हैं और मन के प्रदूषण से परेशानियाँ आती हैं। इसलिए जितनी जरूरत बाहर के प्रदूषण को कम करने की है, उतनी ही जरूरत भीतर के प्रदूषण को समाप्त करने की है। जब एक ही रेस्टोरेंट में अलग-अलग भोजन करने वाले बैठकर खा सकते हैं, तो हम एक जगह क्यों नहीं मिलकर धर्म कर सकते हैं।

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जब हमारा दिल मिल जाता है, तब क्षमा साकार हो जाती है। अब हमें पंथ-परम्पराओं में न द्वार खोलने हैं न दरवाजे, वरन प्यार से गले मिलने का काम करना है। संत प्रवर ने कहा कि धर्म की नींव है टूटे हुए दिलों को जोड़ना एवं जुड़ना। अपरिचित व्यक्ति से क्षमायाचना करना आसान है, पर आपस में कोर्ट केस चलने वाले दो लोगों के द्वारा क्षमायाचना करना तीस उपवास करने से भी बड़ी तपस्या है। हम उससे क्षमा माँगे जिससे हमारी बोलचाल नहीं है। ऐसा करना मिच्छामी दुक्कड़म् के पत्र या एसएमएस करने से भी ज्यादा लाभकारी होगा।

डॉ. मुनि शांतिप्रियसागरजी म.सा. ने नवकार महामंत्र की सामूहिक प्रार्थना करवाई। उन्होंने जैन आगमों का सार जिन सूत्र के 50 गाथाओं का उच्चारण करवाया। समारोह का शुभारंभ लाभार्थी सुरेन्द्र-ज्योति, अमित-मानसी बांठिया परिवार द्वारा भगवान महावीर की मूर्ति के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया।

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नवकार प्रार्थना, आगम व शोभायात्रा का आयोजन

अक्षय निधि तप आराधना के लाभार्थी परिवार (एकासना) विजेन्द्र धर्मेंद्र कुमार वैभव वंश कर्णावट (हिमायतनगर) और रिखबचंद शांतिलाल राजेश कुमार खिंवसरा (शाहअलीबंडा) का स्वागत विमल कुमार नाहर, मोतीलाल भलगट, उमेश बागरेचा, प्रदीप सुराणा, अमित मुणोत, पवन कुमार पांड्या, नवरतनमल गुंदेचा, अशोक कुमार नाहर, माणकचंद पोकरणा, विमल मुथा, शोभा देवी नाहर, शोभा रानी भलगट, दीपिका बागरेचा, आरती सुराणा, शीतल मुणोत, सूरज देवी गुंदेचा, लाड़ कंवर नाहर, ललिता पोकरणा, सविता मुथा ने किया।

उमेश प्रतिभा लुंकड़ परिवार द्वारा श्रद्धालुओं को गुरुदेव का साहित्य उपहार में प्रदान किया गया। स्व. शरद, सीमा एवं दीपेन लुणावत परिवार द्वारा कल्पसूत्र आगम एवं अंतकृत सूत्र आगम शास्त्र गुरुजनों को समर्पित करने का चढ़ावा लिया गया।

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