कर्मों की निर्जरा का अमोघ साधन है तपस्या : अभिनंदनचंद्रसागरजी
हैदराबाद, गोशामहल स्थित शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर में अभिनंदनचंद्र सागरजी म.सा. एवं साध्वी भावरत्नाश्रीजी म.सा. के सान्निध्य में पंचान्हिका महोत्सव के अंतर्गत परमात्मा के 18 अभिषेक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
आज यहाँ जसराज देवड़ा धोका द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर में विविध औषधियों से परमात्माओं की प्रतिमाओं का अभिषेक किया गया। विजयवाड़ा के विनोद भाई ने मंत्रोच्चार के साथ अनुष्ठान संपन्न करवाया। अवसर पर गुरुदेव अभिनंदनचंद्रसागरजी ने नवपद ओली के अंतिम पद का विवेचन किया। उन्होंने कहा कि तपस्या अनादि संचित कर्मों की निर्जरा का अमोघ साधन है। तपस्या आत्मा को निर्मल बनाती है। इसके आहार संज्ञा का ह्रास होता है। जिस प्रकार सोने को तपाने से वह शुद्ध बनता है, उसी तरह तपस्या से आत्मा शुद्ध होती है। मुनिश्री ने कहा कि तपस्या से ऊर्जा शक्ति का आविर्भाव होता है। तपस्या से इंद्रीय जय, इच्छा विरोध, क्षमा भाव आदि सरलता से संभव है।
मोहिनी देवी कुशलराज छाजेड़ परिवार ने आसोज मास की नवपद ओली कराने का लाभ लिया है। 18 अक्तूबर को सुबह 8 बजे तपस्वियों का पारणा होगा। रविवार को शांतिनाथ भगवान के पूजन का आयोजन किया जाएगा। अवसर पर फतेहराज श्रीश्रीमाल परिवार की ओर से भोजन की व्यवस्था होगी।